धर्म को जीवन व्यवहार में उतारे: साध्वी रत्न संचिता
धर्म सभा में साध्वी रत्न संचिता ने कहा कि आज का मानव मन से अशांत है उत्पीड़ित है। इसी के चलते वह रात दिन चिता ग्रस्त बना रहता है। मन को शुभ विचारों से ही वश में किया जा सकता है।
संस, लुधियाना : तपचंद्रिका श्रमणी गौरव महासाध्वी वीणा महाराज, नवकार आराधिका महासाध्वी सुनैया म., प्रवचन भास्कर कोकिला कंठी साध्वी रत्न संचिता महाराज, विद्याभिलाषी अरणवी म., नवदीक्षिता साध्वी अर्शिया, नवदीक्षिता आर्यनंद ठाणा-6 एस एस जैन स्थानक रुपा मिस्त्री गली में सुखसाता विराजमान है। इस अवसर पर चल रही धर्म सभा में साध्वी रत्न संचिता ने कहा कि आज का मानव मन से अशांत है, उत्पीड़ित है। इसी के चलते वह रात दिन चिता ग्रस्त बना रहता है। मन को शुभ विचारों से ही वश में किया जा सकता है। अभ्यास व वैराग्य द्वारा ही मन शांत होता है। आज का मानव मन संसारिक प्रलोभनो में वासना में संलग्न रहता है। परिणामत: वह ओर अधिक अशान्ति में चला जाता है। मन को वश में रखने के लिए खान पान, रहन सहन की सात्विकता शुद्धता आवश्यक है। मन को संयम में रखने वाला ही मनोविजेता बनकर जगत विजेता बन जाता है। जैसा अभ वैसा मन, जैसा पानी, वैसी वाणी का असर जीवन में हमेशा रहता है। उन्होंने आगे कहा कि धर्म तो जीवन व्यवहार में उतरना चाहिए। बचपन में जीवन काल में पडे़ संस्कार और धर्म जीवन भर के लिए काम आते हैं। उन्होंने कहा कि जगह बदलने से कुछ नहीं होता, अपना स्वभाव बदलो।