'जरूरत से अधिक न बोलें, बिना पूछे सलाह न दें'
एसएस जैन स्थानक किचलू नगर में विराजमान राजस्थान प्रवर्तक संत डॉ. राजेंद्र मुनि साहित्य दिवाकर सुरेंद्र मुनि की अगुआई में प्रार्थना सभा आयोजित की गई।
संस, लुधियाना : एसएस जैन स्थानक किचलू नगर में विराजमान राजस्थान प्रवर्तक संत डॉ. राजेंद्र मुनि, साहित्य दिवाकर सुरेंद्र मुनि की अगुआई में प्रार्थना सभा आयोजित की गई। गुरुदेव डॉ. राजेंद्र मुनि ने कहा कि क्रोध, लोभ, भय, हास्य, क्रीड़ा, कौतूहल, राग या द्वेष के कारण व्यक्ति झूठ का प्रयोग करता है। असत्य बोलने से जीव एकेन्द्रिय योनि में जाता है। वह मानव बनने पर गूंगा होता है, मुंह के रोगों से पीड़ित होता है, उसके मुंह से बदबू आती है।
असत्य बोलने वाले का समाज में कोई प्रभाव नहीं रहता। जरूरत से अधिक बोलना भी बुरा है। अधिक बोलने से शारीरिक, मानसिक तथा बौद्धिक शक्तियां क्षीण होती है। उसकी काफी शक्ति अधिक बोलने में खर्च हो जाती है। उन्होंने कहा कि बेकार बोलना या बिना पूछे किसी को सलाह देना भी त्रुटिपूर्ण है। बेकार बोलने से शक्ति क्षीण होती है। बिना पूछे सलाह देने से दूसरों के मन में अपने प्रति अनादर की भावना पैदा होती है। असत्य बोलना भी बुराई है। सुरेंद्र मुनि ने कहा कि सत्य मनुष्य के लिए वरदान है, अत्यंत हितैषी है। सत्य से व्यक्ति का आभ्यंतर निर्मल और बाह्म निष्कपट हो जाता है। वह एक अनुपम ज्योति से जगमगा उठता है और सर्वप्रिय बन जाता है। धैर्य, संतोष, शील आदि सत्य के सहयोगी मित्र है और मिथ्या, कठोर, कटु चपल, वचन, लोभ, क्रोधादि इसके शत्रु हैं, जो इसे पनपने नहीं देते। रमेश मुनि बोले, अहंकार का आसन मनुष्य के हृदय में:
एसएस जैन स्थानक 39 सेक्टर प्रार्थना सभा
संस, लुधियाना : एसएस जैन स्थानक-39 सेक्टर में रमेश मुनि म., मुकेश जैन, मुदित म. आदि मुनि संघ के सान्निध्य में प्रार्थना सभा का आयोजन किया गया। रमेश मुनि ने कहा कि अभिमानी रुपी शत्रु पर विजय पाना जरूरी है, क्योंकि यह आत्मा को नरक तथा पशु योनि में ले जाता है और उनकी आत्मिक हानि करता है।
उन्होंने आगे कहा कि लोक में निदित अहंकारियों की गति निश्चित रूप से नरक होती है। इसलिए समझदार व्यक्ति को अभिमान को सदैव विनाशकारी समझकर उससे बचना चाहिए। अभिमानी गुणी से गुणी व्यक्ति को भी दुर्गुणी बना देता है। इसे दूर नहीं करने पर उसके सारे गुण ढक जाएंगे या नष्ट हो जाएंगे। उन्होंने कहा कि अहंकार का आसन मनुष्य के हृदय में है। विवेक नेत्रों को नष्ट करके मानव को अंधा बना देता है। कुछ लोग अपने लाभ का अहंकार करते हैं और उन्हें कदम कदम पर लाभ मिलता है। हर व्यक्ति से उन्हें अनायास का लाभ प्राप्त हो जाता है। मुकेश मुनि ने कहा कि मोह आत्मा का घोरतम शत्रु है जो उसे मुक्ति पथ से भटका कर जन्म जन्म के चक्र में ग्रस्त कर देता है। यही मोह सांसारिक कष्टों, चिताओं और भय का जनक है।