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International Museum Day: जाबांजाें के शौर्य की गाथा बताता है लुधियाना का महाराजा रंजीत सिंह वार म्यूजियम, जानें खासियत

World Museum Day 2022 शहर का महाराजा रंजीत सिंह वार म्यूजियम जांबाज योद्धाओं को श्रद्धांजलि देने के उद्देश्य से साल 1999 में बनाया था। यहां लाेगाें की भीड़ लगी रहती है। लाइट एंड साउंड शो म्यूजियम का मुख्य आकर्षण है।

By Vipin KumarEdited By: Published: Wed, 18 May 2022 09:13 AM (IST)Updated: Wed, 18 May 2022 03:32 PM (IST)
International Museum Day: जाबांजाें के शौर्य की गाथा बताता है लुधियाना का महाराजा रंजीत सिंह वार म्यूजियम, जानें खासियत
International Museum Day महाराजा रंजीत सिंह वार म्यूजियम पर्यटन का बेहतरीन स्थान। (फाइल फाेटाे)

आनलाइन डेस्क, लुधियाना। World Museum Day 2022: शहर का रंजीत सिंह वार म्यूजियम किसी अजूबे से कम नहीं है। यदि आप शहीदाें के बारे में जानने के इच्छुक हैं, तो वार म्यूजियम पर्यटन का बेहतरीन स्थान है। जांबाज योद्धाओं को श्रद्धांजलि देने के उद्देश्य से वर्ष 1999 में यह बनाया गया था। लाइट एंड साउंड शो इस म्यूजियम का मुख्य आकर्षण है, जिसमें पंजाब के जांबाज योद्धाओं को दर्शाया जाता है।

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यहां युद्ध में उपयोग हुए टैंक, एंटी एयरक्राफ्ट गन, आइएनएस विक्रांत माडल, ओल्ड सुखोई आप करीब से देख सकते हैं। म्यूजियम में 12 गैलरी हैं, जिसमें पुरातन इतिहास, स्वतंत्रता पूर्व इतिहास, युद्ध के हीरो, जलसेना और वायुसेना गैलरी आकर्षण का केंद्र हैं। म्यूजियम के मुख्य हाल में देश के प्रतिष्ठित महावीर और वीर चक्र के विजेताओं की तस्वीरें देश के योद्धाओं के शौर्य को दर्शाती हैं।

40 रुपये में दो घंटे तक कीजिए म्यूजियम का दीदार

वार म्यूजियम में एंटीक हथियार सहित आजादी से पहले और बाद में होने वाले युद्ध के सामान को संजोया हुआ है। पुरानी धरोहर को देखने के लिए लोग दूर-दराज से भी आते हैं। पूरा सप्ताह यह म्यूजियम सुबह 10 से शाम 5 बजे तक खुला रहता है। 40 रुपये में 2 घंटे तक इस म्यूजियम में जानकारी ली जा सकती है, वहीं बच्चों के लिए यह फीस 10 रुपये है।

विरासत से जोड़ता पीएयू संग्रहालय

पंजाब कृषि विश्वविद्यालय लुधियाना में स्थित अजायबघर को नई पीढ़ी को महान विरासत और संस्कृति से जोड़े रखने के उद्देश्य से बेहद खूबसूरत बनाया गया है। इसका नींव पत्थर एक मार्च 1971 को रखा गया था। इस अजायबघर में ऐतिहासिक व दुर्लभ सिक्के, कलाकृतियां, कृषि औजार, पंजाब के पारंपरिक पहरावे, चक्की, चरखा, अनाज रखने वाली मिट्टी की भड़ोलिया, बर्तन, पुरानी रसोई, हल, पशुओं के सजावटी सामान, महिलाओं के शृंगारदान, परात, मिट्टी व लकड़ी के घड़े, पुराने संगीत साज जैसे तूंबा, बीन, वंजलि, ढोलकी, नगारा, किसानों द्वारा पहने जाने वाले ट्रेडिशनल कोट सहित हड़प्पा संस्कृति से संबंधित अनमोल धरोहर हैं। यहां हर राेज लाेगाें की भीड़ लगी रहती है।

यूराेपीय वास्तुकला का नमूना है फिल्लाैर किला

फिल्लौर किला शहर के ऐतिहासिक स्थानों में से एक है। संघेरा जाट फूल से नाम प्राप्त करते हुए, यह स्थान यूरोपीय वास्तुकला पर बनाया गया है। इस जगह के चारों ओर एक विस्तृत खाई है और चार कोनों पर 4 बुर्ज, दो वॉचटावर, ऊंचे द्वार और 4.7 मीटर की ऊंची दीवार है जो इसे सैन्य ऑपरेशन के लिए आदर्श बनाती है। किले के प्रत्येक प्रवेश द्वार का नाम मुगल शहरों के नाम पर रखा गया है। दो सौ साल पुराने किले का उपयोग अब पुलिस प्रशिक्षण और फिंगर प्रिंट ब्यूरो के लिए किया जाता है। ये किला सिर्फ वीरवार को ही खुलता है।


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