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प्रतिस्पर्धा में पड़ने वाली जीवन का आनंद नहीं ले पाता: साध्वी सुनीता

जैन स्थानक में जैन साध्वी सुनीता महाराज ने बताया कि अध्यात्म में मनुष्य का ध्यान अंतरंग की तरफ जाता है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 17 Nov 2021 08:54 PM (IST)Updated: Wed, 17 Nov 2021 08:54 PM (IST)
प्रतिस्पर्धा में पड़ने वाली जीवन का आनंद नहीं ले पाता: साध्वी  सुनीता
प्रतिस्पर्धा में पड़ने वाली जीवन का आनंद नहीं ले पाता: साध्वी सुनीता

जासं, मौड़ मंडी : जैन स्थानक में जैन साध्वी सुनीता महाराज ने बताया कि अध्यात्म में मनुष्य का ध्यान अंतरंग की तरफ जाता है और भौतिकता में बाहर की तरफ ध्यान भागता है। वर्तमान में आध्यात्मिक आदमी भी भौतिकता से जुड़कर आत्मा के विपरीत जा रहा है। आज व्यक्ति अपनी इच्छा की पूर्ति के लिए जन्म से लेकर मरण तक का समय दौड़ते-दौड़ते समाप्त कर देता है। वह सोचता है कि मैं अपने कितने समर्थक बनाऊं, कितने लोग मुझे पसंद करें जिससे मेरी प्रसिद्धि बढ़े। भगवान ने कभी यह नहीं सोचा था कि मेरे पीछे कितने लोग दौड़ रहे हैं। वह अपने रास्ते चलते चले गए और एक दिन ऐसा आया कि जब उन्होंने अपना लक्ष्य पूरा किया तो इधर-उधर दौड़ने वाले लाखों लोग, देवता तक सब उनकी सभा में आकर बैठ गए। उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति प्रतिस्पर्धा में पड़ गया वह जीवन का आनंद नहीं ले पाता। इस मौके पर साध्वी शुभिता ने कहा कि पूरे चार महीने महावीर वाणी का श्रवण कर अपने मन और ह्रदय परिवर्तन करने का संकल्प लेने का दिन है। हृदय तराजू में तोलकर ही बोलें शब्द: डा. राजेंद्र मुनि जैन सभा प्रवचन हाल में डा. राजेंद्र मुनि ने अरिहंत परमात्मा के उपकार स्वरूप स्वयं देवेन्द्र द्वारा की। स्तुति नमोत्थूनम की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा यह साधना अरिहंत सिद्धाओं को वंदना के लिए निर्मित की गई, जो संसार से मुक्त हो चुकी है। उन समस्त आत्माओं को जो भूत भविष्य या वर्तमान में विधमान रहती हैं। ये वो महान आत्माएं होती हैं जो जगत को ज्ञान रूपी सूर्य से प्रकाशमान करती हैं।

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उन्होंने कहा कि आप कीचड़ में कमलवंत संसार से ऊपर उठ गए हो स्वयं तिरते हो और संसार को तिराते हो। स्वयं अभय में विराजमान रह कर दुनिया के भय का निवारण करते हो। ज्ञान रूपी चक्षु के दाता हो। समता के प्रदाता हो। पुरषों में उत्तम श्रेष्ठ हो एवं सिंह व शौर्यता के धारक हो। लोक में सर्वोत्तम हो। लोक के नाथ हो। लोक को ऊपर उठाने वाले हो। ऐसे अरिहंत भगवान आपको मैं वंदन नमन करता हूं। वस्तुत: मानव मन जैसे शब्दों का उच्चारण करता है वैसा भाव भीतर जागृत होता है। अपशब्द के उच्चारण से पाप के विचार पैदा होते हैं तो धार्मिक शब्दों से पुण्य का प्रकटी करण होता है। शब्दों का अपना सत्संग होता है। एक शब्द आग-सा गर्मी देता है तो एक शब्द अमृत-सी शीतलता प्रदान करता है। हमें वाणी का विवेक हमेशा रखना चाहिए। अपने हृदय तराजू में तोल कर शब्द बोलने चाहिएं। एक ने ग्लास को आधा खाली कह दिया दूसरे ने आधा भरा कह दिया। एक ने जनता को मूर्ख कह दिया तो एक ने आधी आबादी पढ़ी लिखी कह दी। भाव एक ही है, पर शब्दों का प्रभाव अलग है। सभा में साहित्यकार सुरेंद्र मुनि द्वारा नमोतथुनम का जाप व महत्व को प्रकाशित किया। महामंत्री उमेश जैन ने आए हुए दर्शणार्थी भाई बहनों का स्वागत किया व सामाजिक सूचनाएं प्रदान की ।


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