अपनी जरूरतें कम करके जरूरतमंदों को देने वाला सच्चा धनी
सविल लाइंस जैन स्थानक महावीर भवन की सभा में उप-प्रवर्तक श्री पीयूष मुनि ने दैनिक प्रवचन में कहा कि परिग्रह मनुष्य को लोभी बनाता है।
संस, लुधियाना : सिविल लाइंस जैन स्थानक महावीर भवन की सभा में उप-प्रवर्तक श्री पीयूष मुनि ने दैनिक प्रवचन में कहा कि परिग्रह मनुष्य को लोभी बनाता है। मनुष्य को चाहिए कि वे लोभी बनने के बजाए दानी बन जाए। एकत्रित किया हुआ धन पाले हुए शत्रु की तरह होता है और उसे छोड़ना भी मुश्किल हो जाता है। धन से धन की भूख बढ़ती जाती है और उससे कभी तृप्ति नहीं होती। धन का संग्रह करने वाला धनी नहीं कहलाता। सच्चा धनी तो वह है जो अपनी जरूरतें कम करके दूसरे जरूरतमंदों को देता है।
दौलत बहुत अधिक संचय करने में नहीं बल्कि जरूरतें कम करने में है। दूसरे शब्दों में समझना चाहिए कि एक मनुष्य की जितनी जरूरत है वह उतने ही धन का अधिकारी है। आवश्यकता से अधिक धन एकत्रित करने का मतलब है दूसरों का पेट काटकर अपनी तिजोरियां भरना। धन उसका नहीं है, जिसके पास वह है, बल्कि उसका है जो उसका इस्तेमाल करता है। संग्रह वृत्ति पाप है तथा दान धर्म है। गृहस्थ के लिए दान उत्तम धर्म है। प्रार्थना खुदा की तरफ आधे रास्ते तक ले जाती है। उपवास खुदा के महल के दरवाजे पर पहुंचाता है और दान उसके भीतर प्रवेश की इजाजत देता है। दान के बलबूते पर व्यक्ति धरती को हिला सकता है और पर्वतों को भी चकनाचूर कर देता है।
आचार्य सम्राट श्री आत्मराम म. की 137वीं जन्म जयंती पर उनके पौत्र शिष्य उप-प्रवर्तक पीयूष मुनि ने उनके जीवन से स्वाध्याय, समन्वय तथा सहनशीलता के गुण की शिक्षा लेने की प्रेरणा दी। उन्होंने कहा कि आचार्य श्री जैन आगामों के चलते, फिरते शब्दकोष, मदान, प्रवचनकार, उच्च कोटि के साहित्यकार, आदर्श समाज सुधारक, धर्मो पदेशक, आलौकिक शक्तियों से संपन्न महापुरुष थे। शारीरिक कष्ट को बिना किसी पक्षपात के समन्वय स्थापित करने के लिए वे दिव्य पुत्तष सदैव प्रयत्नशील रहते थे। ऐसे महापुरुष किसी एक जाति या संप्रदाय के न होकर मानव जाति के अलंकार होते है।