सलाद में सेहत की खुराक बढ़ाएगा यह खास खीरा, पीएयू ने तैयार की संकर किस्म, किसानों की आय होगी दोगुनी
PAU Ludhiana Research वैज्ञानिकों का दावा है कि पीकेएच-11 किस्म से प्रति एकड़ 80 हजार रुपये से अधिक का मुनाफा कमा सकेंगे। इससे खीरा उत्पादकों की आय दो गुणा हो जाएगी। इस किस्म को पालीहाउस व नेटहाउस के लिए तैयार किया है।
लुधियाना, [आशा मेहता]। PAU Ludhiana Research: भोजन के दौरान सलाद के तौर पर सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाला खीरा आपकी सेहत के साथ-साथ किसानों की आर्थिक स्थिति भी सुधार सकता है। लुधियाना स्थित पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) के विज्ञानियों ने पहली बार बीजरहित खीरे की हाइब्रिड (संकर) किस्म विकसित की है। इसे पीकेएच-11 नाम दिया गया है। विज्ञानियों का कहना है कि पंजाब की यह पहली संकर किस्म है। पीएयू के सब्जी विज्ञान विभाग के वरिष्ठ विज्ञानी डा. राजिंदर कुमार ढल ने करीब छह साल के शोध के बाद इसे तैयार किया है।
स्वास्थ्य के लिए ज्यादा फायदेमंद
डा. राजिंदर कुमार ढल ने बताया कि यह खीरा स्वास्थ्य के लिए भी सामान्य खीरे से अधिक फायदेमंद है। पाचनतंत्र में सुधार और वजन कम करने में सहायक है। यह विटामिन-के का अच्छा स्नोत है, जो कोशिकाओं के विकास में मददगार है। इसके अलावा आंखों और त्वचा के लिए भी यह स्वास्थ्यवद्र्धक है।
80 हजार तक का अधिक लाभ
इस संकर किस्म के खीरे में न तो बीज हैं और न ही कड़वाहट। इसे खाने से पहले छीलने की भी जरूरत नहीं है। इसका छिलका काफी पतला होता है। प्राइवेट कंपनियों के बीजरहित संकर किस्म के खीरे की तुलना में पीकेएच-11 खीरे का उत्पादन अधिक है। दावा है कि जो खीरा उत्पादक पीकेएच-11 किस्म से प्रति एकड़ 80 हजार रुपये से अधिक का लाभ कमा सकेंगे।
इसलिए उत्पादन अधिक
डा. ढल के अनुसार पीकेएच-11 का उत्पादन दोगुना होने की मुख्य वजह यह है कि इसकी बेल की हर गांठ में मादा फूल होते हैं। मादा फूल से ही खीरा विकसित होता। जितने ज्यादा मादा फूल होंगे, उतने ही ज्यादा खीरे लगेंगे। मादा फूल से खीरा बनने में किसी तरह के पर-परागण की आवश्यकता नहीं है। ऐसे में हर फूल पर खीरे लगते हैं। इस खीरे की लंबाई 15 से 16 सेंटीमीटर है और एक खीरे का वजन 150 से 160 ग्राम होता है। सामान्य खीरे की लंबाई 12 से 15 सेंटीमीटर के बीच होती है। एक खीरे का वजन 120 से 125 ग्राम होता है। पंजाब में खीरा उत्पादक जिन किस्मों को उगाते हैं, उनकी बेल में नर व मादा दोनों फूल आते हैं। मादा फूलों की संख्या कम होती है। साधारण किस्म में पर-परागण की जरूरत भी होती है।