ईश्वर की प्राप्ति के लिए गुरु की शरण में जाना जरूरी : साध्वी सत्प्रेमा
दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की ओर से गॉड ब्राह्मण धर्मशाला न्यू विष्णु पुरी में चार दिवसीय श्री हरि कथा का आयोजन किया जा रहा है।
संस, लुधियाना : दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की ओर से गॉड ब्राह्मण धर्मशाला न्यू विष्णु पुरी में चार दिवसीय श्री हरि कथा का आयोजन किया जा रहा है। प्रथम दिन शिष्या साध्वी सत्प्रेमा भारती ने संत ज्ञानेश्वर की पावन कथा का वाचन करते हुए कहा कि जब-जब संत महापुरुष इस धरती पर अवतार लेते हैं तो उनका आने का उद्देश्य इंसान को ईश्वर के साथ जोड़ना होता है। संसार में कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो संतों को समझ नहीं पाते हैं और उनका विरोध करते हैं। उनका अपमान करते हैं और ऐसा ही संत ज्ञानेश्वर जी के साथ भी होता है। आगे चलकर जब वह अपने भाई और गुरु से ज्ञान दीक्षा को हासिल करते हैं तो वह इस संसार को ज्ञान बांटते हैं। कथा के आगे एक चांगदेव नाम का तपस्वी था। जो अपनी तंत्र विद्या के द्वारा लोगों को सुख, धन आदि देता था और तो और वह मृत्यु को प्राप्त कर चुके लोगों को जीवित भी कर देता था। जब उसने उनकी महिमा सुनी तो वह क्रोध में आ जाता है और कहता है कि मेरे तप के समान उनका तप छोटा है और संत ज्ञानेश्वर जी की परीक्षा लेता है। इधर जैसे ही वह एक शेर पर बैठकर उनकी परीक्षा लेता है तो संत ज्ञानेश्वर जी एक दीवार पर बैठे-बैठे दीवार को आज्ञा देते हैं तो दीवार चल पड़ती है। यह देखकर चांगदेव हैरान हो जाता है कि वह उनको अपना गुरु धारण करता है। उनसे ब्रह्मज्ञान की दीक्षा प्राप्त करता है।
साध्वी ने कहा कि सृष्टि का अटल नियम है यदि ईश्वर की भक्ति करनी है तो गुरु शरण में जाना पड़ेगा। कुछ लोग कहते हैं कि गुरु धारण करने की क्या आवश्यकता है। स्वामी राम कृष्ण परमहंस जी ने मां काली को प्रसन्न किया। उन्हें मां दर्शन देती थी यदि वे भक्ति गुरु के बिना कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं। अंत में आरती के साथ कथा को विश्राम दिया गया।