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तीस जैन आगम शास्त्रों के ज्ञाता थे मायाराम महाराज

शिरोमणि श्री मायाराम जी महाराज भारत के एक ऐसे दिव्य संत हुए है जो अपने तप त्याग संयम साधना आदि विशिष्ट गुणों में समस्त भारत में विख्यात हैं। श्री मायाराम का जन्म हरियाणा के बड़ौदा ग्राम में हुआ था।

By JagranEdited By: Published: Mon, 21 Sep 2020 01:30 AM (IST)Updated: Mon, 21 Sep 2020 01:30 AM (IST)
तीस जैन आगम शास्त्रों के ज्ञाता थे मायाराम महाराज
तीस जैन आगम शास्त्रों के ज्ञाता थे मायाराम महाराज

संस, लुधियाना : शिरोमणि श्री मायाराम जी महाराज भारत के एक ऐसे दिव्य संत हुए है जो अपने तप, त्याग, संयम, साधना आदि विशिष्ट गुणों में समस्त भारत में विख्यात हैं। श्री मायाराम का जन्म हरियाणा के बड़ौदा ग्राम में हुआ था। माता-पिता होने का गौरव नंबरदार चहल गोत्रीय जाट चौधरी जोत राम एवं उनकी धर्मपत्नी शोभावती को 12 जून 1854 में प्राप्त हुआ। उनके बडे़ भाई आदराम तथा छोटे भाई सुखीराम व रामनाथ थे। मायाराम एक ऐसे बालक थे, जो जन्म होने पर रोए नहीं थे। देह से अत्यधिक सुंदर व मन व्यवहार से अत्यधिक शालीन थे। स्वाभिवाक था कि सबका ध्यान इनकी ओर आकर्षित होता। जैन मुनि-दव्य श्री गंगाराम महाराज एवं रतिराम महाराज का पदार्पण बड़ौदा ग्राम में हुआ। उन्होंने बालक मायाराम को अपने ज्योतिष ज्ञान में देखा। इस बालक में असाधारण व्यक्तित्व इसके भीतर छिपा है। पारखी मुनिव्दय ने बालक मायाराम से परिचय करते हुए शिक्षा हेतु प्रेरित किया। मुनिदव्य ने शिक्षा का दायित्व स्वयं ग्रहण किया। मायाराम अध्ययन व धर्म ध्यान से धीरे-2 निपुण होने लगे। बारह वर्ष की अल्पवय में माता पिता का साया सिर से उठ गया। चार वर्ष बाद सौलह वर्ष की आयु में मायाराम गांव के नंबरदार बने। विवाह की चर्चा चली तो ज्ञान वैराग्य, शास्त्र भाषा पठित मायाराम ने स्पष्टत: अस्वीकृति प्रकट की। उनकी जीवन दिशा बदल चुकी थी।

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एक बार नंबरदार युवक मायाराम एक सरकारी कार्य से पटियाला पंजाब गए, वहां पंजाब मुनि परंपरा के प्रसिद्ध संत हरनाम दास महाराज से उनकी भेंट हुई। उनसे मुनि दीक्षा प्रदान करने की प्रार्थना की। मुनि गंगाराम से अनुमति लेकर मुनि हरनाम म. ने 28 जनवरी 1877 के दिन दीक्षा प्रदान की। अब श्री मायाराम महाराज की ²ढ़ संयमयात्रा आरंभ हुई। अनेक ऋद्धि-सिद्धियों उनके सम्मुख नतमस्तक होने लगी। उनके संयम से प्रभावित होकर आचार्य मोती राम महाराज ने चारित्र चूड़ामणि तथा आचार्य श्री उदय सागर महाराज राजस्थान ने संयम सुमेरु पद उन्हें प्रदान किए। श्रावक जनों का कहना था कि भगवान महावीर की आज्ञाओं का साकार रूप यदि देखना हो तो महामुनि श्री मायाराम महाराज के दर्शन कर लो। अनेक धर्मों के गहन अध्ययन से समुद्धि मुनि मायाराम तीस जैन आगम शास्त्र के ज्ञाता थे। उन्हें पंजाब की कोयल कहकर भी सम्मान दिया जाता था। समस्त भारत में उनकी वाणी गूंजी। अनेक राजाओं ने शिकार व मांस-भक्षण त्याग दिया तथा अनेक राज्यों में शिकार पर प्रतिबंध लगाएं। अछूत कहलाए जानेवाले अनेक लोगों ने मांस मदिरा छोड़, जैन धर्म स्वीकार किया।

परम श्रद्धेय मायाराम महाराज का यह प्रभाव उनके शिष्यों द्वारा प्रचारित हो रहा है। इनके सात शिष्य बने श्री नानकचंद महाराज, देवीचंद महाराज, छोटा लाल म., वुद्धिचंद महाराज, मनोहर लाल महाराज, सुखीराम महाराज, कन्हैया लाल महाराज। इन शिष्य के श्रमण परिवार में बहुत संख्या में विशाल संख्या है। युग पुरुष श्री माया राम ने 21 सितंबर 1912 भिवानी हरियाणा में अपना नश्वर शरीर त्याग दिया था। आज उनके लाखो अनुयायी भारत वर्ष में विद्यमान है। आज उनके नाम से अनेक विद्यालय, अस्पताल एवं पुस्तकालय सेवारत है।

प्रस्तुति:- आचार्य भगवान श्री सुभद्र मुनि म.


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