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लुधियाना: पुल के खड्डे से तड़प उठी गर्भवती तो धरने पर बैठ गए गुरपाल

जगरांव ब्रिज की एक साइड से ग्रेवाल ने मिट्टी के ढेर निकलते देखा तो समझ गए कि चूहे पुल को खोखला कर रहे है।

By Nandlal SharmaEdited By: Published: Wed, 18 Jul 2018 06:00 AM (IST)Updated: Wed, 18 Jul 2018 06:00 AM (IST)
लुधियाना: पुल के खड्डे से तड़प उठी गर्भवती तो धरने पर बैठ गए गुरपाल

42 वर्षीय कारोबारी और स्पोर्ट्स कोच गुरपाल सिंह ग्रेवाल की पहचान अब पुलों वाले ग्रेवाल के नाम से है। वजह है, जगरांव ब्रिज बनाने में देरी हो या फिर उसके एक हिस्से का खोखला होना। ग्रेवाल गले में तख्ती लटकाए पूरा दिन पुल के उस हिस्से के पास दिन भर विरोध स्वरुप खड़े रहे। बस स्टैंड पुल के ज्वाइंट में पड़े बड़े खड्डे की वजह से गाड़ी में जा रही गर्भवती तड़प उठी तो ग्रेवाल वहीं पर धरने पर बैठ गए। तब तक न उठे जब तक निगम ने इसकी रिपेयर नहीं की।

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उनके जुनून के कई किस्से ऐसे हैं कि अलसाए विभागों को कार्रवाई शुरु करनी पड़ी तो ही वह वहां से हटे। बस स्टैंड पुल के ज्वाइंट में बड़े बड़े खोल हो चुके थे। अक्सर गाड़ियां वहां से टकराकर टूट जाती। एक दिन गाड़ी में सवार गर्भवती इस खड्डे की वजह से तड़प उठी। ग्रेवाल ने देखा तो वह गले में तख्ती डाल वहीं धरने पर बैठ गए। अपने शहर को शानदार बनाने की मुहिम में शामिल हों, यहां करें क्लिक और रेट करें अपनी सिटी 

मामला फेसबुक पर लाइव हुआ तो निगम अधिकारियों में हड़कंप मच गया। चंद घंटों बाद निगम अधिकारी वहां पहुंचे जल्द ही ज्वाइंट ठीक करने का आश्वासन दिया पर ग्रेवाल न माने। तुरंत उस जगह को भरा गया तो कुछ दिन बाद पुल की रिपेयर का 32 लाख का टेंडर भी मंजूर हो गया।

गले में तख्ती लटकाए पुल पर खड़े हुए ग्रेवाल
जगरांव ब्रिज की एक साइड से ग्रेवाल ने मिट्टी के ढेर निकलते देखा तो समझ गए कि चूहे पुल को खोखला कर रहे है। विभाग सुनवाई नहीं कर रहा था तो ग्रेवाल गले में तख्ती लटकाए पुल पर ही प्रदर्शन करने लगे। हर रोज यह सिलसिला चलता। मसला अखबारों की सुर्खियां बन चुका था।

निगम की किरकिरी होते देख तत्कालीन मेयर हरचरण सिंह गोहलवड़िया वहां पहुंचे। ग्रेवाल ने उन्हें खोखला होता पुल दिखाया। उन्होंने तुरंत रिपेयर के आर्डर दिए। ग्रेवाल कहां मानने वाले थे। जब तक रिपेयर पूरी नहीं हुई दिन में कई बार चक्कर लगाते।

बेटों के साथ हर रोज झाड़ू लेकर सफाई करने पहुंच जाते थे ग्रेवाल
शहर के सेंटर प्वाइंट जगरांव ब्रिज की मियाद पूरी होने पर इसे बंद कर दिया गया। ट्रैफिक व्यवस्था चरमरा गई। लोग सिर्फ सरकार, प्रशासन और रेलवे को कोसते रहे। ग्रेवाल ने ऐलान कर दिया कि जब तक पुल की रिपेयर नहीं होती, तब तक रोज रात को पुल पर झाड़ू लगाया करेंगे।

मिशन में 13 और 8 साल के दोनों बेटे भी शामिल हो गए। यह सिलसिला डेढ़ महीने तक चला। हालत यह हो गई कि वहां की गंदगी से दोनों तीनों को इंफेक्शन हो गई। दोनों बच्चों के नाखून काटने पड़े और ग्रेवाल को अस्पताल में दाखिल होना पड़ा। इसके बाद जगरांव ब्रिज रिपेयर की फाइल भी तेजी से आगे बढ़ने लगी।

गुरपाल सिंह ग्रेवाल सराभा कहते हैं शहीद करतार सिंह सराभा के पैतृक गांव सराभा में ही मेरा जन्म हुआ है। देशभक्ति मुझे वहां की मिट्टी से ही विरासत में मिली है। जब भी राष्ट्रहित की बात आती है और कुछ गलत होता देखता हूं तो खुद पर नियंत्रण नहीं रख पाता। जब तक उसे सुधार नहीं लेता, चैन से नहीं बैठता।

सुबह पांच से सात बजे तक पार्को में पौधों को पानी देने पहुंच जाते हैं ग्रेवाल
ग्रेवाल कहते हैं शहीद करतार सिंह सराभा की जन्मस्थली गांव सराभा में ही उनका जन्म हुआ। देश सेवा और समाजसेवा का जज्बा वहीं की मिट्टी से मिला। शहर आ गया तो सुबह सुबह पांच से सात बजे तक आसपास के इलाकों के पार्क में पहुंच जाता। पौधों को पानी देना और पार्क को संवारने में खूब आनंद आता।

जब जगरांव ब्रिज पर धरना दिया तो किसी ने फोटो फेसबुक पर डाल दी। इसके चलते हमख्याल साथी जुटने लगे तो काफिला बनता गया। अब शहर से जुड़ा मसला एलिवेटिड पुल निर्माण से कटने वाले पेड़ों को बचाने का हो या फिर सिंधवा कैनाल की सफाई का। इनका ग्रुप वहां सक्रिय होकर प्रशासन और संबधित विभागों पर दबाव बनाकर शहर को संवारता है।

परिवार ने साथ दिया पर समाज ने मजाक उड़ाया
गुरपाल ग्रेवाल बताते हैं कि माता पिता और भाई अमेरिका में सेटल हैं। उन्होंने हमेशा समाज सेवा के लिए प्रेरित ही किया है। पत्नी व दोनों बेटे भी खूब साथ देते हैं पर अधिकतर लोग मजाक उड़ाते हैं। जब पहली बार जगरांव ब्रिज पर धरने पर बैठा तो आसपास के दुकानदार ही कहने लगे कि अकेले से कुछ नहीं होगा। मैंने कहा कि शुरुआत किसी न किसी को तो करनी ही पड़ेगी।

लोग कहते है कि धरने पर क्यों बैठ जाते हो संबधित विभाग के पास क्यों नहीं जाते। तो मेरा जवाब होता है कि अगर इनके दफ्तरों में ही जाने से ऐसे कार्य हो जाते तो देश के हालात आज कुछ और ही होते। इनको तो ऐसी भाषा ही समझ आती है। जब तक लोग नहीं जागेंगे तब तक समस्याएं ऐसे ही रहेगी।

गुरपाल की देखरेख से पार्क की कायाकल्प हो गई
मॉडल टाउन निवासी कारोबारी एचएस कपूर बताते है कि गुरपाल हर रोज दो घंटे पार्क को पानी देने और संवारने में ही गुजारते है। पार्क के प्रति उनका समर्पण देखकर बहुत से लोग भी इस मिशन में शामिल हो गए। टंकी वाले पार्क के नाम से जाना जाता यह पार्क आज शहर के खूबसूरत पार्कों की लिस्ट में शुमार है।

कपूर बताते हैं कि पार्क में पौधों को पानी देने का काम वह और उनके साथी पहले भी करते थे, लेकिन हमारी प्राथमिकता में सैर भी शामिल थी, लेकिन गुरपाल के तो दो घंटे पौधों की देखभाल को ही समर्पित हैं। उन्होंने फिर पक्षियों को दाना पानी डालना भी शुरू कर दिया। इससे वहां सुबह सुबह पक्षियों की चहचहाहट भी शुरू हो गई। अब पार्क में आने वाले अधिकतर लोग पार्क संवारने में अपना सहयोग देते हैं।


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