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गुजराती भाव से मालवे के अंगूर के आस्तित्व पर लगा दाव

मालवे की शान कहे जाने वाले क्षेत्र में अब अंगूरों के बाग नहीं दिखेंगे। इसका कारण किसानों को अंगूरों का सही भाव और मंडीकरण न मिलना है। जिस वजह से किसान अब बागों की बजाय रिवायती फसलों की तरफ बढ़ने लगे हैं। क्षेत्र में बागवानी करने वाले किसानों ने अंगूरों के बागों से अधिक लाभ और अच्छे भाव मिलने की उम्मीद की थी मगर बाजार में मंडीकरण की समस्या के कारण सही भाव न मिलने पर बागों को उखाड़ने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 12 Apr 2019 05:07 PM (IST)Updated: Fri, 12 Apr 2019 05:07 PM (IST)
गुजराती भाव से मालवे के अंगूर के आस्तित्व पर लगा दाव
गुजराती भाव से मालवे के अंगूर के आस्तित्व पर लगा दाव

नानक सिंह खुरमी, मानसा : मालवे की शान कहे जाने वाले क्षेत्र में अब अंगूरों के बाग नहीं दिखेंगे। इसका कारण किसानों को अंगूरों का सही भाव और मंडीकरण न मिलना है। जिस वजह से किसान अब बागों की बजाय रिवायती फसलों की तरफ बढ़ने लगे हैं। क्षेत्र में बागवानी करने वाले किसानों ने अंगूरों के बागों से अधिक लाभ और अच्छे भाव मिलने की उम्मीद की थी, मगर बाजार में मंडीकरण की समस्या के कारण सही भाव न मिलने पर बागों को उखाड़ने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। वैसे तो अंगूर उत्पादकों के लिए ऐसे बाग लगाकर मेहनत करना शुरू से ही कांटों भरा रहा हैं क्योंकि लोग महाराष्ट्र और गुजरात के अंगूरों को ज्यादा पसंद करते हैं। इसका मुख्य कारण मालवा का अंगूर खटास भरा है, जबकि गुजरात का मीठा। जानकारी के अनुसार बाजार में गुजरात और महाराष्ट्र का जो अंगूर आ रहा है उसे ग्राहक 80 से 100 रुपये प्रति किलो तक खरीदते हैं। गुजराती अंगूर मालवे अंगूरों की अपेक्षा आकार में लंबा और मोटा होता है और उसका स्वाद भी मीठा होता है। फल विक्रेताओं और आढ़तियों का मानना है कि बाहर से आया अंगूर मालवे के मुकाबले अच्छा होता है। जिसके चलते उसकी बिक्री अधिक होती है।

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धंधा हो रहा खट्टा

इस धंधे के खत्म होने का कारण यह भी है कि मालवे के अंगूर को शहरी ग्राहक नहीं खरीद रहा, तथा ग्रामीण लोग इसे खरीद तो जरूर रहे हैं, मगर खट्टा होने के कारण वह भी अगली बार इंकार कर देते हैं। इस साल मई व जून में देसी अंगूर की आमद नाममात्र ही होगी।

फसल बदलती पर मंडी की नीति नहीं

बागबानी कर रहे गांव जवाहरके वासी किसान रुपिन्दर सिंह और सरबजीत सिंह ने बताया कि कृषि विशेषज्ञ किसानों को खेतों में हर बार बदलकर फसल बोने की सलाह देते हैं, दूसरी ओर सरकार नई फसल के लिए मंडीकरण का उचित प्रबंध नहीं करती जिस कारण किसान क्षेत्र में लगभग सभी बाग उखाड़कर रिवायती खेती की ओर चले जा रहे हैं। क्षेत्र में एकमात्र बाग ही अब बचे हैं।

अधिकारी ने भी माना, मेहनत का कम मिल रहा फल

जब इस बारे में मालवे के बागबानी अधिकारी परमेश्वर कुमार से बात की तो उन्होंने माना कि सही मूल्य न मिलना बागों को उखाड़ने का कारण है और यह भी कहा कि मई व जून में जब अंगूरों की फसल तैयार हो जाती है तो उस समय बारिश का मौसम भी होता है और इस कारण किसान को सही मूल्य भी नहीं मिलता और फसल खराब होने का डर रहता है।


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