डाक्टरों की लापरवाही से काटनी पड़ी मरीज की बाजू, 50 लाख मुआवजे का आदेश
आयोग ने 33 हजार रुपये बतौर केस खर्च के साथ-साथ शिकायत दर्ज करने की तारीख से सात फीसद प्रति वर्ष ब्याज सहित भुगतान करने का भी आदेश दिया।
जागरण संवाददाता, लुधियाना : राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग, चंडीगढ़ ने लुधियाना के सुंदर नगर स्थित धवन सर्जिकल व मल्टी स्पेशलिटी अस्पताल, डा. मोनिका धवन (सर्जन) और डा. गगनदीप सिंह (हड्डियों के विशेषज्ञ) को चिकित्सा में लापरवाही के लिए मरीज को 50 लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया है। चिकित्सकीय लापरवाही के कारण पीड़ित की बाई बाजू कोहनी के नीचे से काटनी पड़ी थी।
लुधियाना की बाजरा कालोनी निवासी मां डिपल शर्मा ने शिकायत दी थी कि 18 अप्रैल 2013 को उसका बेटा अमृत राज घर की छत पर खेलते समय गिर गया। उसे तुरंत धवन अस्पताल में दाखिल करवाया गया। वहीं डा. मोनिका धवन और डा. गगनदीप ने अमृत का चेकअप किया। इस दौरान बाई बाजू में कलाई पास एक घाव था और हाथ की दोनों हड्डियों में फ्रैक्चर था। डिंपल ने कहा कि डाक्टरों ने चोट की प्रकृति पर विचार किए बिना, लापरवाही से फ्रैक्चर वाले हाथ पर हथेली से ऊपर कोहनी तक प्लास्टर चढ़ा दिया। नतीजतन, मरीज को घाव और तंग प्लास्टर के कारण बाएं हाथ में लगातार दर्द रहने लगा। मरीज को अगले ही दिन अस्पताल से छुंट्टी दे दी गई। हाथ में दर्द के मारे अमृत सारी रात सो नहीं सका। अगली सुबह वह अमृत को लेकर दोबारा अस्पताल पहुंची। तब हाथ में तेज दर्द के साथ बदबू भी आ रही थी। डा. मोनिका ने उन्हें शाम तक इंतजार करने को कहा और आश्वासन दिया कि सब ठीक हो जाएगा, लेकिन कोई सुधार नहीं हुआ। बाद में मध्यरात्रि 2:30 बजे उसे छुट्टी दे दी गई। उसे सीएमसी अस्पताल में भर्ती कराया गया और गैंग्रीन फैलने के कारण कोहनी से नीचे की बाईं बाजू काटनी पड़ी। ऐसे में डाक्टरों की लापरवाही को देखते हुए कार्रवाई की जाए।
डाक्टरों ने आरोप नकारे, पर आयोग ने कहा ये गंभीर लापरवाही
डाक्टरों और अस्पताल अधिकारियों ने अपना तर्क रखते हुए आरोपों का खंडन किया और उन्हें निराधार करार दिया। दलील दी गई कि सिविल सर्जन लुधियाना द्वारा गठित मेडिकल बोर्ड ने अपनी राय में दिनांक 28 जून 2013 और बाद में इस आयोग के आदेशों पर गठित मेडिकल बोर्ड ने भी कहा कि अस्पताल और उसके डाक्टरों की ओर से कोई चिकित्सकीय लापरवाही नहीं है। हालांकि दोनों पक्षों के दस्तावे•ा जांचने व शिकायतकर्ता के वकील ललित पाठक की दलीलों से सहमत होते हुए आयोग ने इसे गंभीर लापरवाही करार दिया।
केस खर्च व सात फीसद ब्याज भी देना होगा
जस्टिस परमजीत सिंह धालीवाल ने फैसला सुनाते हुए कहा कि चिकित्सकीय लापरवाही के कारण बच्चा हमेशा के लिए विकलांग हो गया। इससे उसका भविष्य बुरी तरह से प्रभावित होगा। आयोग ने 33 हजार रुपये बतौर केस खर्च के साथ-साथ शिकायत दर्ज करने की तारीख से सात फीसद प्रति वर्ष ब्याज सहित भुगतान करने का भी आदेश दिया।