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श्री जगन्नाथ रथ यात्रा: छप्पन भोग, महाआरतियां व स्वागती मंच बनते हैं आकर्षण का केंद्र

23 दिसंबर को निकलने वाली रथयात्रा अब 22 के पड़ाव में पहुंच चुकी है। रथयात्रा में प्रत्येक वर्ष देश-विदेश से अनेकों कृष्ण भक्त भगवान जगन्नाथ की कृपा लेने के लिए महानगर में पधारते हैं।

By Edited By: Published: Sat, 22 Dec 2018 06:40 AM (IST)Updated: Sat, 22 Dec 2018 06:40 AM (IST)
श्री जगन्नाथ रथ यात्रा: छप्पन भोग, महाआरतियां व स्वागती मंच बनते हैं आकर्षण का केंद्र
श्री जगन्नाथ रथ यात्रा: छप्पन भोग, महाआरतियां व स्वागती मंच बनते हैं आकर्षण का केंद्र

लुधियाना, [कृष्ण गोपाल] भगवान श्री कृष्ण की अपंरपार लीलाओं का गुणगान युगों-युगों से चला आ रहा है। द्वापर युग से आरंभ हुई भगवान जगन्नाथ रथयात्रा का आकर्षण पुरी का उड़ीसा रहता है। पुरी में निकलने वाली रथयात्रा में जहां लाखों भक्त हाजिरी लगाते हैं, वहीं 20 शताब्दी में महान संत एवं इस्कान के संस्थापक आचार्य श्रील प्रभुपाद ने 9 जुलाई, 1967 को अमेरिका के सान फ्रांसिस्को की धरती पर जगन्नाथ रथयात्रा का आयोजन प्रथम बार भगवान श्री कृष्ण का नाम विदेशी धरती पर शुरू किया। तब से लेकर आज तक सान फ्रांसिस्को में इस दिन को राष्ट्रीय अवकाश के रूप में मनाया जाता है।

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लुधियाना में 1996 से साक्षी गोपाल दास के प्रयासों से निकाली जाती है यात्रा

लुधियाना में 1996 में श्रील प्रभुपाद की जन्म शताब्दी के अवसर पर इस्कान कुरुक्षेत्र अध्यक्ष साक्षी गोपाल दास व नरोत्तम नंद दास के प्रयासों से इस्कान एवं भगवान जगन्नाथ रथयात्रा महोत्सव कमेटी ने महानगर में प्रथम बार जगन्नाथ रथयात्रा का आयोजन किया। पिछले लगभग दो दशकों से भी अधिक समय से महानगर में जगन्नाथ रथयात्रा का वार्षिक आयोजन अपने पूरे वेग से कृष्ण भक्ति की पराकाष्ठा को बढ़ा रहा है। 23 दिसंबर को निकलने वाली रथयात्रा अब 22 के पड़ाव में पहुंच चुकी है। रथयात्रा में प्रत्येक वर्ष देश-विदेश से अनेकों कृष्ण भक्त भगवान जगन्नाथ की कृपा लेने के लिए महानगर में पधारते हैं। 108 तीर्थो के जल व गोमाता के गोबर से शुद्ध होता रथयात्रा मार्ग रथ के आगे अनेकों वैष्णव संकीर्तन मंडलियां भगवान जगन्नाथ जी के संकीर्तन में लीन रहती हैं। पूरा रथयात्रा मार्ग 108 तीर्थो के जल व गोमाता के गोबर से शुद्ध किया जाता है, ताकि भगवान जगन्नाथ ने जिस मार्ग से निकलना है, उस मार्ग पर भक्त एवं भगवान का मधुर मिलन हो।जगन्नाथ रथ के समक्ष भक्तों द्वारा मोर पंख, आरती, चंवर, इत्र, गुगल, नारियल, कपूर, अगरबत्ती आदि से आरतियां करके जगन्नाथ जी को रिझाया जाता है। अनेकों स्वागती मंच भगवान जगन्नाथ की प्रतीक्षा में पलकें बिछाएं बैठते हैं। भगवान को प्रिय छप्पन भोग, विभिन्न व्यंजन, माखन-मिश्री भोग, भगवान के आगे अर्पित किए जाते हैं।

कैसे पड़ा जगन्नाथ का नाम

भगवान श्री कृष्ण के प्रेम व अविरल भक्ति जगन्नाथ रथयात्रा शुरू होने की पौराणिक इतिहास 5 हजार वर्ष पूर्व द्वापर युग का है, जब भगवान वृंदावन त्याग कर द्वारिका नगरी में अपनी पत्नियों संग विराजमान हुए। उस समय लगे सूर्यग्रहण के विरल अवसर पर युद्ध वंशियों ने कुरुक्षेत्र में स्थित समन्त पंचक नामक पवित्र तीर्थ पर एकत्रित होने तथा यथा रीति वहां स्नान, उपवास, दान आदि करके अपने पापों का प्रायश्चित करने का निश्चय किया। इसके बाद समस्त द्वारिका वासियों ने श्री कृष्ण के नेतृत्व में कुरुक्षेत्र की ओर प्रस्थान किया। जब वृंदावन वासियों को ज्ञात हुआ कि कृष्ण कुरुक्षेत्र आ रहे हैं तो उनको वृंदावन आने का न्योता भेजा गया। निमंत्रण स्वीकार करते श्री कृष्ण, बडे़ भाई बलराम तथा मध्य में बहन सुभद्रा आरुढ़ थी, उस रथ के घोडे़ ब्रज वासियों ने खोल दिए तथा घोड़ों की जगह स्वयं जुट गए। प्रथम बार श्री कृष्ण को तब भगवान जगन्नाथ का नाम दिया गया। आकाश जय जगन्नाथ, जय बलदेव, जय सुभद्रा के उदघोषों से गूंज उठा। इसी सारी लीला को जगन्नाथ रथयात्रा के नाम से जाने लगा


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