ओलंपिक 1984 में तिरंगा फहराया तो मानो सबकुछ पाया, पर सेमीफाइनल में बाहर होने की टीस आज भी
वर्ष 1984 की बात है। अमेरिका के लॉस एंजिलिस में ओलंपिक गेम्स के ओपनिग इवेंट में कई देशों के हजारों खिलाड़ी परेड में भाग ले रहे थे।
कृष्ण गोपाल, लुधियाना
वर्ष 1984 की बात है। अमेरिका के लॉस एंजिलिस में ओलंपिक गेम्स के ओपनिग इवेंट में कई देशों के हजारों खिलाड़ी परेड में भाग ले रहे थे। इस बीच जब भारत का नाम आया, तो देश का राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा फहराया गया। तब ऐसा लगा मानो जिंदगी में सब कुछ पा लिया हो। ओलंपिक में भाग लेने वाले खिलाड़ी के लिए इससे बड़ा गर्व और यादगार पल कोई नहीं होता। मैंने सोचा था, यह मौका मुझे वर्ष 1984 में एकमात्र ओलंपिक खेलने में मिला जिससे मेरा सिर गर्व से ऊंचा हो गया। हालांकि ओलंपिक के सेमीफाइनल में जर्मनी के खिलाफ एक गोल के अंतर से मिली हार की टीस आज भी उनके मन को झिंझोरती है। यह बातें कहीं ओलंपियन हरदीप सिंह ने दैनिक जागरण से विशेष बातचीत में कहीं। उन्होंने ओलंपिक की यादों को साझा करते हुए कहा कि ऐसा पल हर खिलाड़ी की किस्मत बदल देता है। नेशनल हॉकी के विनिग गोल ने दिलाया ओलंपिक का टिकट
हरदीप सिंह ने बताया कि वर्ष 1976 से कॉलेज स्तर पर उन्होंने हॉकी खेलनी शुरू की। लगभग 18 वर्ष तक कड़ी मेहनत की। फिर उनके लिए विशेष मौका तब आया जब वर्ष 1984 में दिल्ली नेशनल हॉकी के फाइनल मुकाबले में सर्विसेज टीम के खिलाफ किए विनिग गोल ने उन्हें इंडियन कैंप में शामिल करवा दिया। कैंप में शानदार प्रदर्शन की बदौलत अमेरिका में हुए ओलंपिक गेम्स के लिए उन्होंने टिकट कटाया। इस बीच वर्ष 1986 में एशियन गेम्स में शानदार प्रदर्शन के लिए एशियन स्क्वायड में उनका, परगट सिंह और एमएम सौम्या का चयन हुआ तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। काश एक गोल की ओर बढ़त बनाई होती तो जर्मनी सेमीफाइन्ल में नहीं होती
वर्ष 1984 में ओलंपिक में भारत का जर्मनी की टीम के साथ मैच बेहद रोमांचक था। दोनों टीमों के खिलाड़ी बेहद जोश में थे। उस दौरान जफर इकबाल, मो. शाहजाद ( अब देहांत हो चुका) आदि दमदार खिलाड़ियों की जोड़ी ने लीग तक शानदार खेल दिखाया। मगर एक गोल के अंतर से भारतीय हॉकी टीम सेमीफाइनल से बाहर हो गई। इस एक गोल की टीस आज भी जहन में रहती है कि काश एक गोल की बढ़त बनाई होती तो, जर्मनी टीम मैच जीतकर सेमीफाइनल में न होती। मो. शाहजाद, जफर इकबाल से काफी प्रभावित
हॉकी ओलंपियन हरदीप सिंह ने कहा कि उनके समय के दौरान वैसे तो कई सितारे बेस्ट थे, लेकिन स्व. मोहम्मद शाहजाद, जफर इकबाल के खेल से वह काफी प्रभावित रहे।
हरदीप सिंह ने ने इन खेलों में दिखाए जौहर
-वर्ल्ड कप : लंदन (1986), लाहौर (1990)
-एशियन गेम्स : सियोल (1986) ढाका (1985)
ओलंपिक अमेरिका (1984)
चैंपियन ट्रॉफी : कराची (1983), पर्थ (1985)
टेस्ट सीरीज : इंडो-पाक (1986)
नेशनल हॉकी टूर्नामेंट : बर्लिन (1984) कोट्स
कोरोना वायरस जैसी महामारी से खेल भी अछूता नहीं है। 23 जून को ओलंपिक दिवस है, लेकिन इस बार ओलंपिक के स्थगित होने के बाद खेल विभाग से कोई आदेश नहीं आया है कि ओलंपिक पर क्या करना है, इसलिए उम्मीद कम है कि ऐसा हो।
-रविदर सिंह, जिला खेल अधिकारी
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ओलंपिक दिवस तो है, लेकिन सरकार के मिली गाइडलाइंस के अनुसार ज्यादा खिलाड़ियों को एकत्रित नहीं कर सकते है। हां इतना जरूर है कि जो प्रशिक्षण में आनलाइन या मैदान में भाग ले रहे है, उनको इस भव्य ओलंपिक के महत्व से अवगत करवाया जाएगा।
-संजीव शर्मा, एथलेटिक कोच