लुधियाना: 12 साल से है बच्चों पर फोकस, सरकारी स्कूल को बना दिया कॉन्वेंट से बेहतर
नरिंदर सिंह ने पहले दिन ही बच्चों की इच्छाशक्ति को भांप लिया और फिर बच्चों को सही मार्गदर्शन देने और स्कूल की इमारत को बेहतर बनाने की ठान ली।
नरिंदर सिंह कहते हैं कि सरकारी स्कूलों के बच्चों को भी कॉन्वेंट स्कूलों जैसी सुविधाएं मिलनी चाहिए। बस थोड़ी दृढ़ इच्छा शक्ति हो तो यह सब मुमकिन हो सकता है। सरकारी स्कूलों के टीचर्स को थोड़ा सा प्रयास करने की जरूरत है।
लुधियाना जिले में एक साधारण परिवार में जन्मे नरिंदर सिंह का कहना है कि दृढ इच्छाशक्ति है तो सब कुछ आसान हो जाता है। वे इसी वाक्य को अपने जीवन में भी आत्मसात कर रहे हैं। कॉन्वेंट स्कूल में बतौर टीचर अपने करियर की शुरुआत करने के बाद सरकारी नौकरी मिली तो पोस्टिंग तीन टूटे फूटे कमरों वाले सरकारी स्कूल में मिली।
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कॉन्वेंट स्कूल का कल्चर देखने के बाद टूटे फूटे स्कूल में बच्चों को पढ़ाना और खुद को एडजस्ट करना बेहद कठिन होता है, लेकिन नरिंदर सिंह ने पहले दिन ही बच्चों की इच्छाशक्ति को भांप लिया और फिर बच्चों को सही मार्गदर्शन देने और स्कूल की इमारत को बेहतर बनाने की ठान ली।
ज्वॉइनिंग के पहले दिन बच्चों से खेल के बारे में पूछा तो उन्होंने कबड्डी खेलने की इच्छा जाहिर की। जिस पर नरिंदर उन्हें छुट्टी के बाद स्कूल में ग्राउंड तैयार करने को कहा। नरिंदर छुट्टी के बाद घर आए और बच्चों को दिए गए टाइम के मुताबिक शाम को चार बजे जब स्कूल पहुंचे तो बच्चे वहां मैदान बनाने में जुटे थे।
बस वहीं से नरिंदर ने बच्चों के साथ मिलकर स्कूल को राज्य के टॉप स्कूल में शामिल कर दिया। स्कूल में तीन कमरे से अब 9 कमरे बन चुके हैं। राज्य का अकेला सरकारी प्राइमरी स्कूल है जहां ई-लाइब्रेरी, पोर्टेबल लाइब्रेरी, ट्रैफिक पार्क, मैथ्स पार्क, रेडक्रॉस और स्काउट गाइड जैसी सुविधाएं उपलब्ध हैं।
स्कूल में वाटर रिचार्जिंग सिस्टम बनवाया है। स्कूल के निर्माण की शुरुआत पत्नी के अकाउंट से पैसे निकाल कर की और उनके सेवा भाव को देखते हुए लोग उनसे जुड़ते गए और स्कूल का भव्य निर्माण होता गया। नरिंदर अब तक स्कूल में 40 लाख रुपये का काम करवा चुके हैं। उनके इस प्रयास से सरकारी स्कूल जंड्याली राज्य के अग्रणीय सरकारी प्राइमरी स्कूलों में शामिल है।
सरकारी स्कूल में समर कैंप का कांसेप्ट शुरू किया
जून की छुट्टियों में जहां सरकारी स्कूलों के टीचर्स स्कूल की तरफ देखना भी पसंद नहीं करते, वहीं नरिंदर ने सरकारी स्कूलों में समर कैंप का कल्चर शुरू करवा दिया। नरिंदर ने शुरुआती दौर में गर्मी की छुट्टियों में बच्चों को अलग अलग खेलों की ट्रेनिंग दी। इसके साथ ही गर्मियों की छुट्टियों में बच्चों से क्रिएटिव और समाज सेवा की गतिविधियां करवानी शुरू कर दीं।
नतीजा यह रहा कि अलग अलग खेलों में स्कूल की टीम राज्य स्तर पर विजेता रही। नरिंदर जैसे जैसे स्कूल में काम करवाते गए स्कूल अफसरों की नजर में आ गया। कामकाज की समीक्षा की तो उसके बाद विभाग ने अन्य टीचर्स को भी समर कैंप के लिए प्रेरित किया।
नतीजा यह रहा कि अब राज्यभर में बहुत से स्कूलों में समर कैंप लगने शुरू हो गए। उन्होंने स्कूल की दीवारों पर सिलेबस से संबंधित चित्रकारी की तो अब राज्य भर के अन्य स्कूलों में क्लासरूम में इस तरह का मॉडल अडॉप्ट होने लगा है। शिक्षा विभाग के अलावा अन्य कई संस्थाएं उन्हें राज्य स्तर पर सम्मानित कर चुकी है।
खेल में बच्चों की डाइट तक खुद करते हैं प्लान
नरिंदर सिंह यूनिवर्सिटी लेवल पर खुद अच्छे एथलीट रहे हैं। इसके अलावा पंजाब यूनिविर्सटी हैंडबॉल टीम के सदस्य रहे। इसलिए खेलों पर उनका विशेष फोकस है। 2006 में स्कूल ज्वॉइन करते ही स्कूल में ग्राउंड तैयार किया और बच्चों को खेलों के प्रति जागरूक किया। हर साल जुलाई में बच्चों के ट्रायल लेते हैं और उसके बाद उनकी प्रतिभा के हिसाब से उन्हें अलग अलग खेलों की कोचिंग देते हैं। जिन बच्चों में अच्छी प्रतिभा दिखती है, उनकी डाइट भी खुद प्लान करते हैं और उसके हिसाब उन्हें खुद खाना प्रोवाइड करवाते हैं।
2007 से अब तक लगातार स्कूल के विद्यार्थी जिला और राज्य स्तर पर मेडल हासिल कर चुके हैं। इसके अलावा उनसे सीखे बच्चे अलग अलग खेलों में नेशनल लेवल पर राज्य का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। नरिंदर रोजना सुबह और शाम को विद्यार्थियों को खुद कोचिंग देते हैं।
स्टेट में गोल्ड मिला तो टेनिस अकादमी चंडीगढ़ पहुंचा जितिन
जंड्याली के पास माता पिता फैक्ट्री में काम करते हैं। एक कमरे में रहकर अपना जीवन यापन कर रहे हैं। जितिन 2010 में सरकारी प्राइमरी स्कूल जंड्याली में आया। नरिंदर ने उसके अंदर की प्रतिभा को भांप लिया। पहले वह कबड्डी टीम में शामिल हुआ और उसके बाद एथलेटिक्स में। पहले साल स्टेट लेवल पर तीन सिल्वर मेडल जीते। अगले साल नरिंदर ने जितिन की डाइट चेंज की और उसे एथलेटिक्स में रखा। जितिन ने दूसरी बार में स्टेट लेवल पर तीन गोल्ड जीते। उसके बाद रूरल लॉन टेनिस अकादमी चंडीगढ़ ने जितिन को ट्रायल के लिए बुलाया।
जितिन का कहना है कि जब वह अपने टीचर नरिंदर के साथ ट्रायल देने आया तो चंडीगढ़ उनके लिए बेगाना शहर था। ट्रायल में बेहरीन प्रदर्शन करने पर उसे अकादमी ने सलेक्ट कर लिया, माता पिता ने उसे चंडीगढ़ भेजने से मना कर दिया। जितिन ने बताया कि तब नरिंदर सर ने ही जिम्मेदारी लेकर उन्हें अकादमी में दाखिला दिलाया।
जितिन ने बताया कि अब वे अंडर 16 में नेशनल रैंकिंग में है और चंडीगढ़ के डीएवी पब्लिक स्कूल में नौवीं कक्षा में पढ़ रहा है। उन्होंने बताया कि जल्दी ही वह अंडर 16 की इंटरनेशनल स्तर की प्रतियोगिता में भाग लेने जा रहे हैं। वह इसका पूरा श्रेय नरिंदर सिंह को देता है।
स्कूल में वॉटर रीचार्जिंग के लिए बनाए दो तरह के सिस्टम
नरिंदर सिंह पढ़ाई और खेलों को जितना महत्व देते हैं उससे कहीं ज्यादा वह प्रकृति के प्रति संवेदनशील हैं। उन्होंने स्कूल में अलग अलग तरह के पौधे लगाने के साथ ही उन्हें पालने की जिम्मेदारी भी एक-एक विद्यार्थी को सौंप दी। स्कूल का ग्राउंड थोड़ा सा गहरा था और वहां बरसात का पानी जमा हो जाता था। ग्राउंड खराब न हो और बरसात का पानी जमीन के अंदर जाए इसके लिए उन्होंने ग्राउंड में रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगा दिया।
इसके अलावा स्कूल की छत पर का जितना भी पानी है, उसे वह टैंक में एकत्रित कर देते हैं। बरसात के दिनों में टायलेट के लिए उसी पानी का इस्तेमाल करते हैं। इसके अलावा हर पेड़ और पौधे के नीचे गणित की आकृतियां बना दी, ताकि विद्यार्थी प्रकृति प्रेम के साथ-साथ गणित भी सीख सकें।
भयानक दुर्घटना भी नरिंदर सिंह को नहीं रोक पाई
सरकारी प्राइमरी स्कूल जंड्याली लुधियाना चंडीगढ़ मेन हाइवे पर है। जहां स्कूल है, वहां हाईवे पर मोड़ होने की वजह से आए दिन दुर्घटनाएं होती हैं। 2013 में सुबह बच्चे ग्राउंड में खेल रहे थे कि एक ट्रक दीवार तोड़कर स्कूल के अंदर घुस गया, जिसमें स्कूल के 2 नन्हीं छात्राओं की जान चली गई।
प्रशासनिक स्तर पर राहत मिलती, उससे पहले नरिंदर खुद ही ट्रक के नीचे दबे बच्चों को निकालने लग गए। प्रशासन के पहुंचने तक वह कुछ बच्चों को निकाल कर अस्पताल पहुंचा चुके थे। उस दुर्घटना ने नरिंदर सिंह को बड़ा आहत किया। तब स्कूल को नेशनल हाइवे से गांव में शिफ्ट करने की कवायद शुरू हुई, लेकिन जगह न मिलने के बाद वहीं पर स्कूल चलता रहा। नरिंदर ने फिर मेन रोड की तरफ पिलर डलवाकर दीवार बनवाई ताकि आगे से ऐसी घटना न हो। इस दुर्घटना के बाद भी उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
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बच्चों के लिए खुद कर रहे हैं नए-नए कोर्स
सरकारी प्राइमरी स्कूल में रेडक्रॉस सेवा शुरू करनी थी तो इसके लिए नरिंदर ने खुद रेडक्रॉस से ट्रेनिंग ली। वह बच्चों को स्काउट गाइड से जोड़कर उन्हें सामाजिक कार्यों में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित करना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने खुद स्कॉडट गाइड का कोर्स किया और उसके बाद स्कूल में स्काउट एंड गाइड विंग शुरू कर दिया।
नरिंदर बताते हैं कि वह बच्चों को बेहतर शिक्षा देने के लिए खुद भी नई-नई किताबें पढ़ते हैं। उन्होंने कहा कि बच्चों में पढ़ने की आदत डालने के लिए स्कूल में लाइब्रेरी, डिजिटल लाइब्रेरी और पोर्टेबल लाइब्रेरी बनाई है। बच्चे इसका भरपूर फायदा ले रहे हैं।
नरिंदर को मिल चुके हैं यह सम्मान
2009 - प्रेप काउंसिल ऑफ पंजाब की तरफ से स्टेट अवॉर्ड
2012 - शिक्षा विभाग की तरफ से स्टेट अवॉर्ड
2015 - अमरजीत काहलों यादगारी खेल स्टेट अवॉर्ड
2015 - निडर और निष्काम राज्य स्तरीय अवॉर्ड
2015 - जिला स्तर पर बहादुरी अवॉर्ड, स्कूल में हुई दुर्घटना के दौरान अकेले पांच बच्चियों की जान बचाई थी।
स्टेट लेवल पर स्कूल के बच्चों ने जीते इन खेलों में मेडल
2008-09 - लांग जंप में सिल्वर, रिले रेस में ब्रांज मेडल
2010-11 - कबड्डी नेशनल स्टाइल में गोल्ड, लांग जंप में ब्रांज
2012-13 - कबड्डी, 100 मीटर रेस और रिले रेस में तीन सिल्वर मेडल
2013-14 - कबडडी में गोल्ड, फुटबॉल में सिल्वर, 100 मीटर और रिले रेस में दो-दो गोल्ड
2014-15 - फुटबॉल में सिल्वर, रिले रेस में ब्रांज, कुश्ती में सिल्वर
2015-16 - नेशनल और सर्कल स्टाइल कबड्डी में दो गोल्ड, रिेले रेस में गोल्ड, शॉटपुट में सिल्वर
2016-17 - लांग जंप में सिल्वर, रिले रेस में गोल्ड, 100 मीटर रेस में गोल्ड
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