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गांव की लड़कियों के लिए प्रेरणास्रोत बनी सिमरनजीत, बॉक्सिंग में अब तक जीते 50 स्वर्ण Ludhiana news

सिमरनजीत ने दसवीं कक्षा से बॉक्सिंग शुरू दी और अब तक राज्य राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुल 50 स्वर्ण पदक 20 रजत और 10 कांस्य पदक जीत गांव चक्कर का रोशन किया है।

By Vipin KumarEdited By: Published: Wed, 23 Oct 2019 01:21 PM (IST)Updated: Thu, 24 Oct 2019 09:45 AM (IST)
गांव की लड़कियों के लिए प्रेरणास्रोत बनी सिमरनजीत, बॉक्सिंग में अब तक जीते 50 स्वर्ण Ludhiana news
गांव की लड़कियों के लिए प्रेरणास्रोत बनी सिमरनजीत, बॉक्सिंग में अब तक जीते 50 स्वर्ण Ludhiana news

जगराओं, जेएनएन। परिवार की आर्थिक गरीबी और चार भाई-बहन की पढ़ाई का बोझ होने के बावजूद अंतरराष्ट्रीय बॉक्सर सिमरनजीत कौर ने अनेक कठिनाइयों को पार करते हुए बाक्सिंग में अहम मुकाम हासिल कर लिया है। जगराओं के गांव चकर की रहने वाली सिमरनजीत गरीबी के बावजूद अपने लक्ष्य से नहीं भटकी और गांव की अन्य लड़कियों के लिए प्रेरणास्रोत बन गई है।

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सिमरनजीत ने दसवीं कक्षा से बॉक्सिंग शुरू दी और अब तक राज्य, राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुल 50 स्वर्ण पदक, 20 रजत और 10 कांस्य पदक जीत गांव चक्कर व शेरे-ए-पंजाब अकादमी का नाम देश-विदेश में रोशन किया है। सिमरनजीत ने बताया कि वह चार भाई बहन थे और परिवार के खर्च का बोझ अकेले पिता कमलजीत सिंह पर था। तब उसके पिता शराब की दुकान पर सेल्समैन का काम करते थे और उन्हें तीन हजार रुपये वेतन मिलता था। गांव चकर की सिमरनजीत कौर ने इंडोनेशिया मे हुई चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीता है। इसी वर्ष उसने बैंकॉक में आयोजित एशियन चैंपियनशिप में रजत पदक जीता। अब वह 26 अक्टूबर को जापान में होने वाली बॉक्सिंग चैंपियनशिप में हिस्सा लेने जा रही है। सिमरनजीत कौर की मां राजपाल कौर ने बताया कि उनके चारों बच्चे, दो बेटियां अमनदीप कौर 28, सिमरनजीत कौर 24, बेटे कमलप्रीत सिंह 23, अर्शदीप सिंह 21 बॉक्सिंग के खिलाड़ी हैं। बाक्सर सिमरनजीत कौर ने बताया कि पिता कमलजीत सिंह का साया सिर से उठने के बाद घर का सारा खर्च सोनी टीवी के लक्ष्य प्रोजेक्ट के तहत चलता है, जहां से उन्हें हर माह 15 हजार रुपये मिलते हैं।

बेटियां लक्ष्य निर्धारित कर आगे बढ़ें, मिलेगी सफलताः सिमरनजीत

सिमरनजीत ने कहा कि अब बेटे और बेटी में कोई फर्क नहीं रह गया है। यदि बेटियां लक्ष्य बनाकर मेहनत करें तो वह बेटों से भी आगे निकल सकती हैं। वह गांव की लड़कियों को भी मुक्केबाजी स्पर्धा में आने को प्रेरित करती हैं, ताकि उनका गांव मुक्केबाजी में एक मिसाल बन सके। 

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