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Punjab Police की डाइट के साथ बड़ा मजाक, 30 साल से भोजन के लिए रोजाना मिल रहे सिर्फ 3.25 रुपये

महंगाई के इस दौर में पंजाब पुलिस में कांस्टेबल से लेकर डीएसपी स्तर तक के अधिकारियों को एक दिन का खाना खिलाने के लिए मात्र 3.33 रुपये मिल रहे हैं। 24-24 घंटे ड्यूटी देने वाले पुलिस कर्मचारियों के साथ यह मजाक कई वर्षों से हो रहा है।

By Pankaj DwivediEdited By: Published: Sun, 25 Jul 2021 11:36 AM (IST)Updated: Sun, 25 Jul 2021 06:01 PM (IST)
Punjab Police की डाइट के साथ बड़ा मजाक, 30 साल से भोजन के लिए रोजाना मिल रहे सिर्फ 3.25 रुपये
पंजाब पुलिस के जवानों को अपनी डाइट के लिए हर महीने केवल 100 रुपये भत्ता मिलता है।

राजन कैंथ, लुधियाना। आज के दौर में एक चाय का कप भी दस रुपये में मिलता है लेकिन पंजाब पुलिस के जवानों को दिन में दो बार खाने के लिए सवा तीन रुपये मिल रहे हैं। जी हां, यह मजाक नहीं सच है। पंजाब पुलिस के जवानों को अपनी डाइट के लिए हर माह 100 रुपये भत्ता मिलता है। इस हिसाब से महंगाई के इस दौर में कांस्टेबल से लेकर डीएसपी तक के अधिकारियों को एक दिन का खाना खिलाने के लिए मात्र 3.33 रुपये मिल रहे हैं। कानून व व्यवस्था बनाए रखने के लिए 24-24 घंटे ड्यूटी देने वाले पुलिस मुलाजिमों के साथ विभाग की ओर से भोजन भत्ता देने के नाम पर यह मजाक साल दो साल नहीं दशकों से किया जा रहा है। विभागीय सूत्रों का कहना है कि एक अक्टूबर 1991 से जब भोजन भत्ता शुरू किया तो भोजन भी तीन-चार रुपये में मिलता था। अब 100 से 150 रुपये बिल भरना पड़ रहा है।

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 ऐसे समझें यह मजाक 

  • 10 रुपये का कप आता है इस समय चाय का।
  • 30 साल से हर महीने खाना के लिए मिल रहा 100 रुपये भत्ता।
  • 1991 में पुलिस कर्मचारियों व अधिकारियों के लिए शुरू किया गया था 100 रुपये महीना भोजन भत्ता
  • 1103 रुपये भत्ता इस समय मिलता है यूनिफार्म के लिए।
  • 50 रुपये महीने का भत्ता मिलता है वर्दी की मेनटेंनेंस के लिए। इसमें धुलाई व प्रेस दोनों के खर्च शामिल हैं।

इसलिए नहीं उठा सकते आवाज

डिस्पलिंड फोर्स होने के कारण अन्य सरकारी विभागों की तरह पुलिस विभाग में कर्मचारियों अथवा अधिकारी अपने अधिकारों की मांग के लिए संगठन नहीं बना सकते। वरिष्ठ अधिकारियों की ओर से समय-समय पर भोजन भत्ता बढ़ाने के लिए चंडीगढ़ हेड क्वार्टर व सरकार को लिखा तो जाता है, मगर 30 साल बाद भी सुनवाई नहीं हो रही। नतीजतन मुलाजिमों को अपनी जेब से पैसे खर्च करके पेट भरना पड़ता है।

अधिकारियों के भी हाथ खड़े

जवाब देने से कतराते हुए वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा कि इस मामले में जिला स्तर करने लायक कुछ भी नहीं होता। हम इसमें कुछ लिख कर भी नहीं भेज सकते। यह सब पे-कमीशन को तय करना होता है। जो हर दस साल के बाद विभिन्न विभागों से उनकी जरूरतों के हिसाब से लिस्ट मांगता है। इसे बाद में विधान सभा में पारित के लिए रखा जाता है। वहीं पर सभी भत्तों की परसंटेज तय की जाती है।

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