लुधियाना राउंडटेबल कॉन्फ्रेंसः प्राइवेट हेल्थ सेक्टर के खर्च में कटौती होने से सस्ता होगा इलाज, मिलनी चाहिए सब्सिडी
भगवान महावीर सेवा संस्थान के अध्यक्ष राकेश जैन कहते हैं कि महंगी दवाइयां एक बड़ी समस्या है। इलाज का बड़ा बजट इन्हीं में निकल जाता है। इसका हल है कि प्रत्येक बड़े अस्पताल के साथ एक ऐसी मेडिकल शॉप खुले जिसमें जेनेरिक दवाईयां उपलब्ध हो।
पंजाब का औद्योगिक शहर लुधियाना बेहतर चिकित्सा सुविधाओं के लिए भले ही उत्तर भारत में सबसे आगे है, लेकिन बीमारियों पर अंकुश लगाने में अभी काफी पीछे है। जानकारों का कहना है कि यदि हर साल होने वाली रूटीन बीमारियों के कारणों पर अंकुश लगाने का प्रयास किया जाए, तो बढ़ती आबादी के साथ चिकित्सा संस्थानों पर लगातार बढ़ रहे मरीजों के बोझ को कम किया जा सकता है। साथ ही शहर में उपलब्ध मेडिकल सुविधाओं को बेहतर किया जा सकता है।
चिकित्सा के क्षेत्र से जुड़े एक्सपर्ट डाक्टरों ने उक्त विचार दैनिक जागरण की ओर से आयोजित 'माय सिटी, माय प्राइड' के मंच पर राउंड टेबल कांफ्रेंस में रखे। इस कांफ्रेंस में 'माय सिटी, माय प्राइड' के हेल्थ के क्षेत्र के हीरोज और एक्सपर्टस ने शहर की मेडिकल सुविधाओं पर खामियों को गिनाने के साथ उसके हल के लिए सुझाव भी दिया।
एक्सपर्ट में मेडिकल क्षेत्र से जुड़े यूरोलोजिस्ट डॉ. बलदेव सिंह औलख, रिटायर्ड सिविल सर्जन डॉ. रेणु छतवाल, आयुर्वेदाचार्य डॉ. रविंद्र वात्सायान, हार्ट सर्जन डॉ. एचएस बेदी आरटीसी में शामिल हुए, वहीं हेल्थ क्षेत्र में बहुमूल्य सेवाएं प्रदान करने वाले हीरो डॉ. रमेश मंसूरा, अनमोल कवात्रा, राकेश जैन, बलबीर अरोड़ा और तरणजीत निमाणा भी मौजूद रहे।
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उनका कहना है कि उन्हें गर्व होता है कि आज लुधियाना पूरे उत्तर भारत का मेडिकल हब बन चुका है। यहां जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, राजस्थान के अलावा दिल्ली से भी मरीज पहुंच रहे हैं। इसका महत्वपूर्ण कारण यह है कि यहां उत्कृष्ट मेडिकल सुविधाएं वाजिब खर्चे पर उपलब्ध हैं। अब यह मेडिकल हब बन चुका है और बड़े निजी अस्पतालों की चेन यहां आने को तत्पर हैं। शहर की बढ़ती आबादी के साथ यहां प्रत्येक साल अलग-अलग मौसम में रूटीन बीमारियों के मरीजों की संख्या में भारी इजाफा हो रहा है, जिसके कारण अस्पतालों पर बोझ बढ़ता जा रहा है। यदि लोग इन बीमारियों के कारणों को रोकने के लिए उचित प्रयास करें, तो मरीजों की संख्या में कमी आएगी।
उन्होंने तर्क दिया कि हेल्थ इंश्योरेंस अनिवार्य करके सभी को तंदरूस्त किया जा सकता है। नब्बे फीसद लोगों के पास इंश्योरेंस कवर नहीं है, ऐसे में वे कई बार इलाज कराने से महरूम रह जाते हैं। इस औद्योगिक शहर में अन्य शहरों के मुकाबले बेस्ट ट्रॉमा सेंटर हैैं। जो किसी भी आपात स्थिति में बड़ी संख्या में मरीजों को चिकित्सा सुविधा मुहैया करवाने में सक्षम हैं।
जानकारों की माने तो सरकार की ओर से मुहैया करवाई जाने वाली फ्री हेल्थ सेवाओं के कारण भी मेडिकल सुविधा प्रभावित हो रही है। मसलन आवश्यक दवाएं व इंजेक्शन अस्पतालों में नहीं मिल पा रहे। विशेषज्ञ डाक्टरों का कहना है कि फ्री सेवाओं के स्थान पर सरकार फ्री की बजाए सब्सिडी पर मेडिकल सेवाएं मुहैया करवाए, जिससे कुछ कीमत अदा कर बेहतर चिकित्सा मिल सके।
अधिकारों से सब वाकिफ हैं, कर्तव्य निभाने पर भी देना होगा जोर
नेत्ररोग विशेषज्ञ डॉ. रमेश चंद का ने कहा कि लोग अपने अधिकारों के प्रति तो जागरूक हैं, लेकिन कर्तव्यों को लेकर कोई बात नहीं करता। उदाहरण के तौर पर हम गंदगी व उसकी वजह से होने वाली बीमारियों, महंगे इलाज, दवाईयों की कमी को लेकर सरकार को कोसते हैं। लेकिन कभी आत्म मंथन नहीं करते कि कहीं न कहीं हम भी इसके लिए जिम्मेवार हैं।
उदाहरण के तौर पर गंदगी की बात करें तो हम चाहते हैं कि अस्पताल साफ मिले, सड़कें साफ मिलें। लेकिन हम में से बहुत लोग कचरा सार्वजनिक स्थानों पर फेंकते हैं। एक जिम्मेवार नागरिक बनकर यदि खुले में कचरा न फेंके, घरों और आसपास को साफ रखें, खुद की सफाई का ध्यान रखें तो कई संक्रामक बीमारियों से बच जाएंगे। समाज के ज्यादातर लोग सरकार से सुविधाएं लेना चाहते हैं, लेकिन अपनी तरफ से कुछ देना नहीं चाहते।
यदि समाज के संपन्न लोग, चिकित्सक, समाज सेवी, राजनीतिक व धार्मिंग संगठनों के प्रतिनिधि अपने अपने स्तर पर स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार के लिए आगे आएं,तो स्थिति में क्रांतिकारी बदलाव आ सकता है। भारत जैसे देश में समस्याओं के समाधान के लिए जन भागीदारी बहुत जरूरी है।
लुधियाना में बुजुर्गों के लिए बने जेरीऐट्रिक सेंटर
पूर्व सीएमओ डॉ. रेनु छतवाल का कहना है कि लुधियाना में स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार हुआ तो यहां की औसत उम्र भी बढऩे लगी है। जिसकी वजह से शहर में 80 की उम्र पार कर चुके बुजुर्गों की संख्या बढ़ने लगी है। बुजुर्गों को रूटीन चेकअप की जरुरत होती है। लेकिन लुधियाना में एक भी जेरीऐट्रिक सेंटर नहीं है।
कामकाजी शहर होने की वजह से कई बुजुर्ग ऐसे हैं जिन्हें अपना चेकअप करवाने के लिए खुद ही अस्पताल जाना पड़ता है। अस्पताल में जांच के लिए इधर उधर भटकना पड़ता है। लुधियाना में जेरीऐट्रिक सेंटर खुलना चाहिए ताकि बुजुर्गों को अपने रूटीन चेकअप के लिए अस्पताल की अलग अलग मंजिलों के चक्कर न काटने पड़े। सरकारी अस्पतालों में कई चीजें हैं जो फ्री में दी जाती हैं। इसलिए लोग उसकी महत्ता को नहीं समझते और उसका आवश्यकता से ज्यादा प्रयोग कर लेते हैं। हर चीज का एक न्यूनतम मूल्य जरूर होना चाहिए।
उन्होंने एंटी रैबीज वैक्सीन का उदाहरण देते हुए कहा कि एक एमएल का असर भी उतना ही होता है जितना पांच एमएल का। लेकिन फ्री में होने की वजह से एक एमएल के बजाय पांच एमएल का इंजेक्शन लगवा देते हैं। जिससे अस्पतालों में इसकी कमी बनी रहती है।
आम लोगों की पहुंच से दूर हैं सेहत सेवाएं, शहर में हो पीजीआई जैसा अस्पताल
फेसबुक के जरिए मरीजों की मदद करने वाले अनमोल क्वात्रा मानते हैं कि शहर में स्वास्थ्य सेवाएं बेहतरीन पर इसकी एवज में लोगों को मोटी रकम खर्च करनी पड़ती है। अच्छा इलाज आम लोगों की पहुंच से दूर होता जा रहा है। ऐसे में लोग अच्छे और सस्ते इलाज के लिए चंडीगढ़ के पीजीआई अस्पताल का रूख करते हैं। आम लुधियानवी को अपने ही शहर में अच्छा व सस्ता इलाज मिले इसके लिए शहर में पीजीआई की तर्ज पर अस्पताल बनना चाहिए।
इसके अलावा दुर्घटना की स्थिति में घायल को जब अस्पताल में पहुंचाया जाता है तो वहां पर उसे तुरंत इलाज नहीं मिल पाता है। डॉक्टर्स औपचारिकताएं पूरी करने में काफी वक्त लगा देते हैं। घायल के अस्तपाल में पहुंचते ही इलाज शुरू होना चाहिए बाकी औपचारिकताएं बाद में भी पूरी की जा सकती हैं। अनमोल घायलों व मरीजों की मदद करते हैं तो उन्होंने एक घटना का जिक्र करते हुए कहा कि डॉक्टर्स को मानवीय मूल्यों को ध्यान में रखकर काम करना चाहिए।
हर बड़े अस्पताल के साथ खुले जेनेरिक मेडिसन की दुकानें
भगवान महावीर सेवा संस्थान के अध्यक्ष राकेश जैन कहते हैं कि महंगी दवाइयां एक बड़ी समस्या है। इलाज का बड़ा बजट इन्हीं में निकल जाता है। इसका हल है कि प्रत्येक बड़े अस्पताल के साथ एक ऐसी मेडिकल शॉप खुले जिसमें जेनेरिक दवाईयां उपलब्ध हो। यानि की ब्रांड की बजाए दवाईयों के साल्ट लिखे जाए जो कि ब्रांड के मुकाबले सस्ते में मिल जाते है।
सरकारी अस्पतालों में स्टॉफ की कमी को सेहत सेवाओं के लिए अभिषाप बताते हुए राकेश जैन कहते है कि इस कमी को पूरा किए बिना समाज की भलाई हो ही नहीं सकती। सरकार के पास अगर संसाधन की कमी है तो उसे इसे छिपाने की बजाए एनजीओ की मदद लेने से गुरेज नहीं करना चाहिए। शहर में कई एनजीओ है जो अपने स्तर पर विभिन्न इलाकों में डिस्पेंसरी बनवाकर बड़ी संख्या में लोगो की सेहत समस्याओं का निवारण कर रही है। इन सेवाओं में और बढ़ोतरी हो सकती है।
बेहतर सेहत के लिए बीमारी के इलाज के साथ उसका कारण भी तलाशा होगा
आयुर्वेदाचार्य व ड्रग कंट्रोलर आयुर्वेद पंजाब डॉ. रविंदर वात्सायायन कहते है कि बीमारियों की जड़ को पहचानना होगा। जब तक बीमारी के कारण मौजूद रहेंगे तब तक इस पर काबू नहीं पाया जा सकता है। हम बीमारियों के इलाज पर ही पूरा जोर लगा देते है लेकिन जिस वजह से बीमारी हो रही है अगर उस पर ध्यान दिया जाए तो इससे छुटकारा पाया जा सकता है।
डॉक्टर वात्सायन कहते है कि यह अच्छा सिग्नल है कि अब एलोपैथिक ट्रीटमेंट करने वाले नामी अस्पताल व डॉक्टर भी मानसिक तनाव से छुटकारे के लिए योगा व ध्यान का मश्वरा देने लगे है। कई बड़े अस्पतालों में तो योगा व मेडिटेशन सेंटर भी शुरु हो गए है। लेकिन अभी तक सरकारी अस्पतालों में इसकी कमी खल रही है।
सेहत से जुड़े विभागों में आपसी तालमेल की कमी का जिक्र करते हुए डॉक्टर वात्सायान ने कहा कि इससे योजनाएं कारगार साबित नहीं हो पाती। मसलन निगम का सेहत विभाग क्या कर रहा है इसकी जानकारी पब्लिक हेल्थ डिर्पाटमेंट को होती ही नहीं।
हेल्थ इंश्योरेंस से तंदुरूस्त हो सकता है लुधियाना
हेल्थ इंश्योरेंस अनिवार्य करके सभी को तंदरूस्त किया जा सकता है। नब्बे फीसद लोगों के पास इंश्योरेंस कवर नहीं है, ऐसे में वे कई बार इलाज कराने से महरूम रह जाते हैं। यूरोलॉजिस्ट एवं किडनी ट्रांसप्लांट सर्जन व अकाई अस्पताल के प्रमुख डॉ. बलदेव सिंह औलख के अनुसार लुधियाना में सेहत सेवाएं बेहतर हैं और किफायती दाम पर उपलब्ध हैं। यहां पर दिल्ली, मुंबई के मुकाबले सस्ता इलाज उपलब्ध है।
सेहत सेवाओं को और उम्दा बनाने के लिए देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में हेल्थ पर हिस्सेदारी बढ़ाना जरूरी है। दूसरे लोगों में सेहत के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए नौवीं एवं दसवीं कक्षा में हेल्थ एजूकेशन का विषय होना अनिवार्य है।
निजी क्षेत्र में महंगा इलाज होने को लेकर डॉ. औलख ने तर्क दिया कि इसमें डाक्टर सारा निवेश अपने दम पर करता है। एक एमआरआई और कैथ लैब तीन तीन करोड़ की हैं, इनके आयात पर भारी कस्टम ड्यूटी है। सरकार की कोई सब्सिडी नहीं है। पंजाब में उद्योगों को पांच रुपये प्रति यूनिट बिजली मिल रही है, जबकि अस्पताल को नौ रुपये के हिसाब से बिजली मिलती है। सारे खर्च का औसतन बोझ मरीज पर पड़ता है, इसलिए सरकारी के मुकाबले निजी अस्पताल में इलाज महंगा लगता है।
बजट नहीं बढ़ता तो सरकार प्राइवेट हेल्थ सेक्टर को दे सुविधाएं
यदि सरकार हेल्थ केयर के लिए बजट को नहीं बढ़ा सकती, तो उसे प्राइवेट हेल्थ सेक्टर को प्रोत्साहित करना चाहिए। क्योंकि देश में 70 प्रतिशत लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं प्राइवेट हेल्थ सेक्टर से ही मिल रही है। प्रसिद्ध हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. हरिंदर सिंह बेदी कहते हैं कि निजी अस्पताल सुपर स्पेशलिस्ट चिकित्सकों के साथ विश्व स्तरीय सुविधाओं के साथ इलाज प्रदान करते हैं। इसी वजह से लोगों में निजी अस्पतालों के प्रति भरोसा है।
हालांकि, सरकारी अस्पताल भी अपने स्तर पर अच्छा इलाज दे रहे हैं। लेकिन फंड की कमी वजह से अब भी हर तरह की इलाज सुविधाएं देने में सक्षम नहीं है। ऐसे में सरकार यदि प्राइवेट हेल्थ सेक्टर को सस्ती जमीन, सस्ती बिजली, इक्यूपमेंटस खरीदने पर रिबेट जैसी सुविधाएं देती है, तो इसका सीधा फायदा मरीजों को मिलेगा। क्योंकि सुविधाएं व रिबेट मिलने खर्चों में भी कटौती होगी। दूसरा लोगों को घर के नजदीक ही इलाज मिलेगा। इससे सरकारी अस्पतालों पर मरीजों का दबाव कम होगा।
एक्सीडेंट के बाद मेडिकल सुविधा को लेकर आती हैं दिक्कतें
भाई घनैया जी मिशन सेवा सोसायटी के प्रधान तरणजीत सिंह निमाणा का कहनै है कि सड़क दुर्घटना के बाद अस्पताल पहुंचने पर घायलों को काफी दिक्कतों को सामना करना पड़ता हैं। जब किसी गंभीर रुप घायल हुए व्यक्ति को अस्पताल पहुंचाया जाता है, तो अस्पताल में मौजूद डाक्टर पहले इलाज करने की बजाए फाइल बनवाने और पैसे जमा करवाने की बात करते हैं। इतनी देर में मरीज की मौत ही हो जाती है।
अस्पताल को एक्सीडेंट में घायल हुए मरीजों का पहले इलाज करना चाहिए, ताकि उनकी जान बच सके। इसके अलावा लोगों को भी जागरुक करने की जरुरत है। उन्होंने कहा कि एक्सीडेंट मामले में लोग घायल को उठा कर अस्पताल तक नहीं लेकर जाते। क्योंकि उनको लगता है कि वह किसी मामले में न फंस जाएं। लेकिन अब ऐसी कोई बात नहीं है, अगर आप किसी घायल व्यक्ति को इलाज के लिए अस्पताल पहुंचाते हैं तो उससे घायल की जान बच जाती है। उन्होंने कहा कि सरकार की तरफ से शुरु हुई 108 एंबुलेंस काफी मददगार है। जिससे रोजाना सड़क पर एक्सीडेंट के दौरान हुए कई घायलों की जान बच रही है।
विशेषज्ञों के सुझाव-
- लुधियाना में बुजुर्गों के लिए बनाया जाए जेरीऐट्रिक सेंटर
- शहर में हो एक पीजीआई जैसा अस्पताल
- हर बड़े अस्पताल के साथ खुले जेनेरिक मेडिसन की दुकानें
- हेल्थ इंश्योरेंस अनिवार्य करके सभी को किया जा सकता है तंदरूस्त
- डाक्टरों को फाइल और पैसे जमा करवाने से पहले करना चाहिए घायल का इलाज