जीवन अमूल्य है, इसकी अहमियत समझें: मुनि मोक्षानंद
संस, लुधियाना : जीवन अमूल्य है। इसकी अहमियत समझें। भले ही यह हमें बिल्कुल कोरा मिला था, ल
संस, लुधियाना : जीवन अमूल्य है। इसकी अहमियत समझें। भले ही यह हमें बिल्कुल कोरा मिला था, लेकिन इसे रंगीन बनाने की जिम्मेदारी हमारी है। परमात्मा ने हमें कोरा जीवन इसलिए दिया, ताकि हम सभी अपने-अपने गुण और कर्म के अनुसार इसमें रंग भरे, इसे सजाएं। तभी तो भिन्नता स्थापित होगी। इसका जीवन जीतना ही सजा रहेगा, वह उतना ही आदर्श और अनुकरणीय होगा। अत: मायूसी और उदासी को दरकिनार करें, जीवन में हंसी खुशी का रंग भरें। यह उक्त पंक्तियां आचार्य जैनाचार्य नित्यानंद सूरीश्वर के सानिध्य में सर्व मंगल चातुर्मास में मुनि मोक्षानंद ने आत्म धर्म कमल हाल सभा में कहीं। उन्होंने कहा कि पाप करते समय तो मजा आता है, परंतु पाप की सजा भोगते समय भयंकर विलाप करना पड़ता है। उन्होंने कहा कि नेक कार्य करने से प्रभु की कृपा बरसती है। व्यक्ति को अनुकंपा, जीव दया, मानव सेवा जैसे उत्तम कार्यो में जुड़कर स्व पर कल्याण साधना चाहिए। व्यक्ति को स्वार्थी नहीं, बल्कि परमार्थी बनना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि धर्म के मार्ग पर चलने वाला व्यक्ति आराधक कहलाता है। आराधक दूसरों को भी धर्म मार्ग पर जोड़ने का काम करता है, तथा अपने स्वार्थो का त्याग करके दूसरों को आगे बढ़ाने में सहायक बनता है। उन्होंने कहा कि स्वार्थी व्यक्ति स्वयं सुखी होना चाहता है, परंतु दूसरों को भले दुख मिले, इससे उसको कोई फर्क नहीं पड़ता है। ऐसे क्षुद्र मनोवृति वाले व्यक्ति को सर्वत्र दुख ही प्राप्त होता है। भगवान महावीर ने कहा कि हमें जगत को छोटे बडे़ सभी जीवों के मुख, मंगल तथा कल्याण की कामना हरदम करते रहना चाहिए। किसी को सत्ता कर, मार कर या तड़पा कर यदि कोई व्यक्ति सुख साधन सामग्री जुटाना चाहता है तो भवांतर में उसे कई गुणा अधिक दुख संताप झेलने पड़ते हैं।