परिवर्तन वस्तु का धर्म: अचल मुनि
एसएस जैन स्थानक शिवपुरी सभा के तत्वाधान में चल रही चातुर्मास सभा में मधुर वक्त अचल मुनि ने कहा कि पांडव शालीन थे परंतु कौरव उदत थे। अगर आपने अपनी आत्मा को परमात्मा बनाना है तो संस्कारों को ग्रहण करना पडे़गा।
संस, लुधियाना : एसएस जैन स्थानक शिवपुरी सभा के तत्वाधान में चल रही चातुर्मास सभा में मधुर वक्त अचल मुनि ने कहा कि पांडव शालीन थे, परंतु कौरव उदत थे। अगर आपने अपनी आत्मा को परमात्मा बनाना है तो संस्कारों को ग्रहण करना पडे़गा। जले सिंह के दूध को रखना हो तो सोने के पातरे में ही रखना होगा। अपने आप को खाली करो, आई एम नाथंगि। फिर परमात्मा की वाणी को भरो। आप जब तक जीरो नहीं बनेंगे, तब तक आप शासन के हीरो नहीं बनेंगे। उन्होंने कहा कि परिवर्तन वस्तु का धर्म है। नये कपड़े पुराने हो जाते है। समय आने पर नया घर, नए संबंध, एक दिन पुराने हो जाते है। जिसने जन्म लिया है, एक न एक दिन अवश्य मरेगा, क्योंकि चीज सदा एक ही व्यक्ति के पास रहे, यह संभव नहीं है। अत: वस्तु व्यक्ति पर ज्यादा आसक्ति न रखे। यही आसक्ति इस आत्मा को रुलाती है, दुखाती है, सताती है और भटका देती है। अनासक्त जीवन ही वास्तव में सुख कारण है। उन्होंने कहा कि सुखी जीवन के लिए चार सूत्र है। हमेशा अपने छोटो को देखो। आप बड़ों की दुकान या मकान को देखोगे तो दुखी हो जाओगे। दूसरी बात है बड़ों को देखकर आगे बढ़ो। उनकी सेवा, त्याग, दान, उपकार को देखकर वैसा करने का भाव बनाओ। तीसरी बात है अच्छे के लिए सदा प्रयत्न शील रहे। सदा चितन कर अच्छे कार्य मेरे हाथ से भी हो, इस बात के लिए प्रयत्न रहना चाहिए। चौथी बात है बुरे के लिए तैयार रहो। जीवन मात्र फूल की शैया नहीं है। कांटों का सेज है।