CIPHET वैज्ञानिकों की नई खोज, जैविक विधि से निकलेगा खल से प्रोटीन, सेहत के साथ होगी अच्छी कमाई भी
पंजाब के लुधियाना पीएयू कैंपस स्थित सिफेट वैज्ञानिकों ने तीन साल के शोध के बाद जैविक विधि से खल से प्रोटीन निकालने की नई तकनीक इजाद की है।
लुधियाना [आशा मेहता]। सोयाबीन व मूंगफली की खल (तेल निकालने के बाद बचे हुए पदार्थ) से सेहत अच्छी रखने के साथ अच्छी कमाई भी की जा सकती है। इससे विदेशी मुद्रा की भी बचत की जा सकती है। आइसीएआर सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्ट हार्वेस्ट इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी (Central Institute of Post Harvest Engineering and Technology CIPHET) के वैज्ञानिकों ने जैविक विधि (बायोलॉजिकल प्रोसेस) से सोयाबीन व मूंगफली की खल से प्रोटीन निकालने में सफलता हासिल की है।
सिफेट वैज्ञानिकों का दावा है कि उन्होंने विश्व में पहली बार जैविक विधि से प्रोटीन निकाला है। इसके लिए विशेष प्रकार के बैक्टीरिया का इस्तेमाल किया गया है। यह बैक्टीरिया स्वास्थ्य के लिए बेहद फायदेमंद है। मौजूदा समय में रासायनिक विधि से खल से प्रोटीन निकाला जा रहा है। इसमें खल से प्रोटीन निकालने के लिए अम्ल (एसिड) का प्रयोग होता है, जो कि शरीर के लिए नुकसानदायक होते हैं। इससे प्रोटीन की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है। यह शोध सिफेट के प्रिंसिपल साइंटिस्ट डॉ. डीएन यादव की टीम ने की है।
उन्हेंं नेशनल एग्रीकल्चरल साइंस फंड आइसीएआर नई दिल्ली की ओर से वर्ष 2018 में सोयाबीन और मूंगफली की खल से प्रोटीन निष्कर्षण को लेकर पौने तीन करोड़ का प्रोजेक्ट मिला था। उनका कहना है कि अगर रासायनिक विधि से सौ किलोग्राम सोयाबीन की खल से लगभग 28 से 30 किलोग्राम प्रोटीन का उत्पादन होता है तो जैविक विधि से लगभग 34 से 35 किलोग्राम प्रोटीन प्राप्त किया जा सकता है। सिफेट की ओर से इस शोध को लेकर राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय स्तर पर पेटेंट के लिए आवेदन कर दिया गया है। यह समस्त शोध कार्य सिफेट के निदेशक डॉ. आरके सिंह की अगुआई में किया गया है।
जैविक विधि में खल से ऐसे निकलेगा प्रोटीन
शोधकर्ता डॉ. डीएन यादव के अनुसार प्रोटीन निकालने के लिए खल को पानी में डाल दिया जाता है। फिर सोडियम हाईड्रो ऑक्साइड से पीएच बढ़ाते हैं और मिक्स करते हैं। खल से प्रोटीन निकालने के लिए सिफेट में एक पायलट प्लांट स्थापित किया गया है। इसके तहत एक ऐसी मशीन तैयार की गई है, जिसकी क्षमता दस किलोग्राम प्रति बैट है। एक बार में दस किलोग्राम खल मिक्स की जा सकती है। इसके बाद मशीन के जरिये खल को अलग कर देते हैं। मशीन से खल को अलग करने के बाद शरीर के लिए लाभदायक विशेष प्रकार के बैक्टीरियां छोड़े जाते हैं। बैक्टीरिया से प्रोटीन नीचे बैठ जाता है। इसके बाद पानी के नीचे बैठे प्रोटीन को अलग कर लिया जाता है। बाद में मशीनों की मदद से प्रोटीन को ड्राई कर लिया जाता है।
रासायनिक विधि से ऐसे निकाला जाता है प्रोटीन
डॉ. यादव के अनुसार रासायनिक विधि में खल से प्रोटीन निकालने के लिए खल को पानी में डाल दिया जाता है। फिर सोडियम हाईड्रो ऑक्साइड से पीएच बढ़ाते है और मिक्स करते हैं। इसके बाद मशीन के जरिये खल को अलग कर देते हैं और उसमें हाइड्रो क्लोरिक अम्ल के इस्तेमाल से प्रोटीन को नीचे बिठाया जाता है। इसके बाद पानी के नीचे बैठे प्रोटीन को अलग कर लिया जाता है। फिर प्रोटीन को मशीनों की मदद से ड्राई कर लिया जाता है।
इसलिए पड़ी जरूरत
सिफेट के निर्देशक डॉ.आरके सिंह के अनुसार हमारे देश में लगभग 60 से 70 लाख टन सोयाबीन व मूंगफली की खल होती है। इसमें से लगभग 10 से 20 लाख टन खल का प्रयोग जानवरों को खिलाने में हम करते हैं। ज्यादातर खल पोल्ट्री में इस्तेमाल करते है। चीन को पचास लाख टन खल प्रतिवर्ष निर्यात करते हैं। बदले में हम चीन व यूएसए से 11 से 15 हजार टन प्रोटीन मंगवाते हैं। अगर हम चीन को बेचे जाने वाले पचास लाख टन खल से अपने देश में प्रोटीन उत्पादन करना शुरू कर दें तो लगभग 15 लाख टन प्रोटीन बना सकते हैं। इससे न सिर्फ हमारी जरूरत पूरी होगी, बल्कि हम अपने पड़ोसी देशों को भी प्रोटीन दे सकते हैं। इससे एक तो विदेशी मुद्रा की बचत होगी और हम कमाई भी कर सकते हैं।
उन्होंने कहा कि हम 15 लाख टन प्रोटीन का उत्पादन करेंगे, उसकी कीमत करीब पांच हजार दो सौ करोड़ रुपये होगी। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे चार के अनुसार हमारे देश में लगभग पांच साल से छोटी आयु के 36 प्रतिशत बच्चे कुपोषण का शिकार है। 15 से 50 साल की आयु की 23 प्रतिशत महिलाएं और 30 प्रतिशत पुरुष कुपोषित हैं। ऐसे में एक ऐसे देश में जहां इतनी बड़ी तादाद में लोग कुपोषण का शिकार है, वहां अगर जानवरों को खिलाई जा रही खल से प्रोटीन निकाला जाए तो हम अपनी एक बड़ी आबादी के लिए प्रोटीन की जरूरत को पूरा कर सकते हैं।