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गरीबी की दास्तां सुन पसीजी सनम, फ‍िर अबला को सबला बनाने की खाई कसम

पहले पहल तो उनको कुछ कठिनाइयां जरूर हुई लेकिन बाद में नवोदय फाउंडेशन बनाकर कमजोर वर्ग की महिलाओं को हुनरमंद बनाने के लिए स्थायी तौर पर नींव रख दगी।

By Edited By: Published: Mon, 30 Sep 2019 06:30 AM (IST)Updated: Mon, 30 Sep 2019 11:05 AM (IST)
गरीबी की दास्तां सुन पसीजी सनम, फ‍िर अबला को सबला बनाने की खाई कसम
गरीबी की दास्तां सुन पसीजी सनम, फ‍िर अबला को सबला बनाने की खाई कसम

लुधियाना, [मुनीश शर्मा]। भारतीय नारियां आज पुरुषों से आगे बढ़कर काम कर रही हैं। नारियों ने घर की जिम्मेदारियां निभाते हुए संघर्ष की भट्ठी में तपकर खुद को हर क्षेत्र में साबित कर अपना लोहा मनवाया है। आज गांव से लेकर महानगर तक महिलाओं की सफलता के झंडे बुलंद हैं। अब हम बात करेंगे उस नारी की जिसको एक महिला के दुख-दर्द ने झकझोर कर रख दिया। है तो वह भी समाज का ही हिस्सा, लेकिन महिला का दर्द सुनकर उसने समाज की उन महिलाओं के लिए कुछ करने की ठानी जिनके पास रोजगार नहीं था, कोई हुनर या कला नहीं थी।

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पहले पहल तो उनको कुछ कठिनाइयां जरूर हुई, लेकिन बाद में नवोदय फाउंडेशन बनाकर कमजोर वर्ग की महिलाओं को हुनरमंद बनाने के लिए स्थायी तौर पर नींव रख दगी। यह महिला है शहर के प्रमुख ज्यूलर्स जगन्नाथ रामसहाय एंड संस ज्यूलर्स की संचालिका सनम मेहरा। इस संबंधी उन्होंने जानकारी साझा की।

घर में काम करने वाली महिलाओं से की शुरुआत

जीवन में कई मोड़ ऐसे आते हैं, जो आपको झकझोर कर रख देते हैं। आपको नए रास्ते मिल जाते हैं। कुछ ऐसा ही एक वाक्या करीब पांच साल पहले मेरे साथ हुआ। मेरे ज्यूलर स्टोर पर काम करने वाली एक महिला की पारिवारिक हालत बेहद खराब थी। उसने इसके बारे में बताया तो मेरा मन झकझोर गया। तब सोच लिया कि जीवन में कुछ ऐसा करूंगी कि महिलाओं को आत्मनिर्भर और उन्हें हुनरमंद बनाया जा सके। इसके लिए पहले फेज में शुरुआत घर से ही की। यानी कि घर में काम करने वाले महिलाओं को स्किल देने का काम पांच साल पहले ही थोड़ा बहुत शुरू किया।

दुगरी में है सेंटर, महिलाओं को देती हैं प्रशिक्षण

फाउंडेशन के साथ करीब 20 साल से जुड़ी हुई हूं। यह फाउंडेशन विशेष बच्चों की देखभाल और उनके विकास को लेकर कार्य करती है। तब इसमें काम करते-करते मैंने अपनी ही तरह की सोच रखने वाली महिलाओं को साथ जोड़ा और फिर दो साल पहले 2017 में नवोदय फाउंडेशन की स्थापना की। इसमें अभी 18 सदस्य हैं। अब वह इस एनजीओ के माध्यम से महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए काम कर रहीं हैं। इसको लेकर बकायदा दुगरी में सेंटर बनाया गया है। वहां महिलाओं को सिलाई-कढ़ाई, ब्यूटिशियन, कंप्यूटर एवं कुकिंग का काम सिखाया जा रहा है।

एक पंथ दो काज

क्रिएटिव बनाने के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण में भी योगदान मैंन जहां महिलाओं को स्किल्ड बनाने के लिए अभियान आरंभ किया, वहीं पर्यावरण संरक्षण के लिए भी काम शुरू किया। महिलाओं को रिसाइकिल उत्पादों से नो प्लास्टिक बैग्स अभियान से जोड़ रहे हैं। शहर की बुटीक में वेस्ट कटिंग कपड़ों से हैंड और कैरीबैग बनाने की ट्रेनिंग दी जा रही है ताकि प्लास्टिक के इस्तेमाल को खत्म करने के साथ-साथ वेस्ट से महिलाओं को कुछ क्रिएटिव बनाना सिखाया जा सके। साथ ही कुकिंग में आचार, मुरब्बे, शरबत बनाने सिखाए जा रहे हैं। ब्यूटिशियन कोर्स और कंप्यूटर में बेसिक के साथ-साथ बिलिंग के सॉफ्टवेयर सिखाए जा रहे हैं।

यातायात की भी सुविधा

जगन्नाथ रामसहाय एंड संस ज्यूलर्स की संचालिका सनम मेहरा का कहना है कि  इस प्रोजेक्ट में निचले वर्ग पर ध्यान केंद्रित किया गया है। ऐसे में जहां घर में काम करने वाली महिलाओं और उनकी बेटियों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रशिक्षण दिया जाता है, वहीं झुग्गी झोपड़ी में रहने वाली महिलाओं को भी केंद्र में लाकर हुनरमंद बनाया जाता है। इसके लिए बकायदा उनको आने-जाने के लिए यातायात सुविधा भी मुहैया करवाई जाती है। आने वाले समय में महिला किसानों के लिए भी मार्केटिंग सहित विभिन्न कोर्स आरंभ किए जाएंगे। उनकी एनजीओ अभी तक 100 से अधिक महिलाओं को आत्मनिर्भर बना चुकी है।

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