कला उत्सव में दिखी पंजाबी बिरसे की झलक
जासं, लुधियाना:यदि आप पंजाब की लोक कलाओं और संस्कृति को नजदीक से जानना चाहते हैं, तो पंजाब कृषि विश्वविद्यालय में जाएं। जहा पंजाब की लोक कलाओं के उत्सव को मनाया जा रहा है। पंजाब आर्ट्स कौंसिल चंडीगढ़ की ओर से पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के सहयोग से पहली बार करवाए जा रहे पाच दिवसीय लोक कला उत्सव का आगाज सोमवार से हुआ।
जागरण संवाददाता, लुधियाना:यदि आप पंजाब की लोक कलाओं और संस्कृति को नजदीक से जानना चाहते हैं, तो पंजाब कृषि विश्वविद्यालय में जाएं। जहा पंजाब की लोक कलाओं के उत्सव को मनाया जा रहा है। पंजाब आर्ट्स कौंसिल चंडीगढ़ की ओर से पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के सहयोग से पहली बार करवाए जा रहे पाच दिवसीय लोक कला उत्सव का आगाज सोमवार से हुआ। पीएयू के वीसी डॉ. बलदेव ंिसह ढिल्लों व पंजाब आर्ट्स कौंसिल के चेयरमैन डॉ. सुरजीत पातर ने उत्सव का उद्घाटन किया। इस मौके पर विशेष मेहमान के तौर पर कला परिषद के उपप्रधान लखविंदर जौहल व पंजाब यूनिवर्सिटी के निदेशक विद्यार्थी भलाई डॉ. निर्मल जोड़ा भी मौजूद रहे। आर्ट गैलरी में रविंदर सिंह रावी की गडिया वाले की प्रदर्शनी से उत्सव की शुरुआत हुई। प्रदर्शनी में गडिया वालों के कठिन जीवन को तस्वीरों के जरिए बया किया गया। इसके बाद मशहूर साहित्यकार अमृता प्रीतम को समर्पित कविताओं की महफिल सजाई गई, जिसमें कवियों व विद्यार्थियों ने एक से बढ़कर एक कविताएं पेश कीं। दोपहर तीन बजे से मनमोहन सिंह ऑडिटोरियम में सास्कृतिक व रंगारंग गतिविधियों का आगाज हुआ, जिसकी शुरुआत नाटकों से दोपहर तीन बजे से हुई।
प्रतिभागियों ने पराली जलाने से पर्यावरण को हो रहे नुकसान, पेड़ों की कटाई व बढ़ रहे प्रदूषण से इंसानी जिंदगी में पर मंडरा रहे खतरे और पानी की बर्बादी से भविष्य में पैदा होने वाले संकट पर नाटक प्रस्तुत कर दर्शकों को चेताया। प्रतिभागियों द्वारा प्रस्तुत किए गए नाटक इतने प्रभावशाली थे कि दर्शक कुछ पल के लिए भावुक हो गए।
युवाओं को पंजाबी विरसे से जोडऩे के लिए हो रहा उत्सव
पंजाब कला उत्सव के उद्घाटन के बाद डॉ.सुरजीत पातर ने कहा कि इंटरनेट के युग में पंजाब के युवा अपने विरसे से जुड़े रहे, इस उद्देश्य से यह उत्सव करवाया जा रहा है। पंजाब की लोक कलाओं और सास्कृतिक गतिविधियों को युवाओं तक ले जाने की बहुत जरूरत है। क्योंकि तभी पंजाब के महान विरसे को सहेज कर रखा जा सकता है। पीएयू में ही इस कला उत्सव को करवाने की वजह यह है कि यह धरती शुरू से ही साहित्य सभ्याचार की धरती रही है।