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हमने प्रकृति के संतुलन को खराब किया:-वैष्णवी भारती जी

संवाद सहयोगी,मानसा : दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा मानसा में आयोजित श्रीमद्भागवत महापुराण साप्

By JagranEdited By: Published: Sat, 08 Dec 2018 04:15 PM (IST)Updated: Sat, 08 Dec 2018 04:15 PM (IST)
हमने प्रकृति के संतुलन को खराब किया:-वैष्णवी भारती जी
हमने प्रकृति के संतुलन को खराब किया:-वैष्णवी भारती जी

संवाद सहयोगी,मानसा : दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा मानसा में आयोजित श्रीमद्भागवत महापुराण साप्ताहिक ज्ञानयज्ञ कथा के समागम के अंतिम दिन की शुरुआत में यजमान परिवारों द्वारा विधिवत पूजन किया गया। इसमें तरसेम चंद पप्पू, सचिन ¨सगला,वरिन्द्र ¨सगला,सुरेन्द्र कुमार,जतेन्द्रवीर ने परिवार सहित पूजन किया। कथा में ज्योति प्रज्वलित करने के लिए विशेष रूप में एसएसपी मानसा मनधीर ¨सह, जिला प्रधान अकाली दल प्रेम अरोड़ा ,बल¨वदर नांरग, डा.मनोज बाला आदि पहुंचे।

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समागम के अंतिम दिन श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी सुश्री वैष्णवी भारती ने भगवान श्रीकृष्ण के आलौकिक एवं महान व्यक्तित्व के पहलुओं से अवगत कराया। उन्होंने ने कहा कि प्रकृति मां रौद्ररूपा स्वरूप धारण कर चुकी है। कहीं ज्वालामुखी फटतें हैं, कहीं चक्रवात तो कहीं सुनामी और भुखमरी जैसी समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। कारण यही है कि हमने प्रकृति के संतुलन को खराब किया है। भागवत कथा का समापन समापन आरती से किया गया, जिसमें शहर के गणमान्य लोग शामिल हुए। अंत में सभी संस्थाओं द्वारा दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के साधू व साध्वी बहनों को भी सम्मानित किया गया, जिसमें सनातन धर्म सभा, जय मां ¨चतपूर्णी सेवा सीमित,शंति सावन संस्था, शिरडी साई मंदिर,श्री पीर बाबा सेवा कमेटी,आढ़ती एसोसिएशन मानसा थे। संस्थान के प्रवक्ता स्वामी उमेशानंद जी ने शहर की सभी धाíमक व समाजिक संस्थाओं और सभी संगत का सहयोग के लिए धन्यवाद किया ।

-जैसी क्रिया वैसी प्रतिक्रिया होती है।

वैष्णवी भारती ने कहा कि प्रकृति का यह अटल नियम है कि जैसी क्रिया वैसी प्रतिक्रिया होती है। यदि क्रिया सकारात्मक है तो प्रतिक्रिया भी अच्छी ही मिलेगी। यदि क्रिया गलत है तो परिणाम भी हानिकारक होगा। जब मनुष्य अपनी आत्मा से जाग्रत होता है तो प्रकृति का दोहन नहीं उसका पूजन करता है। कभी समय था इस धरती के ऊपर शांति गीत गुंजायमान हुआ करते थे। वनस्पति शांत हो, अंतरिक्ष शांत हो, औषधियां शांत हो, धरती शांत हो और धरती पर रहने वाला मानव भी शांत हो। जब मानव का मन संतुलित होगा तो यह प्रकृति अपने आप ही संतुलन में चलेगी। इसीलिए आज आवश्यकता है उस ब्रह्मज्ञान की जिसके माध्यम से मानव का मन शांत हो फिर सारे ब्रह्मांड को वह शांत रख सकता है।


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