अपहरण और दुष्कर्म के दोषी को 14 वर्ष की कैद, 1.60 लाख रुपये जुर्माना भी लगाया
शादी का झांसा देकर नाबालिग का अपहरण व दुष्कर्म करने वाले दोषी को 14 वर्ष कैद की सजा सुनाई गई है। उसे 1.60 लाख रुपये जुर्माना भरने का भी आदेश दिया है।
जागरण संवाददाता, लुधियाना: शादी का झांसा देकर नाबालिग का अपहरण कर दुष्कर्म करने के आरोप में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश सोनिया किनरा की अदालत ने संदीप सिंह निवासी कक्का रोड, गांव जागीरपुर को 14 वर्ष कैद की सजा सुनाई गई है। उसे 1.60 लाख रुपये जुर्माना भरने का भी आदेश दिया है। इस राशि में से डेढ़ लाख रुपये पीड़िता को दिए जाएंगे। यह मामला पीड़िता के पिता की शिकायत पर 6 अप्रैल 2016 को पुलिस थाना डाबा में दर्ज किया गया था।
शिकायतकर्ता ने पुलिस को बताया था कि उसकी सबसे बड़ी बेटी जिसकी उम्र 16 साल है, वह एक स्कूल में 9वीं कक्षा में पढ़ती थी। 5 अप्रैल 2016 की सुबह उसे पत्नी का फोन आया कि उसकी बेटी स्कूल नहीं पहुंची। वह तुरंत घर गया और पत्नी को साथ लेकर अपनी बेटी को ढूंढने लगा। बाद में शिकायतकर्ता को पता चला कि आरोपित भी अपने घर में मौजूद नहीं था। शिकायतकर्ता ने अदालत को बताया कि वारदात से करीब 6 महीने पहले वह गोविंद नगर इलाके में किराये के मकान मे रहता था। उसी घर की ग्राउंड फ्लोर पर आरोपी भी रहा करता था जो पीड़िता को परेशान करता रहता था।
इस कारण शिकायतकर्ता ने अपना घर बदल कर उसी इलाके के किसी और गली में किराए पर ले लिया। जब आरोपित को पता चला तो उसने पीड़िता का वहा पर भी पीछा नहीं छोड़ा। शिकायतकर्ता ने यह भी आरोप लगाया कि संदीप सिंह के साथ जगरूप सिंह और बलविंदर कौर ने भी उसकी बेटी को अगवा करने की साजिश रची थी। पुलिस ने मामला दर्ज कर छानबीन शुरू की। 25 जून 2016 को पुलिस को गुप्त सूचना मिली की उक्त आरोपित संदीप सिंह पीड़िता और अन्य आरोपितों के साथ जीटी रोड पर मौजूद है और पीड़िता को कहीं दूर ले जा रहे हैं। पुलिस ने शिकायतकर्ता को पहचान के लिए साथ लेकर दबिश दी। इस पर पुलिस ने आरोपित और पीड़िता के साथ दो अन्य को पकड़ लिया। पुलिस ने पीड़िता को उसके मा-बाप के हवाले कर दोषी और दो अन्य आरोपितों को गिरफ्तार किया।
अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि संदीप ने नाबालिग के साथ दुष्कर्म किया है। अदालत ने सरकारी वकील दिनेश वर्मा की दलीलों से सहमत होते हुए आरोपित संदीप को सजा सुनाई। जबकि मामले के अन्य आरोपितों जगरूप सिंह और बलविंदर कौर को साक्ष्यों के अभाव में बरी कर दिया।