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मकर संक्रांति के संग शुरू हो जाएंगे शुभ कार्य, जानें क्या है इसका धार्मिक महत्व

मकर संक्रांति का महत्‍व धार्मिक रूप से तो है ही यह ग्रहों की दिशा और चाल में परिवर्तन से भी जुड़ा होता है। इस दिन से सूर्य दक्षिणायन से उत्‍तायन हो जाते हैं।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Sat, 12 Jan 2019 04:07 PM (IST)Updated: Mon, 14 Jan 2019 11:08 AM (IST)
मकर संक्रांति के संग शुरू हो जाएंगे शुभ कार्य, जानें क्या है इसका धार्मिक महत्व
मकर संक्रांति के संग शुरू हो जाएंगे शुभ कार्य, जानें क्या है इसका धार्मिक महत्व

लुधियाना [कृष्ण गोपाल]। नवग्रहों में सूर्य ही एकमात्र ग्रह है जिसके आसपास सभी ग्रह घूमते हैं। यही प्रकाश देने वाला पुंज है जो धरती के अलावा अन्य ग्रहों पर भी जीवन प्रदान करता है। प्रत्येक वर्ष जनवरी के मध्य में सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है, जिसे सामान्य भाषा में मकर संक्रांति कहते हैं। यह पर्व दक्षिणायन के समाप्त होने और उत्तरायण प्रारंभ होने पर मनाया जाता है। वर्ष में 12 संक्रांतिया आती हैं, परंतु विशिष्ट कारणों से इसे ही सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना गया है। मकर संक्रांति के साथ ही पिछले एक माह से विवाह सहित अन्‍य शुभ कार्यों के लिए मुहुर्त शुरू हो जाएंगे।

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यह एक खगोलीय घटना है जब सूर्य हर वर्ष धनु से मकर राशि में प्रवेश करता है और हर बार यह समय लगभग 20 मिनट बढ़ जाता है। अत: 72 साल बाद एक दिन का अंतर पड़ जाता है। पंद्रहवीं शताब्दी के आसपास यह संक्रांति 10 जनवरी के आसपास पड़ती थी और अब यह 14 या 15 जनवरी को होने लगा है।

गणनानुसार 15 को पड़ेगी मकर संक्रांति

वेदाचार्य स्वामी निगम बोध तीर्थ के अनुसार लगभग 150 साल के बाद 14 जनवरी की तिथि आगे पीछे हो जाती है। सन् 1863 में मकर संक्रांति 12 जनवरी को पड़ी थी। 2018 में मकर संक्रांति 14 जनवरी को थी। 2019 तथा 2020 में यह 14 जनवरी के दोपहर बाद शुरू होगी और 15 जनवरी को भी पड़ेगी। गणना यह है कि 5 हजार साल बाद मकर संक्रांति फरवरी के अंतिम सप्ताह में मनानी पड़ेगी।

14 जनवरी 2019 सोमवार, अष्टमी तिथि, अश्विनी नक्षत्र में रात्रि 7 बजकर 50 मिनट पर सूर्य मकर राशि में प्रवेश करेंगे। इसका पुण्यकाल मंगलवार 15 जनवरी, दोपहर 1 बजकर 26 मिनट के बाद आरंभ होगा। एक गणनानुसार पुण्य काल प्रात: 7.19 से दोपहर 12.30 तक रहेगा जिसमें संक्रांति स्नान तथा दानादि किया जाता हैे। मंगलवार को उदया तिथि होने के कारण इस बार मकर संक्रांति 15 जनवरी को ही मनाई जाएगी।

क्या करें मकर संक्रांति पर

डॉ. पुनीत गुप्ता के अनुसार इस दिन से प्रयाग में अर्धकुंभी पर्व भी शुरू हो रहा है। मकर संक्रांति में पवित्र नदियों एवं तीर्थों में स्नान, दान, देव कार्य एवं मंगलकार्य करने से विशेष लाभ होता है। सूर्योदय के बाद खिचड़ी आदि बनाकर तिल के गुड़वाले लडडू प्रथम सूर्यनारायण को अर्पित करना चाहिए बाद में दानादि करना चाहिए। अपने नहाने के जल में तिल डालने चाहिए। मंत्र: ओम नमो भगवते सूर्याय नम: या ओम सूर्याय नम: का जाप करें।

माघ माहात्म्य का पाठ भी कल्याणकारी है। सूर्य उपासना कल्याण कारी होती है। सूर्य ज्योतिष में हडिड्यों के कारक भी हैं अत: जिन्हें जोड़ों के दर्द सताते हैं या बार बार दुर्घनाओं में फैक्चर होते हैं उन्हें इसदिन सूर्य को जल अवश्य अर्पित करना चाहिए।

मंदिरों व गुरुद्वारों में संक्रांति उत्सव की तैयारियां जारी

वर्ष की प्रथम महा मकर संक्रांति उत्सव को लेकर शहर के मंदिरों व गुरुद्वारों में तैयारियां जारी है। इस अवसर पर महामंडलेश्वर स्वामी वेद भारती म. व महंत नारायण पुरी ने कहा कि वर्ष की प्रथम मकर संक्रांति सूर्य की उपासना, पूजा अर्चना व दान पुण्य के लिए सर्वोत्तम है, इसलिए सभी को इस दिन दान पुण्य जरूर करना चाहिए। मंदिरों में खिचड़ी का प्रसाद बांटा जाएगा व इस दिन की महता से अवगत कराया जाएगा। श्री रामशरणम किचलू नगर, दरेसी में संतों के सानिध्य में धर्म सभाएं होंगी।

माघ मेले के रूप में मनाया उत्सव

आचार्य सत्या नारायण ने कहा कि उत्तर भारत में इस त्योहार को माघ मेले के रूप में मनाया जाता है तथा इसे दान पर्व माना जाता है। 14 दिसंबर से 14 जनवरी तक खर मास या मल मास माना जाता है जिसमें विवाह संबंधी मांगलिक कार्य नहीं किए जाते। अत: 14 जनवरी से अच्छे दिनों का शुभारंभ माना जाता है।

महाराष्ट्र में गुड़ व तमिलनाडु में पोंगल उत्सव

मकर संक्रांति के स्नान से लेकर शिवरात्रि तक स्नान किया जाता है। इस दिन खिचड़ी सेवन तथा इसके दान का विशेष महत्व है। इस दिन को खिचड़ी संक्रांति भी कहा जाता है। महाराष्ट्र में इस दिन गुड़ तिल बांटने की प्रथा है। यह बांटने के साथ-साथ मीठा बोलने का आग्रह किया जाता है। गंगा सागर में भी इस मौके पर मेला लगता है। कहावत है- सारे तीर्थ बार-बार गंगासागर एक बार। तमिलनाडु में इसे पोंगल के रूप में चार दिन मनाते हैं और मिट्टी की हांडी में खीर बनाकर सूर्य को अर्पित की जाती है। पुत्री तथा दामाद का विशेष सत्कार किया जाता है। असम में यही पर्व भोगल बीहू हो जाता है।

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