Agriculture Bill 2020: पंजाब के राजनीतिक दलों में किसानों का हितैषी बनने की मची होड़
Agriculture Bill 2020 सभी दल किसानाें के हितैषी दिखने की तैयारी में हैं। शिरोमणि अकाली दल के प्रधान सुखबीर बादल ने पहले 21 सितंबर को दरबार साहिब में जाकर किसानों के लिए अरदास करने का कार्यक्रम बनाया था लेकिन अब उस पर फैसला आज की बैठक में होगा।
लुधियाना, [भूपेंदर सिंह भाटिया]। Agriculture Bill 2020: किसानों के विरोध के बावजूद केंद्र ने कृषि बिल पास कर दिया। अब राजनीतिक दलों में किसानों का हितैषी बनने की होड़ मच गई है। प्रत्येक राजनीतिक दल किसानों का हमदर्द बनने के लिए अलग-अलग धरना प्रदर्शन कर रहा है। इतना ही नहीं, तिथि का टकराव न हो, इसे लेकर भी मारामारी चल रही है।
शिरोमणि अकाली दल के प्रधान सुखबीर बादल ने पहले 21 सितंबर को दरबार साहिब में जाकर किसानों के लिए अरदास करने का कार्यक्रम बनाया था, लेकिन अब उस पर फैसला आज की बैठक में होगा। कांग्रेस ने दिल्ली के लिए बाइक रैली निकालने की तैयारी कर ली है, पर तिथि का फैसला लटका है। विधानसभा हलके में विधायक के नेतृत्व में धरने हो रहे हैं। लोक इंसाफ पार्टी ने तो 23 सितंबर को दिल्ली कूच की भी तैयारी कर ली है। आखिर किसान पंजाब का सबसे बड़ा वोट बैंक है। पार्टियां मौका भुनाने में लगी हैं।
शिअद से रिश्तों पर चुप्पी
भाजपा की केंद्रीय टीम ने कृषि अध्यादेश पर शिअद को खरी-खोटी सुना दी है। सहयोगी पार्टी को किसान विरोधी तक करार दिया है। भाजपा के सीनियर प्रदेश नेताओं का कहना है कि प्रदेश में उनका गठबंधन बना रहेगा। ऐसे में भाजपा की लोकल लीडरशिप पसोपेश में हैं। उन्हें यह समझ ही नहीं आ रहा कि उन्हें शिरोमणि अकाली दल के साथ मिलकर काम करना है या फिर अकेले चलो की राह पकड़नी है।
स्थानीय भाजपा नेता बिल के समर्थन में तो बोल रहे हैं, लेकिन शिअद से रिश्तों पर चुप्पी साधी है। वह शिअद के खिलाफ कुछ नहीं कह रहे। शिअद के स्थानीय नेता भी मुंह पर ताला लगाए बैठे हैं। वह न तो भाजपा के खिलाफ सामने आ रहे हैं और न ही बिल के विरुद्ध कुछ कह रहे हैं। एक वरिष्ठ नेता का कहना था कि पार्टी हाईकमान ने कुछ भी बयान नहीं देने का निर्देश दिया है।
नेता जी हुए उदार
विधानसभा चुनाव को अभी दो साल बाकी हैं, लेकिन लुधियाना के राजनीतिज्ञ अभी से गोटियां सेट करने में लग गए हैं। पिछले दो चुनाव में लुधियाना नॉर्थ से भाजपा के उम्मीदवार रहे प्रवीण बांसल भले ही अपनी पार्टी के विद्रोही नेताओं के कारण जीत से वंचित रह गए, लेकिन इलाके में उनकी लोकप्रियता काफी है। शहर के सीनियर डिप्टी मेयर रह चुके बांसल अचानक ही सेंट्रल हलके को लेकर काफी उदार हो गए हैं।
सेंट्रल में जहां उनकी गतिविधियों में अब इजाफा हो गया है, वहीं वह अपनी ही पार्टी के प्रतिद्वंद्वी व वयोवृद्ध नेता सतपाल गोसाईं के करीब होते जा रहे हैं। वह उन्हें कार्यक्रमों में सम्मानित तक करवा रहे हैं। हालांकि बांसल के बदले रुख को पार्टी के ही नेता भांप नहीं पा रहे। एक सीनियर नेता का कहना था कि बांसल कहीं विधानसभा क्षेत्र बदलने की तैयारी तो नहीं कर रहे। विधानसभा चुनाव में अभी काफी वक्त है।
पार्टी को जिलाध्यक्ष की तलाश
अगले विधानसभा चुनाव के लिए अन्य राजनीतिक दलों की तरह आम आदमी पार्टी (आप) ने भी तैयारियां शुरू कर दी हैं। पिछले दिनों जगराओं की विधायक व विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष सरबजीत कौर माणूके के नेतृत्व में आप वर्करों ने प्रदेश व केंद्र के खिलाफ कई धरने दिए, लेकिन पार्टी को पिछले तीन सालों से अदद जिलाध्यक्ष की तलाश है। जिलाध्यक्ष के नहीं होने से शहर के छह विधानसभा क्षेत्रों में पार्टी कार्यकर्ता अलग-थलग पड़े हुए हैं। माणूके मानती हैं कि जिलाध्यक्ष नहीं है और उन्हें खुद यह जिम्मेदारी भी संभालनी होती है।
बकौल माणूके एक अदद जिलाध्यक्ष की तलाश हो रही है। आने वाले दो-चार दिनों में इसकी घोषणा कर दी जाएगी। पिछले विस चुनाव में जिले में पार्टी को कोई कामयाबी नहीं मिली थी, जिसके बाद पार्टी के जिलाध्यक्ष ने पद छोड़ दिया था और पार्टी गतिहीन हो गई थी। देखो तलाश कब पूरी होती है।