दिशा को बदलो दशा तो खुद बदल जाएगी : अचल मुनि
एसएस जैन सभा शिवपुरी के तत्वावधान में जारी चातुर्मास सभा में मंगलवार को गुरु अचल ने संबोधित किया।
संस, लुधियाना: एसएस जैन सभा शिवपुरी के तत्वावधान व ओजस्वी वक्ता गुरुदेव अचल मुनि म. के सानिध्य में जारी चातुर्मास सभा में मंगलवार को गुरु अचल ने मानव महल की रचना को आगे बढ़ाते हुए कहा कि महल की रचना इसलिए की जाती है, ताकि जीवन में सुख, समृद्धि व शांति आ जाए। घर में समाधि शांति तो सुकून होता है। आज मानव महल में मैत्री का पलंग लगाएंगे। बिना मैत्री के जीवन जंगल के समान है। किसी से भी टकराव न करे, बल्कि समझौता हो। आज वैवाहिक जीवन परेशानी भरा बन रहा है। रिश्तों में खटास पैदा हो रही है, तलाक हो रहे है। आत्माहत्या की जा रही है, क्यों? क्योंकि मैत्री भाव का दंपती में अभाव हो रहा है। अगर पति अपनी पत्नी को ठीक समझे व पत्नी अपने पति को सही समझे तो याद रखना ये परेशानियां नहीं आएंगी। लोग कहते हैं दो बर्तन होंगे तो जरूर आपस में टकराएंगे और शोर करेंगे। इसको बुरा माना जाता है। पर मैं कहता हूं बर्तनों का खटकना बुरा नहीं, बल्कि टूटना बुरा है। मैत्री में कोई छोटा नहीं होता, मनुष्य जाति सब एक है। स्वयं को बदलो, दिशा को बदलोगे तो दशा तो स्वत: बदल जाएगी। उन्होंने कहा कि सात वचनों को सदा स्मृति में रखें तो कभी भी मुसीबत नहीं आएगी। आदर की परस्पर भावना हो। अरे एक लड़की 22-25 वर्ष अपने घर में लगाकर फिर एकदम नए परिवार में सहर्ष चली जाती है वो अपने परिवार को छोड़ती है तो पति का भी फर्ज बनता है कि उसका सम्मान करे। आदर करे। जुड़ाव की भावना का दूसरा फेरा। आध्यात्मिक एवं मानसिक जीवन ऊंचा उठे। दिल की बात भी उसी से सांझी की जाती है जिसमें जुड़ाव होता है। सहभाविता रुप तीसरा फेरा, अर्थात विषम परिस्थितियों में भी समरूप रहे। प्यार की भावना रूपी चतुर्थ फेरा, जीवन पर्याप्त एक दूसरे से प्यार करे। भावना उत्पति का रूप, पंचम फेरा अर्थात एक आदर्श परिवार की रचना करे। एक दूसरे का साथ निभाने का छठा फेरा, भावना मैत्री की रूपी सप्तम फेरा, अर्थात ये फेरा परम आवश्यक है। जीवन भर एक दूसरे के मित्र रहे। अतिशय मुनि ने आध्यात्मिक अंग्रेजी की व्याख्या करते हुए कहा कि सुखी होने के चक्कर में जो पूरी जिदगी दुखी रहता है, उसी का नाम इंसान है।