शराब का सेवन ही नहीं.. ये गलत आदतें भी लिवर को कर रही डैमेज, भारत में हालात चिंताजनक
भारतीयों में नान अल्कोहलिक फैटी लिवर डिजीज (एनएएफएलडी) नामक बीमारी तेजी से बढ़ रही है। एक स्टडी बताती है कि अगर एनएएफएलडी इसी रफ्तार से बढ़ती रही तो मौत के मुख्य कारणों में यह बीमारी हार्ट डिजीज को भी पीछे छोड़ देगी।
लुधियाना, जेएनएन। लगातार बदलते लाइफ स्टाइल और खान-पान के कारण पांच में से एक भारतीय का लिवर फैटी हो रहा है। पहले यह माना जाता था कि जो व्यक्ति ज्यादा शराब पीता है, या जो व्यक्ति हेपाटाइटिस बी या सी से पीड़ित है, उसी का लिवर डैमेज होता था। मगर वर्तमान समय में शराब का इस्तेमाल नहीं करने वाले लोग भी इस साइलेंट किलर बीमारी की चपेट में आ रहे हैं, जो एक खतरनाक संकेत है।
फोर्टिस अस्पताल लुधियाना में आयोजित जागरुकता लेक्चर के दौरान गैस्ट्रो साइंस इंस्टीट्यूट के एडिश्नल डायरेक्टर डा. नितिन बहल ने बताया कि भारतीयों में नान अल्कोहलिक फैटी लिवर डिजीज (एनएएफएलडी) नामक बीमारी तेजी से बढ़ रही है। एक स्टडी बताती है कि अगर एनएएफएलडी इसी रफ्तार से बढ़ती रही तो मौत के मुख्य कारणों में यह बीमारी हार्ट डिजीज को भी पीछे छोड़ देगी। असंतुलित भोजन, वजन बढ़ना व मोटापा इस बीमारी के शुरूआती लक्षण हैं। चर्बी की मात्रा कम करके लिवर को तंदरुस्त रखा जा सकता है। मोटापा और ज्यादा चर्बी होने पर लिवर डिजीज के साथ-साथ डाइबिटीज व हाई ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियां भी हो सकती हैं। जिससे किडनी पर भी असर होगा। यह भी जरूरी नहीं कि मोटे लोगों को ही यह बीमारी होती है, केवल चर्बी की मात्रा बढऩे से भी एनएएफएलडी हो सकती है।
भारत में मौत के सबसे बड़े दस कारणों लिवर की बीमारी भी
डा. बहल ने बताया कि लिवर भी हार्ट की तरह की महत्वपूर्ण अंग है, लेकिन अकसर लोग इसे तंदरुस्त रखने में लापरवाही दिखाते हैं। विश्व सेहत संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक भारत में मौत का सबसे बड़ा दसवां एक कारण यह बीमारी भी है। यहां हर पांच में से एक व्यक्ति लिवर की बीमारी से पीडि़त है। उन्होंने कहा कि लिवर सिरोसिस का एक बार इलाज होने पर दोबारा होने की संभावना कम ही होती है। सिरोसिस के कारण पेट में पानी भरने, लिवर एन्सेफैलोपैथी व वैरिसियल ब्लीडिंग का खतरा होने पर स्थिति गंभीर हो सकती है। लिवर ट्रांसप्लांट के बिना मरीज 2-3 साल तक ही जीवत रह पाता है। उत्तर भारत में होने वाले लिवर ट्रांसप्लांट में 97 फीसदी केसों में जिंदा डोनर मिलते हैं। केवल 3 फीसदी केसों में ही ब्रेन डेथ के बाद लिवर डोनेट किया जाता है।
हर उम्र के लोग आ रहे चपेट में
डॉ. बहल ने बताया कि अगर किसी को डाइबिटीज और फैटी लिवर एक साथ है तो यह जानलेवा हो सकता है। नान अल्कोहल्कि केसों में लाइफ स्टाइल बदलकर और हेपाटाइटिस बी को टीकाकरण से रोका जा सकता है। 30 साल पहले तक कम उम्र के लोगों को लिवर सिरोसिस की वजह से अस्पताल नहीं जाना पड़ता था, मगर अब इस बीमारी के होने की कोई फिक्स उम्र नहीं है। शराब का सेवन करने के कारण भारत में 30 से 40 साल की उम्र में यह बीमारी हो रही है, जबकि पश्चिमी देशों में 45 से 55 साल की उम्र में यह बीमारी हो रही है। एरोबिक्स एक्सरसाइज, चर्बी, चीनी व चावल का इस्तेमाल कम करके, हाई फाइबर वाला भोजन लेने से इस बीमारी को होने से रोका जा सकता है।