शिष्य बनकर ज्ञान प्राप्त करना चाहिए : मुनि भूपेंद्र
जो व्यक्ति अपने जीवन में अहंकार को तिलांजलि देकर जान के क्षेत्र में आगे बढ़ता है। वही ज्ञान प्राप्त करने में सफलता प्राप्त कर सकता है। जान हमेशा विनम्रता के साथ में ही प्राप्त होता है। जो साधक विनम्र होता है। वही ज्ञान प्राप्त करने का अधिकारी बन जाता है।
संस, लुधियाना : जो व्यक्ति अपने जीवन में अहंकार को तिलांजलि देकर जान के क्षेत्र में आगे बढ़ता है। वही ज्ञान प्राप्त करने में सफलता प्राप्त कर सकता है। जान हमेशा विनम्रता के साथ में ही प्राप्त होता है। जो साधक विनम्र होता है। वही ज्ञान प्राप्त करने का अधिकारी बन जाता है। गुरूता है वह हमेशा जान को रोकने वाली बन जाती है। अहंकार जहां आता है। वहां पर ज्ञान का द्वार है। वह अपने आप ही बंद हो जाता है, शिष्य बन कर ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए। ये विचार आचार्य तुलसी कल्याण केंद्र प्रांगण में धर्म सभा को संबोधित करते हुए मुनि भूपेंद्र कुमार ने व्यक्त किए। सर्वप्रथम मुनि पदम कुमार ने अपने गीत के माध्यम से प्रस्तुति दी।
उन्होंने आगे कहा आज जो ज्ञान के मार्ग अवरूद्ध होती जा रही हैं। अहंकार का मार्ग है। वह और ज्यादा तीव्र गति के साथ में प्रशस्त होता जा रहा है। इसका मुख्य कारण यही उभर कर आ रहा है। आज हमारे जीवन में विनम्रता का समावेश नहीं हो रहा है। बिना विनम्रता के जो ज्ञान प्राप्त किया जाता है। वह अहंकार को जन्म देने वाला बन जाता है। जब अहंकार का जन्म हो जाता है। तब हमारे भीतर के अंदर जहरीला नाग है। वह फुफकार मारना प्रारंभ कर देता है। हमारा जीवन है वह जहरीला बन जाता है। अहंकार है वह सबसे बड़ा जहर वह होता है। वह जब हमारे जीवन में प्रवेश कर जाता है। फिर मृत्यु के अलावा और कोई चारा हमारे पास में नहीं रहता है, विनम्रता है वह हमारे जीवन के लिए वरदान बन जाती है। ज्ञान का दीपक है वह हमारे जीवन में चलकर हमारे जीवन को प्रकाश में बनाने वाला बन जाता है।