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महत्व समय का नहीं, भावना का होता है: भरत मुनि

सुख की तरह दुख को भी समता पूर्वक धारण करना ही धर्म का मूल आधार है। धूप छांव की तरह लाभ हानि जन्म मरण सुख दुख के जोड़े है। एक के साथ एक का संबंध बना हुआ है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 23 Oct 2021 07:20 PM (IST)Updated: Sat, 23 Oct 2021 07:20 PM (IST)
महत्व समय का नहीं, भावना का होता है: भरत मुनि
महत्व समय का नहीं, भावना का होता है: भरत मुनि

संस, लुधियाना : सुख की तरह दुख को भी समता पूर्वक धारण करना ही धर्म का मूल आधार है। धूप छांव की तरह लाभ हानि, जन्म मरण सुख दुख के जोड़े है। एक के साथ एक का संबंध बना हुआ है। वास्तविक सुख भौतिकता में न होकर आध्यात्मिकता में निहित है। भौतिक साधनों के सुख न होकर सुखा भाष मात्र है। एक चूने की डली एक शक्कर की डली। दोनों देखने में समान होते हुए भी एक लाभदायक व एक तरह शाश्वत मिठास लिए रहता है। जो आत्म परक है। बाह्य सुख शारीरिक रहता है। परिवर्तन शील है। अत: सुख भोग में नहीं त्याग में है। यह उक्त पंक्तियां शिवपुरी एस एस जैन स्थानक शिवपुरी की सभा में मधुर वक्ता अचल मुनि ने आयोजित धर्म सभा में व्यक्त किए। इस दौरान भरत मुनि महाराज ने कहा कि यदि खुश रहना है। तो जिदगी के फैसले अपनी परिस्थितियों को देखकर लो। दुनिया को देखकर जो फैसले लेते हैं, वो सदा दुखी ही रहते हैं। उन्होंने आगे कहा कि महत्व समय का नहीं, भावना का होता है। कोई मिनटों में दिल जीत लेता है। कोई जिंदगी भर साथ रहकर भी नहीं। लाख •ामाने भर की, डिग्रियाँ हों, हमारे पास अपनों की तकलीफ ना पढ़ पाये, तो अनपढ हैं हम। उन्होंने कहा कि ताकत बढ़ती है।जब हम हिम्मत करते हैं। एकता बढ़ती है, जब हम एकजुट होते हैं। प्यार बढ़ता है, जब हम साझा करते हैं। रिश्ता बढ़ता है,जब हम परवाह करते हैं।

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