साधु है तो परमात्मा का शासन है: मुनि मोक्षानंद
हमारी आत्मा चौरासी के चक्कर में उलझी हुई है। इस चक्रव्यूह का भेदन करने के लिए, इस भव चक्र से मुक्ति पाने के लिए एक ही चक्र है। और वह है सिद्धाचक्र। जब हम सिद्धचक्र जी की आराधना करते है तो इससे इतनी शक्ति पैदा होती है जोकि हमारे भव चक्र को काट देती है।
संस, लुधियाना : हमारी आत्मा चौरासी के चक्कर में उलझी हुई है। इस चक्रव्यूह का भेदन करने के लिए, इस भव चक्र से मुक्ति पाने के लिए एक ही चक्र है। और वह है सिद्धाचक्र। जब हम सिद्धचक्र जी की आराधना करते है तो इससे इतनी शक्ति पैदा होती है जोकि हमारे भव चक्र को काट देती है। उक्त विचार आत्म धर्म कमल हाल में जैनाचार्य नित्यानंद सूरीश्वर महाराज के सानिध्य में पंच परमेष्ठी समारोह मुनि मोक्षानंद ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि आज हम पंच परमेष्ठी के अंतिम पद की आराधना करेंगे। नवपद जी हमारे जिन शासन का सार है तो साधु पद, नवपद का सार है। साधु है तो परमात्मा का शासन है, अगर साधु नहीं तो परमात्मा का शासन भी नहीं है। सिद्ध पद पाने के लिए आचार्य पद जरूरी नहीं, लेकिन साधु पद के बिना न आप अरिहंत बन सकते है न ही आचार्य या उपाध्याय बन सकते हैं। यदि हम श्रावक कुल में पैदा हुए हैं तो हमें सदा ही चारित्र पद साधु पद की कामना करते रहना चाहिए। पंच परमेष्ठी में भी साधु को पांचवा पद दिया गया है। इस संसार में यदि साक्षात कल्प वृक्ष है तो वह साधु ही है। यह चलते फिरते प्रत्यक्ष परमात्मा है। साधु भगवंतों के दर्शन करने के लिए लोग दूर-दूर से आते है क्योंकि साधु जंगम तीर्थ है। साधु भगवंतों का दर्शन भी पुण्य से प्राप्त होता है। अ¨हसा, क्षमा आदि गुणों को धारण करके पांच महाव्रतों का पालन करने में जो शूरवीर है वहीं सच्चा साधु है। आज कई लोग साधु की साधुता को नमन नहीं कर रहे हैं, बल्कि व्यक्तिगत रूप से जिस साधु से परिचय हो गया। सिर्फ उसको ही मानकर साधु पद की अवहेलना कर रहे है। जैन शासन में व्यक्ति को महत्व नहीं दिया गया, बल्कि जिसमें भी साधुता के गुण है उन सभी को वंदन नमस्कार करने का निर्देश दिया है। गच्छाधिपति जी की निश्रा में नवपद शाश्वती आयंबिल तप ओली करने वाले पचास आराधक है। इसके साथ ही उपद्यान तप की 47 दिन की आराधना भी शुरू हो चुकी है जिसमें देश के विभिन्न श्रावक-श्राविकाएं आराधना करने महानगर में गुरु चरणों में पहुंचे है। उपद्यान का लाभ फरीदाबाद निवासी लाला लाभचंद राजकुमार, शांति लाल जैन ओसवाल परिवार ने प्राप्त किया, जबकि नवपद ओली का लाभ महानगर के एक गुरु भक्त परिवार ने गुप्ता नाम से प्राप्त किया।