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दिखावे का कल्चर छोड़ सेविंग को अपनाएं तो कर्ज से मिलेगी मुक्ति

किसानों व आम लोगों में बढ़ रही आत्महत्या की प्रवृत्ति को रोकने के लिए सुझाव तलाशने को लेकर पंजाब कृषि विश्वविद्यालय में सोमवार को व‌र्ल्ड सुसाइड प्रीवेंशन डे पर पैनल डिस्कशन आयोजित की गई। इसमें अलग-अलग क्षेत्रों से विशेषज्ञ शामिल हुए।

By JagranEdited By: Published: Tue, 11 Sep 2018 07:00 AM (IST)Updated: Tue, 11 Sep 2018 11:45 AM (IST)
दिखावे का कल्चर छोड़ सेविंग को अपनाएं तो कर्ज से मिलेगी मुक्ति
दिखावे का कल्चर छोड़ सेविंग को अपनाएं तो कर्ज से मिलेगी मुक्ति

जासं, लुधियाना : किसानों व आम लोगों में बढ़ रही आत्महत्या की प्रवृत्ति को रोकने के लिए सुझाव तलाशने को लेकर पंजाब कृषि विश्वविद्यालय में सोमवार को व‌र्ल्ड सुसाइड प्रीवेंशन डे पर पैनल डिस्कशन आयोजित की गई। इसमें अलग-अलग क्षेत्रों से विशेषज्ञ शामिल हुए।

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पैनल डिस्कशन में पद्मश्री संत बाबा सेवा सिंह, पंजाबी यूनिवर्सिटी पटियाला के मनोविज्ञान विभाग की प्रमुख डॉ. हरप्रीत कौर, समाज विज्ञान विभाग के प्रोफेसर हरदीप सिंह, दिल्ली यूनिवर्सिटी से डॉ. प्रिया बीर, पूर्व बैंकर सतबीर सिंह, डॉ. रवि कंबोज, युवा चिंतक गौरवदीप सिंह, तलवंडी साबो से पूर्व पुलिस अधिकारी शमेशर सिंह, पीएयू के समाज विज्ञान विभाग के डॉ. सुखदेव सिंह व सादी शादी व सादे भोग की मुहिम को पूरे पंजाब में फैलाने वाले डॉ. गुलजार सिंह बरनाला शामिल हुए। फिल्लौर पुलिस अकादमी के प्रमुख डॉ. डीजे सिंह इस पैनल डिस्कशन में बतौर निर्णायक शामिल हुए। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के वीसी डॉ. बलदेव सिंह ढिल्लों ने इसकी अध्यक्षता की। पैनल डिसक्शन छह विषयों पर हुआ। इसमें ज्यादातर विशेषज्ञों ने एक ही बात पर जोर दिया कि यदि लोग दिखावे का कल्चर छोड़कर सेविंग का कल्चर अपना लें, तो कर्ज के बोझ के तले दबे होने की समस्या पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है। विशेषज्ञों का कहना था कि पिछले एक दशक में ज्यादातर आत्महत्याओं का कारण कर्ज न दे पाना रहा। इस दौरान एनजीओ व स्टूडेंट्स ने भी सुझाव दिए।

पीएयू सुसाइड रोकने के लिए हेल्पलाइन शुरू करे: डॉ.

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इंटरनेशनल टेली साइकोलॉजी एसोसिएशन व रीफोक्स फाउंडेशन के प्रेसिडेंट डॉ. डीजे सिंह ने ओपन राउंड क्रिएटिव इनीशिएटिव विषय पर अपने विचार रखे। कहा कि पीएयू की ओर से किसानों में सुसाइड की प्रवृत्ति को रोकने के लिए काफी कुछ किया जा रहा है। वह चाहेंगे कि पंजाब कृषि विश्वविद्यालय एक ऐसी हेल्पलाइन शुरू करे, जहां निराशा में घिरे लोगों को फिर चाहे वह कोई किसान हो, युवा हो, महिला हो या शहरी हो उसे काउंसलिंग के माध्यम से मदद मिलें। क्योंकि कोई भी इंसान निराश, हताशा व सुसाइड जैसा कदम तभी उठाता है जब वह मजबूर हो चुका हो, उसे सुनने वाला कोई न हो। डॉ. डीजे सिंह ने कहा कि यदि पीएयू हेल्पलाइन शुरू करता है, तो वह अपनी तरफ से साइकोलजिस्ट की एक टीम की कॉम्पलीमेंटरी सर्विस देंगे।

------ सादे ब्याह, सादे भोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए : गुलजार सिंह

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सादे ब्याह, सादे भोग को प्रचारित करने के लिए गांव-गांव जाकर लोगों को जागरूक कर रहे किसान गुलजार सिंह ने भी इसमें अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि जो किसान सुसाइड कर रहे हैं, उनके कारण और हैं। जो किसान कहते हैं कि खेती घाटे का सौदा है, ऐसा उनकी गलत आदतों की वजह से है। किसानों में दिखावे का चलन बहुत है। शादी और भोग पर लाखों खर्च करते हैं। जबकि ये सादगी के साथ भी किए जा सकते हैं। जो भी शख्स जरूरत से ज्यादा खर्च करता है, वह बाद में पछताता जरूर है।

-लोग फालतू के खर्च बंद करें तो बदल सकते हैं हालात : शमशेर सिंह

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इंस्पेक्टर शमेशर सिंह ने 'दिखावा को छोड़ सादगी अपनाएं' विषय पर अपनी राय रखते कहा कि पंजाबियों को दिखावे के चलन से खुद को दूर रखकर फालतू खर्च को बंद करना होगा। अकसर देखने को मिलता है कि एक पड़ोसी ने यदि बेटे की शादी में 20 लाख रुपये खर्च किए हैं, तो दूसरा पड़ोसी खुद को उससे बेहतर साबित करने के लिए 25 लाख रुपये खर्च करता है। जब तक लोग इस दिखाने से बाहर नहीं आते, तब तक वह कर्ज से मुक्त नहीं हो सकते। कर्ज मुक्त होने के लिए दिखावे का कल्चर छोड़कर सेविंग कल्चर को अपनाना होगा।

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सुसाइड करने के तरीके को प्रचारित न किया जाए : प्रो. सर्बजीत

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पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के जर्नलिज्म विभाग के प्रोफेसर डॉ.सर्बजीत सिंह ने 'रिपोर्टिग हो प्रचार नहीं' विषय पर विचार रखते हुए कहा कि मीडिया का समाज निर्माण में बहुत बड़ा रोल है। मीडिया से यही अपील होगी कि सुसाइड की रिपोर्टिग करते वक्त सुसाइड के मैथेड यानी तरीके व ढंग को न लिखा जाए। ऐसा करने से लोगों को सुसाइड के तरीके पता चलते हैं।

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परिवार में सुनने व समझने वाला माहौल बने : गौरवजीप

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युवा चिंतक गौरवदीप ने कहा कि आजकल अभिभावकों के पास वक्त ही नहीं है कि वह बच्चों की बात सुन सकें। बच्चों पर नजर रख सकें। यदि वह सुन भी लेते हैं, तो समझते नहीं। अभिभावकों को चाहिए कि वह बच्चों को शुरू से ही घर में दोस्ताना माहौल दें। इससे कि वह अपनी अच्छी बुरी बातें, फैसलों को बेझिझक बता सकें।

--- परिवार के सभी सदस्य रात का खाना साथ बैठकर खाएं: डॉ. प्रिया

दिल्ली यूनिवर्सिटी से आई डॉ. प्रिया बीर ने भी इस डिसक्शन में अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि यह देखने को मिला है कि रात का खाना जिन परिवारों में एक साथ बैठकर खाया जाता है, वहां बिहेवियर प्रॉब्लम कम हैं। क्योंकि साथ खाना खाने के दौरान हम कई तरह की बातें एक-दूसरे से सांझा करते हैं।


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