शिव विवाह की परंपरा काे जीवित रखे है जंगम बिरादरी, टल्ली बजाकर लोगों से लेते हैं शिव अर्पण दान
जंगम की उत्पत्ति शिव पार्वती विवाह के समय हुई थी। उस समय जब भगवान शिव व पार्वती विवाह के बाद शिव ने दान देना था तो उन्होंने ब्रह्मा जी से आग्रह किया कि वह उनका दान स्वीकार करें।
लुधियाना, [राजेश भट्ट]। घर के आंगन में बच्चों की किलकारियां गूंजने, बेटा बेटी की शादी या फिर अपना मकान बनाने की मनोकामना लेकर लोग अक्सर भगवान भोलेनाथ के दरबार में पहुंच जाते हैं। इस तरह की मनोकामनाएं पूर्ण होने पर लोग घरों से शिव विवाह का आयोजन करवाते हैं। शिव विवाह संपूर्ण करवाने के लिए जंगम बिरादरी के लोगों को बुलाया जाता है।
लुधियाना शहर में जंगम बिरादरी के चार डेरे हैं। जहां पर वह हरियाणा के कुरुक्षेत्र से आकर रहते हैं। सामान्य दिनों में जहां जंगम घर घर जाकर टल्ली बजाकर लोगों से शिव अर्पण दान लेते हैं वहीं शिव विवाह के मौके पर शिव महिमा का वर्णन करते हैं। माता पार्वती व भगवान भोलेनाथ की शादी के मौके पर लोग खूब दान देते हैं जिसे बाद में जंगम स्वीकार करते हैं। इस यह बिरादरी आज भी शिव विवाह की इस परंपरा को जीवित रखे हुए है।
लुधियाना में शिवपुरी में दो, ताजपुर रोड पर एक और नूरवाला रोड पर एक डेरा है। सामान्य दिनों में लुधियाना में ढाई सौ से तीन सौ जंगम रहते हैं। लेकिन शिवरात्रि के आसपास इनकी संख्या बढ़ जाती है। क्योंकि इन दिनों में शिव पावर्ती विवाह के आयोजन ज्यादा होते हैं। जंगम विरादरी के लोग हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले में रहते हैं। वहीं से जंगम लुधियाना समेत पूरे पंजाब में आते हैं। कुछ जंगम तो अब यहीं पर बस गए हैं और उन्होंने अपने डेरे बना लिए हैं। खास बात यह है कि जंगम बिरादरी की नई पीढ़ियां भी अपने इस पैतृक परंपरा को अपना रहे हैं। नई पीढ़ी के पढ़े-लिखे युवा भी इस विधा को अपना रहे हैं। बुजुर्ग जंगम पूर्ण बताते हैं कि उनकी विरादरी में जिन लोगों की नौकरियां लग जाती हैं वह इस विधा से दूर रहते हैं लेकिन उनमें से भी कई लोग रिटायरमेंट के बाद फिर से इस विधा को चुन लेते हैं।
शिव विवाह के समय हुई थी जंगम की उत्पत्ति
हकीम चंद जंगम बताते हैं कि जंगम की उत्पत्ति शिव पार्वती विवाह के समय हुई थी। उस समय जब भगवान शिव व पार्वती विवाह के बाद भगवान शिव ने दान देना था तो उन्होंने ब्रह्मा जी से आग्रह किया कि वह उनका दान स्वीकार करें। जिस ब्रह्मा जी ने लेने से मना कर दिया और कहा कि वह इस योग्य नहीं हैं कि शिव अपर्ण को ग्रहण कर सकें। उसके बाद भोलेनाथ ने भगवान विष्णु से दान स्वीकार करने का आग्रह किया लेकिन उन्होंने भी कह दिया कि वह उनका दान ग्रहण करने योग्य नहीं हैं। उसी वक्त जंगम की उत्पत्ति हुई और उन्होंने भोलेनाथ का दान स्वीकार किया। तब से यह परंपरा चली आ रही है कि शिव अपर्ण को जंगम ही ग्रहण करते हैं।
जंगमों का पहनावा व श्रृंगार है विशेष
सिर पर कलगी, नाग मुकुट, कर्णफूल, हाथ में टल्ली, धोती, कुर्ता व जनेऊ जंगमों के श्रृंगार का हिस्सा हैं। लाली जंगम ने बताया कि वह श्रृंगार में जो भी वस्तु इस्तेमाल करते हैं वह सभी भगवान की तरफ से जंगम बिरादरी को दिए गए हैं। उन्होंने बताया कि सिर की कलगी भगवान विष्णु ने दी है। इसी तरह नाग मुकुट भगवान भोलेनाथ, कर्णफूल माता पार्वती, कुर्ता-धोती व जनेऊ भगवान ब्रह्मा और टल्ली नंदी जी ने दी है।
उन्हाेंने बताया कि जंगमों को यह भी आदेश हुआ था कि वह दान हमेशा टल्ली में ही लें। नंदी जी की तरफ से दी गई टल्ली की आवाज तीन लोकों तक जाती है और इसकी आवाज से भगवान भोलेनाथ प्रसन्न होते हैं। उन्होंने बताया कि जंगम जब भी शिव विवाह में जाते हैं या फिर शिव अपर्ण ग्रहण करने जाते हैं तो पूरा श्रृंगार करके जाते हैं।
1955 से लुधियाना में कर रहा हूं शिव विवाह
जंगम पूर्ण चंद बताते हैं कि लुधियाना के लोगों में शिव भक्ति का रुझान शुरू से है। उन्होंने बताया कि वह 1955 में पहली बार लुधियाना आए थे और शिव विवाह में शामिल हुए थे। तब उनकी उम्र दस साल थी। उन्होंने बताया कि तब से लगातार शिव विवाह करवा रहे हैं और अपनी इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। उन्होंने बताया कि उनके बच्चे भी इस विधा को आगे बढ़ा रहे हैं।
उन्होंने बताया कि लोग अपने बच्चों के जन्म दिन, उनकी शादी, नया घर बनाने पर शिव विवाह का आयोजन करते हैं। कई लोग तो घर में बच्चा न होने पर भोलेनाथ से मन्नत मांगते हैं और उसके बाद शिव विवाह का आयोजन करवाते हैं।