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झूलों की नहीं होती जांच, पूरे मेले की दी जाती है अनुमति

दशहरा पर्व के खत्म होते ही शहर के दर्जनों मैदानों में लगे झूले व चंडोल उतारने का काम शुरू हो गया है। जाते-जाते यह झूले एक परिवार को ऐसा दर्द दे गए जिसे वो ताउम्र नहीं भूल पाएगा। उस घर का एकलौता चिराग झूले वालों की लापरवाही की भेंट चढ़ गया।

By JagranEdited By: Published: Sun, 17 Oct 2021 04:03 AM (IST)Updated: Sun, 17 Oct 2021 04:03 AM (IST)
झूलों की नहीं होती जांच, पूरे मेले की दी जाती है अनुमति
झूलों की नहीं होती जांच, पूरे मेले की दी जाती है अनुमति

राजन कैंथ, लुधियाना : दशहरा पर्व के खत्म होते ही शहर के दर्जनों मैदानों में लगे झूले व चंडोल उतारने का काम शुरू हो गया है। जाते-जाते यह झूले एक परिवार को ऐसा दर्द दे गए, जिसे वो ताउम्र नहीं भूल पाएगा। उस घर का एकलौता चिराग झूले वालों की लापरवाही की भेंट चढ़ गया। अहम बात है कि मामले को गंभीरता से लेने के बजाय पुलिस व जिला प्रशासन उस पर लीपापोती करने में जुटा रहा। अमूमन इस तरह के जुगाड़ू झूलों पर कोई न कोई हादसा होता रहता है, लेकिन त्योहारी सीजन में दर्जनों जगहों पर उन झूलों को लगाने से पहले कभी प्रशासन ने उनके सुरक्षा मानकों की जांच करने की कोशिश नहीं की। उधर पुलिस ने सुरक्षा मानकों की जांच की जिम्मेदारी प्रशासन के ऊपर डाल दी।

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ऐसा नहीं है कि ग्यासपुरा के रामलीला मैदान में शुक्रवार शाम हुई आठ वर्षीय कुशप्रीत सिंह की मौत ऐसी लापरवाही का पहला मामला है। इससे पहले चंडीगढ़ रोड स्थित ग्लाडा ग्राउंड में झूले की राड निकल जाने से एक व्यक्ति नीचे जा गिरा था, जिसमें वो गंभीर रूप से घायल हो गया था। करीब चार साल पहले दरेसी मैदान में चंडोल पर झूला ले रही युवती के बाल झूले में फंस गई। इससे उसके सिर की खोपड़ी के मांस की परत और बाल अलग हो गए। सर्जरी के बाद उसे बचाया जा सका।

अक्सर देखने में आया है कि मेलों में लगने वाले झूलों की न तो परमिशन ली जाती है और न ही सुरक्षा मानकों की जांच की जाती है। हादसा हो जाने के बाद पुलिस व प्रशासन की आंख खुलती है। 20-30 रुपये की टिकट के लालच में झूला चलाने वाले कम उम्र के बच्चों को भी बिठा लेते हैं। किसी भी झूले के बाहर ऐसा बोर्ड या सूचना नहीं लगाई जाती कि झूले पर बैठने के लिए कम से कम उम्र कितनी होनी चाहिए। खासकर किश्ती वाले झूले में तो युवा वर्ग खड़े होकर हल्ला मचाते दिखते हैं। ऐसे में कभी भी बड़ा हादसा होने या फिर संतुलन बिगड़ने से चलते झूले से गिरने का डर बना रहता है। पूरे मेले की होती है अनुमति

ज्वाइंट पुलिस कमिश्नर (हेडक्वार्टर) जे एलनचेलियन का कहना है कि किसी भी मेले की सुरक्षा पुलिस के हाथ में होती है और किसी भी स्थल पर पूरे मेले की अनुमति दी जाती है। ऐसे में एक-एक झूले या अन्य मनोरंजक कार्यक्रम की अनुमति अलग-अलग नहीं होती है। मेले की सुरक्षा की जांच पुलिस प्रशासन करता है, लेकिन जहां तक झूले आदि के सुरक्षा मानकों की बात है वह मेला आयोजक और प्रशासन की होती है।


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