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आंखों से विकारों का कचरा निकाल प्रभु के दर्शन करें

परमात्मा ने हमें पांच इन्द्रियां दी है, अगर हम इसमें आसक्त हो गए तो हमारा पतन निश्चित है। अगर विरक्त हो गए तो हमारा जीवन सफल हो जाएगा। इस विरक्ति के कारण हम रूपवान कहलाएंगे। हमारा मन हमें नचाता है, हमारी इन्द्रियों को उतेजित करता है। हम सारी जिंदगी अपनी इच्छाएं पूरी करते रहें तो भी इनका कोई अंत नहीं है। यह विचार मुनि मोक्षानंद ने आत्म धर्म कमल हाल की सभा में व्यक्त किए।

By JagranEdited By: Published: Sat, 22 Sep 2018 06:00 AM (IST)Updated: Sat, 22 Sep 2018 06:00 AM (IST)
आंखों से विकारों का कचरा निकाल प्रभु के दर्शन करें
आंखों से विकारों का कचरा निकाल प्रभु के दर्शन करें

संस, लुधियाना : परमात्मा ने हमें पांच इन्द्रियां दी है, अगर हम इसमें आसक्त हो गए तो हमारा पतन निश्चित है। अगर विरक्त हो गए तो हमारा जीवन सफल हो जाएगा। इस विरक्ति के कारण हम रूपवान कहलाएंगे। हमारा मन हमें नचाता है, हमारी इन्द्रियों को उतेजित करता है। हम सारी जिंदगी अपनी इच्छाएं पूरी करते रहें तो भी इनका कोई अंत नहीं है। यह विचार मुनि मोक्षानंद ने आत्म धर्म कमल हाल की सभा में व्यक्त किए।

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गच्छाधिपति नित्यानंद सूरी महाराज के सान्निध्य में जारी चातुर्मास सभा में मुनि मोक्षानंद ने आगे कहा कि परमात्मा तो हमारा दर्पण है, इसमें अपना रूप नहीं अपना स्वरूप दिखाई देना चाहिए। परमात्मा के दर्शन तो निज दर्शन हैं। इन आंखों से हमने विकारों का कचरा ही एकत्रित किया है जो हमारे मानस पटल पर छप गया। इस कचरे को निकालने के लिए हमें प्रभु के दर्शन करने चाहिए। व्यक्ति अपनी आंखों को सुंदर बनाना चाहता है, लेकिन अपनी दृष्टि को सुंदर नहीं बनाना चाहता। अगर हम अपनी दृष्टि को सुंदर बना लें तो आंखे स्वत: सुंदर बन जाएंगी। इन आंखों की शोभा ज्ञानी भगवंतों के दर्शन करने से है ना कि दुनिया का कचरा देखने से। इन आंखों की सार्थकता तभी है कि जब इनमें प्रभु दर्शन की प्यास हो।

सच्ची भक्ति तथा दर्शन की प्यास हो तो मंदिर के बंद कपाट भी अपने आप खुल जाते हैं। मुनि श्री ने कहा कि इस संसार से एक दिन सभी को विदाई लेनी है, लेकिन अंतिम समय में मन निर्मल तथा काया तप से पवित्र बनी हो तो ऐसी मृत्यु महान पुण्य शालियों को ही नसीब होती है। सुश्राविका तृप्ता रानी जैन के मन में बचपन में ही दीक्षा लेने की प्रबल भावना थी। साध्वी प्रगुणा श्री म. की वह बाल सहेली थी, किंतु परिवार ने दीक्षा की अनुमति न मिलने पर गृहस्थ जीवन में भी उन्होंने उच्च, तप, त्यागमय जीवन व्यतीत किया। सन 2002 में 51 उपवास, सन 2018 में 61 उपवास की महान तपस्या संपन्न की। उनके काल धर्म के पश्चात उनकी पालकी यात्रा में वैसा ही स्वरुप बना जैसे किसी साधु साध्वी की अंतिम यात्रा में होता है। ऐसी धर्म मूर्ति सुश्रावकिा के निधन पर परिवार को शोक नहीं करने का गुरु भगवंतों ने संदेश दिया। लहरा गांव के स्कूल के कमरे बनाने के लिए दिया दान

भगवान महावीर स्वामी के 73वें पट्टधर गुरु श्री आत्मा राम जी की जन्म भूमि लहरा गांव से सभी सिख बंधु धर्म कमल हाल में विराजमान 77वें पट्टधर गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद् विजय नित्यानंद सूरी म. के श्री चरणों में उपस्थित हुए। लहरा के जीर्ण शीर्ण स्कूल के कमरों के नवनिर्माण के लिए उनके निवदेन पर गच्छाधिपति की प्रेरणा से तत्काल श्रद्धालुओं की ओर से दान गंगा प्रवाहित हो गई तथा स्कूल की कक्षाओं के नव निर्माण हेतु राशि एकत्रित हो गई।


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