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लुधियाना राउंडटेबल कॉन्फ्रेंसः सरकारों ने योजनाएं बहुत बनाईं लेकिन विकास को गति नहीं दे पाई

औद्योगिक शहर होने के कारण समय-समय की सरकारों ने कई योजनाएं घोषित कीं, लेकिन उसे सही तरीके से लागू नहीं किया गया।

By Gaurav TiwariEdited By: Published: Sun, 26 Aug 2018 06:07 AM (IST)Updated: Mon, 03 Sep 2018 12:22 PM (IST)
लुधियाना राउंडटेबल कॉन्फ्रेंसः सरकारों ने योजनाएं बहुत बनाईं लेकिन विकास को गति नहीं दे पाई

लुधियाना। पिछले दो दशक में पंजाब की आर्थिक राजधानी लुधियाना ने काफी विकास किया। बदलते समय के साथ यहां की आबादी 40 लाख से ज्यादा हो गई। शहर के विस्तार के साथ इसे विकसित करने में सरकार का भी काफी हाथ रहा है, लेकिन देश के शीर्ष शहरों में लुधियाना को शुमार करना है तो यहां के लोगों को भी आगे आना होगा। उक्त बातें दैनिक जागरण के 'माय सिटी, माय प्राइड’ की राउंड टेबल कांफ्रेंस (आरटीसी) में पहुंचे एक्सपर्ट के मंथन में सामने आईं। कैंपेन की सिटी लिवेबिलिटी सर्वे रिपोर्ट 2018 पर चर्चा करते हुए एक्सपर्ट्स ने कहा कि आज शिक्षा, स्वास्थ, इकनॉमी, इंफ्रास्ट्रक्चर और सिक्योरिटी के मामले में शहर ने काफी तरक्की की है, लेकिन अभी भी इसमें काम करने की काफी गुंजाइश है।

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बढ़ती आबादी के साथ शहर का विकास जरुर हुआ लेकिन गति धीमी रही, लोगों को मूलभूत सुविधाएं नहीं मिली। औद्योगिक शहर होने के कारण समय-समय की सरकारों ने कई योजनाएं घोषित कीं, लेकिन उसे सही तरीके से लागू नहीं किया गया। देश के स्मार्ट शहरों में लुधियाना को शामिल तो किया गया, लेकिन अभी तक किसी योजना पर कार्य शुरू नहीं हो पाया।

इस अवसर पर पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के पूर्व वाइस चांसलर डा. मनजीत सिंह कंग, डीएमसी अस्पताल के प्लास्टिक सर्जरी के एचओडी व अनुभवी डाक्टर संजीव उप्पल, नगर निगम के पूर्व एडिशनल कमिश्नर बीके गुप्ता, असिस्टेंट कमिश्नर पुलिस गुरदेव सिंह, फेडरेशन आफ पंजाब स्माल इंडस्ट्रीज के प्रेसीडेंट बदीश जिंदल, होटल एंड रेस्टोरेंट एसोसिएशन के प्रेसीडेंट अमरवीर सिंह, गवर्नमेंट हाई स्कूल सराभा नगर की प्रिंसिपल डा. कुसुम लता और हैव ए हार्ट फाउंडेशन के योगेश राय मौजूद रहे।

शिक्षा के क्षेत्र में हमारे शहर की स्थिति अच्छी
पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के पूर्व वाइस चांसलर डॉ. एमएस कंग का कहना है कि शिक्षा के क्षेत्र में अगर भारत के अन्य प्रदेशों से लुधियाना की तुलना की जाए तो हमारी स्थिति ठीक है। लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर के हम आसपास भी नहीं हैं। विश्व की दो सौ टॉप यूनिवर्सिटी में भारत की एक भी यूनिवर्सिटी नहीं है। इसके लिए वह सिस्टम में कमी मानते है। कंग बताते है कि विश्व में शायद हम अकेले ऐसे देश है जिसमें एग्रीकल्चर की अलग व हार्टीकल्चर की अलग यूनिवर्सिटी बनाए बैठे है। जबकि विकसित देशों में एक ही यूनिवर्सिटी के अलग अलग विभाग तो होते है पर एक सब्जेक्ट पर काम करने के लिए अलग अलग यूनिवर्सिटी नहीं होती। सुधार के लिए प्रत्येक सब्जेक्ट के लिए हर साल अलग चैप्टर डालने चाहिएं। ताकि हम स्टूडेंट को बता सके कि इस साल उन्हें अलग से क्या पढ़ाया जा सकता है। ट्रैफिक में सुधार व सिविक सेंस के लिए लोगो को जागरुक होना जरुरी है।

लोगों की भागीदारी बढ़नी चाहिए
नगर निगम के रिटायर्ड एडिशनल कमिश्नर बीके गुप्ता का कहना है कि सभी सुधार सरकार व प्रशासन पर छोडऩे की बजाए जन भागीदारी होनी चाहिए। इसके बिना सुधार की कल्पना भी नहीं की जा सकती। गुप्ता का तर्क है कि शहर की सड़कें, गलियां तो वहीं है पर इस पर गाडिय़ों की संख्या कई गुणा बढ़ चुकी है। 25 साल पहले डीटीओ आफिस से वाहनों के नंबरों के लिए जारी होने वाली एक सीरिज एक साल तक खत्म नहीं होती थी जबकि अब प्रत्येक महीने दो सीरीज खत्म हो जाती है। सरकारी स्कूलों की बदहाली के लिए सिस्टम से खफा बीके गुप्ता का कहना है कि अगर शिक्षा, हेल्थ में सुधार हो जाए तो अधिकतर समस्याओं का निदान हो जाए। मजदूरों के रहने के लिए बाहरी क्षेत्रों में बने बेहड़ों की दुर्दशा का जिक्र करते हुए गुप्ता ने कहा कि नियमों के विपरीत एक एक व्यक्ति ने 1600 कमरे बना रखे है। प्रत्येक सौ कमरों के साथ मात्र चार शौचालय बने हुए है। इनकी वजह से अक्सर बीमारी फैलती रहती है। इन्हें राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है।

सरकार केवल घोषणाएं नहीं, काम भी करें

फोपसिया के प्रधान बदीश जिन्दल का कहना है कि सरकार की ओर से बड़ी बड़ी घोषणाएं तो कर दी जाती है, लेकिन इसे पूरा कर पाने में नाकाम रहती है। पांच रुपए प्रति युनिट बिजली से सरकार ने चुनाव तो जीत लिया, लेकिन बाद में इसे देने में ऐसे फंडे अपनाएं कि यह अब 11 से 12 रुपए यूनिट पड़ रही है। लुधियाना को आईआईटी आईआईएम जैसे संस्थान चाहिए। जैसे लोगों इंडस्ट्री को जरूरत है वैसे लोग मिल नहीं पा रहे। ऐसे में न तो इंडस्ट्री की डिमांड पूरी हो रही है और न ही युवाओं को रोजगार मिल रहे हैैं। सरकार उद्यमियों को सेल्फ एसेसमेंट और घोषणाओं को इंप्लीमेंटेशन तक ले जाए, तभी तरक्की होगी।

सरकार की घोषणाओं और अमल में अंतर
पंजाब होटल एंड रेस्टोरेंट एसोसिएशन के प्रधान अमरवीर सिंह ने कहा कि सरकार की ओर से 1996 से होटल एंव रेस्टोरेंट को इंडस्ट्री का दर्जा तो दिया गया है। लेकिन इसको लागू करने के लिए कोताही बरती जा रही है। इसी के चलते इस सैक्टर को भारी भरकम टैक्स, महंगी बिजली सहित कई इनपुट कास्ट महंगी भरनी पड़ रही है। ऐसे में अगर सरकार को इस सैक्टर को प्रोत्साहन देना है तो कारगर कदम उठाने चाहिएं। पंजाब के होटलों का एक्यूपेंसी रेट 27 प्रतिशत और लुधियाना का 34 प्रतिशत है। ऐसे में खर्च निकाल पाना भी बेहद मुश्किल है। होटल केवल अपने दम पर ही काम कर रहें हैं। सरकार को बेहतर पर्यटन पॉलिसी लाकर इस सेक्टर को उठाने के लिए काम करना चाहिए। इसमें बेहतर स्पाट बनाने के साथ साथ इंफ्रास्ट्रक्चर में इंप्रूवमेंट करनी चाहिए।

जनता के सहयोग से कंट्रोल होगा क्राइम
एसीपी लुधियाना गुरदेव सिंह ने कहा कि अगर पब्लिक सहयोग दे तो हर तरह का क्राइम कम भी हो सकता है और पहले हो चुकी घटनाओं को भी जल्द साल्व किया जा सकता है। पुलिस के साथ दूसरे विभागों का भी सहयोग बेहद जरूरी है। कई विभाग सीधे तौर पर पुलिस की कार्य प्रणाली से जुड़े हुए हैं, जैसे नगर निगम, गलाडा और सेहत विभाग। पुलिस के पास संसाधनों की भी भारी कमी है। नफरी कम है और शहर में जनसंख्या का विस्तार लगातार बढ़ रहा है। इस तरफ भी ध्यान देने की बेहद जरूरत है। हालात तो यह हैं कि ट्रैफिक सुचारू करने में सबसे बड़ी दिक्कत सामने आती है। लोगों की ओर से दुकानों के बाहर अतिक्रमण किए हुए हैं, नगर निगम और गलाड़ा की कई लाइटें सही से काम नहीं करती हैं। बिना वजह या तो कट बना दिए गए हैं या बंद कर दिए गए हैं। ट्रैफिक पुलिस प्रत्येक वर्ष 10 करोड़ रुपए चलान से इकट्ठा करके देती है मगर उनके ही विभाग पर पैसा खर्च नहीं हो पा रहा है। सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों को पुलिस के साथ जुडना चाहिए और अपने सुझाव देने चाहिएं।

इंप्रूव हुआ सरकारी स्कूलों इफ्रास्ट्रक्चर
हर बार सरकारी स्कूलों के इंफ्रास्ट्रक्चर पर सवाल खड़े किए जाते हैं। लेकिन ऐसा नहीं है। सरकारी स्कूलों के इंफ्रास्ट्रक्चर में काफी बदलाव हो चुका है। सरकारी स्कूल अब निजी स्कूलों की तरह डेवलप हो रहे हैं। अच्छे क्लासरूम बन रहे हैं और बच्चों के लिए सुविधाएं उपलब्ध करवाई जा रही हैं। अब लोगों को सरकारी स्कूलों के प्रति अपनी सोच को बदलना होगा। यह कहना है सरकारी हाई स्कूल की मुख्य अध्यापिका डॉ. कुसुम लता का। वह मानती हैं कि टीचर्स निजी स्कूलों के टीचर्स से कहीं ज्यादा क्वालिफाइड हैं लेकिन सिस्टम अपडेट न होने की वजह से वह बेहतर रिजल्ट नहीं दे पा रहे थे। अब एजुकेशन सिस्टम को एक्टिविटी बेस्ड बना दिया गया है। उन्होंने कहा कि समाज का हर वर्ग अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में भेजे तो वह निजी स्कूलों से बेहतर परिणाम दे सकते हैं।

सेहत बजट बढ़ाए जाने की जरुरत
डीएमसीएच के प्लास्टिक सर्जरी डिपार्टमेंट के हेड डॉ. संजीव उप्पल ने कहा कि देश के दूसरे शहरों की तुलना में शहर में स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर है। लेकिन, अब भी इसमें बहुत सुधार किए जाने की जरूरत है। औद्योगिक शहर लुधियाना में सुविधाओं से लैस एक और सिविल अस्पताल की जरूरत है। जहां पर्याप्त डॉक्टर हों, नर्सिंग स्टाफ हो व जांच उपकरण हों। दूसरा डिस्पेंसरियों को अपग्रेड करने की बेहद जरूरत है। शहर में कई डिस्पेंसरियों की हालत बहुत खस्ता है। उनमें डॉक्टर नहीं हैं। इसके अलावा सरकारी ट्रोमा सेंटर बढ़ाने की जरूरत है। जिससे कि दुर्घटना के समय मरीज को तुरंत इलाज मिल सके। यह तभी संभव होगा, जब स्वास्थ्य बजट बढ़ाया जाए। हमारी सरकार हेल्थकेयर पर अपनी जीडीपी का केवल लगभग 1.4 प्रतिशत ही खर्च करती है, जो वैश्विक तौर पर सबसे कम खर्चो में से एक है। जबकि इसके विपरीत हमारे पड़ोसी मुल्क स्वास्थ्य बजट पर कहीं अधिक खर्च करते हैं। हालांकि, इसमें आम जन भागीदारी भी जरूरी है। देश में बढ़ती आबादी एक गंभीर विषय है। लोगों को पापुलेशन कंट्रोल करने, हेल्थ कांशियस होने, फास्ट फूड व पैक्ड फूड से बचने की जरूरत है। इसके साथ ही लोगों को सफाई के प्रति सजग होना पड़ेगा, तभी हालात पूरी तरह से बदलेंगे।

सरकार एनजीओ की मदद से जरूरतमंदों तक पहुंचाए इलाज
हैव-ए-हार्ट फाउंडेशन के सचिव योगेश राय कहते हैं कि हमारे देश में बहुत से औद्योगिक घराने और एनजीओ ऐसी हैं, जो अपने अपने स्तर पर स्वास्थ्य क्षेत्र में बहुत बढिय़ा काम कर रही है। यदि सरकार इन्हें थोड़ा सहयोग दे तो और ज्यादा जरूरतमंदों को बहुत फायदा होगा। सेंटर व स्टेट गवर्नमेंट ऐसी एनजीओ को फंडिंग करें, जो जरूरतमंदों को इलाज उपलब्ध करवा रही हैं। इसके अलावा पीजीआई जैसा एक अस्पताल लुधियाना में जरूर खोलना चाहिए। क्योंकि यह शहर एक औद्योगिक शहर है। यहां फैक्ट्रियां, होजरी, डाइंग यूनिट, साइकिल यूनिट बहुत ज्यादा है और इनमें लाखों मजदूर काम करते हैं। इन मजदूरों को बेहतर इलाज मिल सके, इसके लिए पीजीआई जैसा एक बड़ा सरकारी अस्पताल होना ही चाहिए। चंडीगढ़ में पीजीआई है। लेकिन वहां एक मरीज को इलाज करवाने के लिए छह छह महीने इंतजार करना पड़ता है।


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