प्रार्थना सर्वत्र के लिए, कामना में स्वार्थ भाव होता: रचित मुनि
एसएस जैन स्थानक जनता नगर चातुर्मास हेतू विराजित जितेंद्र मुनि जी म. के सानिध्य में मधुर वक्ता श्री रचित मुनि ने कहा कि प्रार्थना और कामना में बहुत अंतर है कामना अपने लिए प्रार्थना सर्वत्र के लिए कामना में स्वार्थ भाव होता है और प्रार्थना में निस्वार्थ भाव होता है। आज हम प्रार्थना कम करते हैं कामनाएं ज्यादा रखते हैं जो स्वार्थी है।
संस, लुधियाना : एसएस जैन स्थानक जनता नगर चातुर्मास हेतू विराजित जितेंद्र मुनि जी म. के सानिध्य में मधुर वक्ता श्री रचित मुनि ने कहा कि प्रार्थना और कामना में बहुत अंतर है कामना अपने लिए प्रार्थना सर्वत्र के लिए, कामना में स्वार्थ भाव होता है और प्रार्थना में निस्वार्थ भाव होता है। आज हम प्रार्थना कम करते हैं, कामनाएं ज्यादा रखते हैं, जो स्वार्थी है। वह अपनी अपनी सोचता है और जो निस्वार्थी हैं वह सब की सोचता है, सबका मंगल सबका भला हो ऐसी भावना जो रखते है वह अपना जीवन सार्थक किया करते हैं।
उन्होंने आगे कहा कि किसी अनुभवी ने कहा कि अगर इंसान में से कामनाएं निकल जाए, तो वह भगवान हो जाता है, ओर अगर भगवान में कामनाएं आ जाए तो वह भगवान से इंसान हो जाता है इतना ही अंतर है भगवान और इंसान में। अगर हमें भगवान बनना है तो हमारे को अपनी इच्छाओं को खत्म करना पड़ेगा, क्योंकि इच्छाएं कामनाएं दुख का कारण है इच्छाएं संसार बढ़ाती है। जन्म मरण बढ़ाती है और इच्छाएं चौरासी लाख योनियों में भटकाती है।
अंत मे श्री जितेंद्र मुनि महाराज ने अपने भाव व्यक्त किए कि भगवान महावीर का सानिध्य पाकर प्रभु की वाणी सुनकर कसाई का पुत्र सुलस निहाल हो गया और उसने श्रावक के 12 व्रतों को ग्रहण किया। जीवन सफल बनाया और जो अपना उसका कसाई का कर्म था उसको छोड़कर धर्म आराधना में जीवन व्यतीत किया आगे जाकर वही सुलस पुनिया श्रावक के नाम से जगत प्रसिद्ध हुआ। यह भगवान की संगति का प्रभाव था। उसके जीवन में बहुत बड़ा परिवर्तन आया। इस अवसर पर चेयरमैन कुलभूषण जैन, प्रधान सुनील जैन, उपाध्यक्ष पंकज जैन, महामंत्री हरदीप जैन, कोषाध्यक्ष प्रमोद जैन, दीपक जैन आदि शामिल थे।