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सेवा धन से नहीं, मन से होती है : देवकीनंदन

श्रीमद् भागवत कथा के सातवें दिन देवकी नंदन ठाकुर ने श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता की सुंदर कथा श्रोताओं को श्रवण कराई।

By JagranEdited By: Published: Fri, 12 Jul 2019 07:57 AM (IST)Updated: Sat, 13 Jul 2019 06:30 AM (IST)
सेवा धन से नहीं, मन से होती है : देवकीनंदन
सेवा धन से नहीं, मन से होती है : देवकीनंदन

संस, लुधियाना : विश्व शांति सेवा चैरिटेबल ट्रस्ट के तत्वावधान में करनैल सिंह नगर, अटल अपार्टमेंट, नजदीक सिंह सभा गुरुद्वारा, पक्खोवाल रोड में श्रीमद् भागवत कथा के सातवें दिन देवकी नंदन ठाकुर ने श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता की सुंदर कथा श्रोताओं को श्रवण कराई। उन्होंने कहा कि कृष्ण हर जगह किसी न किसी रूप में मौजूद हैं और जिस जीव के करोड़ो पुण्य एकत्रित होते हैं उसे संपूर्ण भागवत सुनने को प्राप्त होती है। उन्होंने कहा कि सेवा धन से नहीं मन से होती है और जिस परिवार में धर्म नहीं है, अध्यात्म नहीं है वो परिवार मृत सामान है। उन्होंने कहा कि सुदामा एक गरीब ब्राह्मण था। उसकी पत्नी उसे दिलासा देती रहती थी। उसने सुदामा को एक बार अपने परम मित्र श्रीकृष्ण, जो उस समय द्वारका के राजा हुआ करते थे, की याद दिलाई। बचपन में सुदामा तथा श्रीकृष्ण एक साथ मुनि के आश्रम में शिक्षा ग्रहण की थी। पत्नी के कहने पर सुदामा महल के द्वार पर पहुंचे पर वहां के पहरेदारों ने सुदामा को अंदर जाने से रोक दिया। सुदामा ने कहा कि राजा श्रीकृष्ण के बचपन का मित्र हैं और वह उनके दर्शन किए, बिना वहां से नहीं जाएगा। श्रीकृष्ण के कानों तक भी यह बात पहुंची। वह नंगे पांव ही सुदामा से भेंट करने के लिए दौड़ पड़े। दोनों ने एक-दूसरे को गले से लगा लिया तथा दोनों के नेत्रों से खुशी के आंसू निकल पड़े। श्रीकृष्ण सुदामा को महल के अंदर ले गए। उन्होंने स्वयं सुदामा के गंदे पैरों को धोया। उन्हें अपने ही सिंहासन पर बैठाया। भोजन करते समय जब श्रीकृष्ण ने सुदामा से अपने लिए लाए गए उपहार के बारे में पूछा तो सुदामा लज्जित हो गए। परंतु श्रीकृष्ण ने साथ लाए पोटली सुदामा के हाथों से छीन ली और चावल निकालकर खाने लगे। कुछ दिन वहीं ठहर कर सुदामा ने कृष्ण से विदा होने की आज्ञा ली। इस दौरान सुदामा अपने मित्र को द्वारका आने का सही कारण न बता सके और चल दिए। इस दौरान सुदामा की टूटी झोपड़ी सुंदर एवं विशाल महल में बदल गई थी। उसकी पत्नी और बच्चे सुंदर वस्त्र व आभूषण धारण किए हुए उसके स्वागत के लिए खड़े थे। श्रीकृष्ण की कृपा से ही वे धनवान बन गए थे। सुदामा को श्रीकृष्ण से किसी प्रकार की सहायता न ले पाने का मलाल भी नहीं रहा। वास्तव में श्रीकृष्ण सुदामा के एक सच्चे मित्र साबित हुए थे, जिन्होंने गरीब सुदामा की बुरे वक्त में सहायता की।

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