पर्यावरण संरक्षणः लुधियाना में पर्यावरण प्रेमी रोहित निगम के सहयोग से बुड्ढा दरिया के आसपास लगा रहे माइक्रो जंगल
लुधियाना में आयकर विभाग में कार्यरत आइआरएस अधिकारी एवं पर्यावरण प्रेमी रोहित मेहरा नगर निगम के सहयोग से बुड्ढा दरिया के आसपास माइक्रो जंगल लगा रहे हैं। अभी तक बुड्ढा दरिया के पास और शहर में 25 माइक्रो जंगल लगाए जा चुके हैं।
लुधियाना [राजीव शर्मा]। हरियाली बढ़ाने के लिए यूं तो पिछले कई वर्षों से जिले में हर साल लाखों पौधे लगाए जाते हैं, लेकिन इनमें अधिक संख्या में पौधे बड़े होने से पहले ही नष्ट हो जाते हैं। ऐसे में इस तरह पौधारोपण करने से हरियाली बढ़ाने की दिशा में कुछ खास काम नहीं हो पा रहा था। हरियाली बढ़ाने के लिए अब माइक्रो जंगल लगाए जा रहे हैं। देश में इसकी शुरुआत स्वयंसेवी संगठन इको सिख ने की है। इसी पैटर्न पर आयकर विभाग में कार्यरत आइआरएस अधिकारी एवं पर्यावरण प्रेमी रोहित मेहरा नगर निगम के सहयोग से बुड्ढा दरिया के आसपास माइक्रो जंगल लगा रहे हैं। वह बताते हैं कि अभी तक बुड्ढा दरिया के पास और शहर में 25 माइक्रो जंगल लगाए जा चुके हैं। इस साल यह संख्या तीन सौ तक पहुंचा दी जाएगी। माइक्रो जंगल में ढाई वर्ग फीट में तीन पौधे लगाए जाते हैं। रोहित का दावा है कि माइक्रो जंगल में लगाए गए पौधों की सक्सेस रेट 99 फीसद है। उधर, इको सिख संगठन भी माइक्रो जंगल लगा रहा है। इससे इस साल के अंत तक लुधियाना में माइक्रों जंगलों की संख्या लगभग चार सौ हो होने की उम्मीद है।
देसी पौधे बनाते हैं आक्सीजन चैंबर
मेहरा बताते हैं कि माइक्रो जंगल में अशोक, नीम, मोरिंगा, खस, लेमनग्रास, आंवला, सिंबल, अर्जुन, बेहड़ा, पलाश, हरड़, महुआ, बेरी, पीलू, लसूड़ी, हरसिंगार व मलेय समेत कई तरह के देसी पौधे लगाए जाते हैं। ये सौ फीसद आर्गेनिक एवं बायो डाइवर्स होते हैं और पानी को शुद्ध करते हैं। साथ ही, आक्सीजन चैंबर का काम करते हैं। इन माइक्रो जंगलों के माध्यम से शहर में हरियाली बढ़ाई जा रही है। उनके अनुसार रोजाना नौ सौ वर्ग फीट माइक्रो जंगल नए बनाए जा रहे हैं। अभी तक बने जंगलों में रोजाना दो टन गोबर एवं बायो मास का उपयोग हो रहा है। गोबर एवं बायोमास के सही उपयोग से भी प्रदूषण कम हो रहा है। निगम एवं रोहित मेहरा के इन प्रयासों को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की टीम ने भी सराहा है।
माइक्रो जंगल तैयार करने का तरीका
रोहित बताते हैं कि इसके तहत पहले जमीन को तीन फीट नीचे तक खोदा जाता है। फिर इसे ड़ी, देसी खाद-गोबर एवं बायोमास और मिट्टी डाल कर तैयार किया जाता है। फिर उसमें गोमूत्र, गुड़, बेसन, दाल का आटा एवं जंगल की मिट्टी से जीवन अमृत तैयार किया जाता है। पौधों को इस जीवन अमृत में भिगो कर जमीन में रोपा जाता है। पौधे लगाने के बाद पराली की छह इंच मोटी परत बिछाई जाती है। यह परत तापमान रोधी कवच का काम करती है। बाहर यदि 48 डिग्री तापमान है तो पराली के नीचे 25 से तीस डिग्री तापमान रहता है। यदि सर्दी में बाहर एक डिग्री तापमान है तो पौधे के नीचे 25 से तीस डिग्री तापमान रहता है। इससे पौधे की ग्रोथ बेहतर होती है। यह स्थिति पौधे एवं मित्र जीवाणुओं दोनों के लिए बेहतर है। स्थिर तापमान में मिट्टी की नमी बनी रहती है। ऐसे में एक पौधे को पनपने के लिए केवल आधा लीटर पानी रोजाना चाहिए। दो साल में यह माइक्रो जंगल विकसित हो जाता है।
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