वैदिक गुरुकुल मानव निर्माण की उद्योगशाला : साध्वी भारती
दिव्य ज्योति संस्थान की ओर से कैलाश नगर में चल रहे सत्संग के दौरान साध्वी राजविंदर भारती ने प्रवचन दिए।
लुधियाना : दिव्य ज्योति संस्थान की ओर से कैलाश नगर में चल रहे सत्संग के दौरान साध्वी राजविंदर भारती ने बताया कि वैदिक गुरुकुल को मानव निर्माण की उद्योगशालाएं कहा जाता था क्योंकि उन उद्योगशालाओं में विद्यार्थियों के अन्दर कूट-कूट कर सृजनात्मक विचार भर दिए जाते थे। वहा उनके प्रत्येक पक्ष का पूरण परिष्कार होता था। प्रतिभाओं का सहज अंकुरण! चरम विकास! बस यूं कहिए, इन गुरुकुलों की पावन गोद में पहले बालकों का सवार्गीन निर्माण किया जाता था। वहा कर्म कुरु कर्म करो, पुरुषार्थ करो दिवा मा स्वापसी. उपरि शय्या वर्जय मात्र रात्रि में शयन करो, दिन में शैया का संग मत करो यानि आलस्य का त्याग करो जैसी सिक्षा दी जाती थी। उस समय जब पाठ पडाए जाते थे तो केवल मात्र श्यामपट पर लिख नहीं दिया जाता था जिसे बच्चों ने अपनी कापियों पर उतार लिया और फिर जब परीक्षा काल आया तो उसका रट्टा लगाया और उत्तर पत्र पर उड़ेल दिया। नहीं! वहा तो गुरुदेव कई योजनाबद्ध विधियों से तथ्योँ को समझाते थे । कभी आगमन तो कभी निगमन पद्धतिका सहारा लेते थे भाव कि गुरुकुल से केवल एक शात्र का नहीं अपितु एक श्रेष्ठ मानव का निर्माण होता था । किन्तुवर्तमान समय में इस प्रकार के गुरुकुलों का सर्वथा अभाव है। अत: जितना संभव हो, उतनाउसमें उक्त विधाएं जोड़ने का प्रयास किया जाना चाहिए। आज हमें अपने बच्चों को आधुनिक शिक्षा के साथ-साथ वैदिक ग्रंथों, अच्छे साहित्य में दिए ऐसे दिव्य विचारों से परिचित कराना होगा, जहा से उन्हें शुभ संस्कार मिल पाएं, नैतिक शिक्षा उनके व्यवहार व आचरण में उतर सके। फिर साध्वी जी ने दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की पत्रिका अखंड ज्ञान के बारे में बताते हुए कहा कि इस पत्रिका में ऐसेलेखनआते हैं जिसके द्वारा व्यक्ति का शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक विकास होता है। अखंड ज्ञान पत्रिका सफल जीवन के सूत्र सुझाती और उन्हें चरित्र में कैसेढालना है सिखाती है, भारतीय और वैदिक संस्कृति के उज्जवल मोतियों की खरी चमक दिखाती है, मन केनकारात्मक विचारों को सकारात्मक विचारों की शक्ति से काटने का समाधान हमें प्रधान करती है।