'पूसा' को मात देगी 'पंजाब बासमती', उपज व खुशबू में अव्वल; खूबी जानकर मुंह में आएगा पानी
लुधियाना के पंजाब कृषि विश्वविद्यालय ने बासमती चावल की बेहद खास किस्म विकसित की है। इसे नाम दिया गया है पंजाब बासमती। यह किस्म पूसा को भी मात दे देगी। यह उपज और खुशबू में अव्वल है। इसकी खासियात जानने के बाद आपके मुंह में भी पानी आ जाएगा।
लुधियाना, [आशा मेहता]। भारतीय बासमती की विदेश में तेजी से मांग बढ़ रही है। इस वजह से किसानों का रुझान भी इस ओर बढ़ा है। यह देखते हुए पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) लुधियाना के वैज्ञानिकों ने किसानों की आय बढ़ाने के मकसद से बासमती की नई किस्म तैयार की है। यह उपज, खुशबू और फसली रोगों से लडऩे में दूसरी किस्मों से बेहतर है। इस किस्म को 'पंजाब बासमती-सात' नाम दिया गया है। पीएयू के प्लांट ब्रीडिंग एंड जेनेटिक्स विभाग के वैज्ञानिकों ने 12 साल के शोध के बाद तीन अलग-अलग किस्मों के मेल से इसे तैयार किया है। इनमें एक किस्म पारंपरिक बासमती-386, दूसरी पूसा बासमती-1121 और तीसरी पूसा बासमती-1718 है।
पंजाब कृषि विवि के प्लांट ब्रीडिंग एंड जेनेटिक्स विभाग ने 12 साल के शोध के बाद तैयार की नई किस्म
वैज्ञानिकों का दावा है कि यह किस्म देश में सबसे ज्यादा लगाई जाने वाली पूसा बासमती-1121 का विकल्प बनकर निर्यात में अहम भूमिका अदा कर सकती है। पीएयू के प्रिंसिपल राइस ब्रीडर डा. आरएस गिल ने बताया कि उपज के मामले में 'पंजाब बासमती-सात' दूसरी किस्मों से आगे है। वह कहते हैं, 'हमने शोध में पाया कि पंजाब बासमती-सात की प्रति एकड़ औसत उपज 19 क्विंटल है, जबकि पूसा बासमती-1121 और 1718 की उपज प्रति एकड़ 17 क्विंटल है। यानी प्रति एकड़ दो क्विंटल ज्यादा।
पकने के बाद पंजाब बासमती चावल। (जागरण)
उन्होंने कहा कि पंजाब बासमती-सात की फसल 101 दिन में पककर तैयार हो जाती है, जबकि पूसा बासमती-1121 को 106 दिन और पूसा बासमती-1718 की फसल को 107 दिन लगते हैं। इससे किसानों के समय की बचत होगी। इसका कद छोटा है, जिससे पराली कम होती है। इस लिहाज से यह पर्यावरण के लिए लाभदायक है। बासमती का सबसे बड़ा गुण उसकी खुशबू है। 'पंजाब बासमती-सात' इस मामले में सभी अन्य किस्मों से बेहतर है। यूरोपीय देशों में खुशबू वाली पारंपरिक बासमती की काफी मांग है।
डा. गिल के मुताबिक पूसा बासमती-1121 में झुलसा रोग (बैक्टीरियल ब्लाइट) के जीवाणुओं से मुकाबला करने की क्षमता नहीं है, जबकि पंजाब बासमती-सात फसल की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह झुलसा रोग के जीवणुओं की दस प्रजातियों का मुकाबला करने की क्षमता रखती है। झुलसा रोग से फसल को 60 से 70 फीसद तक नुकसान हो सकता है।
पूसा बासमती के दाने पकने के बाद दोगुने से अधिक लंबे हो जाते हैं, जबकि कच्चे दाने की औसत लंबाई 8.68 मिलीमीटर है। अरब देशों में लंबे दाने वाली बासमती की ज्यादा मांग है। पंजाब बासमती-सात के कच्चे दाने की औसत लंबाई 8.67 मिलीमीटर है, जो पकने के बाद पूसा के बराबर हो जाते हैं।
64 रिसर्च ट्रायल के बाद की सिफारिश
प्लांट ब्रीडिंग एंड जेनेटिक्स विभाग के हेड डा. जीएस मांगट ने बताया कि इस किस्म को वैज्ञानिकों ने 44 से अधिक रिसर्च ट्रायल में टेस्ट किया। इसके बाद एक साल तक सूबे के बीस कृषि विज्ञान केंद्रों में फील्ड ट्रायल किए गए। कुल 64 रिसर्च ट्रायल के बाद अब जाकर किसानों के लिए इसकी सिफारिश की गई है।
इसलिए बेहतर है खुशबू
बासमती में दो तरह की किस्में हैं। एक फोटो पीरियड सेंसटिव व दूसरी फोटो पीरियड इनसेंसटिव। फोटो पीरियड सेंसटिव का मतलब यह है कि यह फसल अनुकूल वातावरण में ही पकेगी। दिन छोटे और तापमान कम हो, तभी यह किस्म पकेगी, जबकि फोटो पीरियड इनसेंसटिव किस्म प्रतिकूल मौसम में भी निर्धारित समय पर पक कर तैयार हो जाती है। अनुकूल मौसम में पकने वाली बासमती की खुशबू ज्यादा बेहतर रहती है। पीएयू की पंजाब बासमती-सात भी फोटो पीरियड सेंसटिव किस्म है। इससे इसकी क्वालिटी और खुशबू ज्यादा बेहतर है।
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