कई परिवारों की उज्ज्वल हुई जिंदगी, कई आज भी योजना के मोहताज
गरीब तबके के लोगों के रहन-सहन का स्तर ऊंचा उठाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर शुरू की गई उज्ज्वला योजना का असर गरीबों की जिंदगी में दिखने लगा है।
लुधियाना, [भूपेंदर सिंह भाटिया]। गरीब तबके के लोगों के रहन-सहन का स्तर ऊंचा उठाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर शुरू की गई उज्ज्वला योजना का असर गरीबों की जिंदगी में दिखने लगा है। पहले जहां लोग लकड़ी (बालन) से अपना खाना तैयार करते थे, वहां अब गैस-चूल्हे पर खाना पक रहा है। केंद्र सरकार ने 2020 तक देश के सभी राशन कार्ड धारकों को गैस सिलेंडर मुहैया करवाने का लक्ष्य रखा है। कई गरीबों को सिलेंडर तो मिले, लेकिन कई अभी भी इंतजार में हैं। लुधियाना संसदीय क्षेत्र की बात करें तो कुल 42.389 गैस सिलेंडर अब तक वितरित किए जा चुके हैं। शहर के छह विधानसभा क्षेत्रों में 28 हजार 262 सिलेंडर बांटे गए हैं, जबकि तीन ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र जगराओं, दाखा और गिल में कुल 14,127 गैस सिलेंडर वितरित किए हैं। दैनिक जागरण के ग्राउंड सर्वे में यह बात सामने आई है कि लुधियाना शहर के आसपास इलाके में रहने वाले मजदूर गरीब तबके को यह सिलेंडर मिले, जबकि अभी भी बड़ी संख्या में लोग अपनी बारी के इंतजार में हैं। वहीं ग्रामीण इलाके में यह सिलेंडर अपनी पहुंच वाले लोगों को ही ज्यादा मिले। लोगों का कहना है कि जिनकी पहुंच थी, उन्हें पहले सिलेंडर मिले, जबकि वह आज भी बालन से खाना बनाने को मजबूर हैं। हालांकि बड़ी संख्या में लोगों ने सिलेंडर योजना का लाभ मिलने की बात कही और इसका श्रेय उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को दिया।
खुले वातावरण में हर मौसम में झेली दिक्कतें, अब मिली राहत
गांव खैहरा बेट की मोहिंदर कौर के चेहरे में उज्ज्वला योजना की राहत स्पष्ट नजर आती है। मोहिंदर कौर के घर जब दैनिक जागरण की टीम पहुंची तो मोहिंदर कौर अपनी बहू के साथ बरामदे में खुली किचन में बैठी पालक काट रही थी। जब उनसे सिलेंडर के संबंध में पूछा तो उनका कहना था कि एक साल पहले ही उन्हें सिलेंडर मिल चुका है। वह वर्षों तक खुले वातावरण में हर मौसम में दिक्कतों के बीच खुले किचन में खाना बनाती रहीं। बारिश और ठंड के दिनों में उन्हें हमेशा समस्याएं झेलनी पड़ीं। अब किचन के अंदर खाना बनाने से राहत मिली है। हालांकि वह अभी भी सब्जी वगैरह काटने का काम खुली किचन में बैठकर करती हैं। चक्कर गांव की ही सुरजीत कौर की किचन में पहुंचने पर बालन की लकड़ियां देखी गई, लेकिन वह जमीन पर गैस चूल्हा रख खाना बना रही थीं। उनके बच्चे साथ ही बैठे चाय का आनंद ले रहे थे। सुरजीत बताती हैं कि गैस सिलेंडर मिलने के बाद से बड़ी राहत मिली है। पहले जब बालन जलाते थे तो खाना चाय सभी एक साथ बना लेते थे, लेकिन अब जरूरत के अनुसार गैस जलाकर काम करते हैं। सुरजीत कौर कहती हैं कि प्रधानमंत्री मोदी ने ही उन्हें राहत दी है। गांव खैहरा बेट की सरबजीत कौर अब अपनी छोटी सी, लेकिन साफ सुथरी किचन में गैस पर खाना बनाती हैं। उन्होंने बताया कि जबसे सिलेंडर आया है, तब से काफी राहत मिली है। अब लकड़ियां जलानी नहीं पड़ती।
सरब कौर आज भी धुएं के साथ खाना बनाने को मजबूर
दोपहर का वक्त है। गांव खैहरा बेट की सरब कौर अपने किचन में खाना बना रही हैं। वह बार-बार एक पाइप से बालन (लकड़ी) की आग को तेज करने का प्रयास करती हैं। इस दौरान कई बार धुआं उनकी आंखों और नाक में समा जाता है। कई बार वह खांसती हैं तो कई बार अपनी आंखों में आए पानी को पोछती हैं। फिर वह आग को तेज रखने के लिए पाइप के सहारे मुंह से हवा देती है। सरब कौर ने बताया कि इस धुएं को खाने की आदत सी पड़ गई है। इसके अलावा उनके पास कोई चारा नहीं है। पति दिहाड़ीदार है। जितना कमाते हैं, उसे परिवार का खानपान ही चलता है। खासबात यह है कि जब सरब खाना बना रही थीं तो उनकी नन्ही बेटी उनके पास रसोई में बैठी थी और उसे भी धुआं परेशान कर रहा था। सरब के अनुसार गांव में जब मोदी सरकार की ओर से गरीबों को गैस सिलेंडर बांटने की योजना पहुंची तो उन्होंने भी सिलेंडर के लिए कागज भरे थे, लेकिन उन्हें अब तक सिलेंडर नहीं मिला। सिलेंडर बांटने वालों का कहना था कि जब उनकी बारी आएगी तो उन्हें मिलेगा, जबकि उनके पड़ोस में रहने वाले लोगों को मिल गया। सरब का कहना है कि जब उनकी किस्मत में होगा तो सिलेंडर मिल जाएगा, नहीं तो ऐसे ही खाना बनाते रहेंगे। खैहरा बेट की 80 वर्षीय बुजुर्ग पूरो का कहना है कि उन्हें आज भी सिलेंडर का इंतजार है। आवेदन किया हुआ है। शायद मिल जाए।
सिलेंडर मिला नहीं, सब्सिडी खाते में आ गई
दैनिक जागरण के ग्राउंड सर्वे में बड़ी रोचक बात सामने आई। गांव के लोगों ने सिलेंडर लेने के लिए बैंक का खाता खुलवाया और आवेदन किया, लेकिन कई ऐसे लोग थे जिन्हें सिलेंडर तो नहीं मिला, लेकिन उनके खाते में सिलेंडर की सब्सिडी आ गई। गांव खैहरा बेट की बलविंदर कौर का कहना है कि उनके नाम के सिलेंडर किसी और को दे दिए गए, जबकि उस खाते में सिलेंडर खरीदने पर सरकार की ओर से मिलने वाली सब्सिडी उनके बैंक में आ गई। वह कई बार एजेंसी वालों से बातचीत कर चुकी हैं, लेकिन उनके सिलेंडर का कोई अता पता नहीं है। इसी गांव की परमजीत कौर का कहना है कि उन्होंने आवदेन किया था, लेकिन पहुंच न होने के कारण वह सिलेंडर नहीं पा सके। मॉडल ग्राम चक्कर की करमवीर कौर आज भी सिलेंडर न मिलने से लकड़ी जलाकर खाना बनाने को मजबूर हैं। करमवीर के पति भी दिहाड़ी पर काम करते हैं। उन्होंने भी सिलेंडर और शौचालय के लिए अलग-अलग आवेदन किया था, लेकिन उन्हें कुछ नहीं मिला। अब वह खुले किचन में खाना बनाने को मजबूर हैं। एक तो धुआं शरीर में जाता है, दूसरा मौसम खराब होने पर उन्हें अपने कमरे में बालन जलाकर खाना बनाना पड़ता है। इससे पूरे कमरे में धुआं भर जाता है। इसी गांव की कुलदीप कौर का कहना है कि उन्होंने छह माह पहले आवेदन किया था। उसके बाद कुछ लोग घर आए थे और औपचारिकताएं पूरी करके चले गए थे। उसके बाद कई चक्कर लगाए, लेकिन उन्हें सिलेंडर नहीं मिला।