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Ludhiana News: 11 दिनों तक कंधों पर उठाते हैं सिंहासन, 200 साल पुरानी है श्री राम की सिंहासन यात्रा की परंपरा

दशहरा उत्सव पर प्रभु श्री राम की सिंहासन यात्रा निकाली जाती है। 200 वर्ष पुरानी इस परंपरा को आज भी उसी तरीके से निभाया जा रहा है। लगभग 11 दिनों तक एक ही परिवार से संबधित 12 लोग अपने कंधों पर प्रभु श्री राम के सिंहासन को उठाते हैं।

By Krishan Gopal Edited By: Published: Thu, 29 Sep 2022 01:20 AM (IST)Updated: Thu, 29 Sep 2022 01:23 AM (IST)
Ludhiana News: 11 दिनों तक कंधों पर उठाते हैं सिंहासन, 200 साल पुरानी है श्री राम की सिंहासन यात्रा की परंपरा
Ludhiana News: 200 साल से भी पुरानी है श्री राम की सिंहासन यात्रा की परंपरा : जागरण

लुधियाना, कृष्ण गोपाल: परंपराएं समाज की नींव होती हैं। आज प्रत्येक समाज परंपराओं में बंधा है। जो समाज अपनी पंरपराओं को संभाल कर रखता है। उस समाज पर प्रभु की कृपा बनी रहती है। कुछ ऐसी परपराएं भी हैं जो पुरातण इतिहास को आज भी जिंदा रखे हुए है। ऐसे ही एक परंपरा लगभग 200 वर्ष पुरानी है। ये परंपरा है शारदीय नवरात्र के शहर में मनाए जाने वाले दशहरा उत्सव की। जिसमें प्रभु श्री राम की सिंहासन यात्रा निकाली जाती है। 200 वर्ष से भी पुरानी इस परंपरा को आज भी उसी तरीके व जज्बे से निभाया जा रहा है।

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लगभग 11 दिनों तक एक ही परिवार से संबधित 12 लोग अपने कंधों पर प्रभु श्री राम के सिंहासन को उठाकर ठाकुरद्वारा से विभिन्न क्षेत्रों से होते हुए दरेसी के रामलीला मैदान पहुंचते है। यहां रामायण का भव्य आयोजन किया जाता है। दरेसी से वापस सिंहासन यही लोग लेकर जाते है। ये क्रम 11 दिन चलता है। गांव उच्चा पिंड सुनेत का मेहरा परिवार 4 पीढियों से इस डोले की सेवा कर रहा है।

उच्चा पिंड सुनेत व पमाल के कहार महेंद्र सिंह ठेकेदार ने बताया कि वे करीब पिछले 70 साल से इस डोले को अपने भाईयों व रिश्तेदारों संग उठाते आ रहे हैं। उनसे पहले उनके पिता बाबूराम जी भी यही कार्य करते थे। आज उनकी तीसरी व चौथी पीढ़ी भी इसी परंपरा को आगे बढ़ा रही है।

महेंद्र सिंह ने बताया कि उनका बेटा परमिन्द्र सिंह बैंक में कार्यरत है। बाकी सभी लोग दिहाड़ीदार है। परमिन्द्र सिंह व जगरुप सिंह ने बताया कि उनकी आने वाली पीढ़ी भी इस परंपरा को ऐसे ही कायम रखेगी। ठेकेदार ने बताया कि इस बार परमिन्द्र सिंह, जगरुप सिंह मेहरा, जोगिन्द्र सिंह मेहरा, सनप्रीत मेहरा, मनप्रीत मेहरा, हरमनजोत, रिक्की पमार आदि द्वारा डोले को ठाकुरद्वारा से दरेसी तक व वापस दरेसी से ठाकुरद्वारा लाया जा रहा है।

डोला उठाने से मिलती है आत्मिक शक्ति

परमिन्द्र सिंह ने बताया कि जब वे प्रभु श्री राम का सिंहासन अपने कंधों पर उठाते हैं तो एक आत्मिक शक्ति व कृपा का अनुभव होता है। लगभग 7-8 किंवटल के इस डोले को उठाने के पीछे वो प्रभु श्री राम की कृपा ही मानते हैं।

ठाकुरद्वारा को सौंपी गई सिंहासन की बागडोर

ठाकुद्वारा में स्थित श्री हनुमान मंदिर की 12वीं गद्दी पर विराजमान मंहत कृष्ण बावा जी के अनुसार पहले ये झांकी किले से दरेसी रामलीला मैदान पहुंचती थी, लेकिन 1857 के बाद इसे ठाकुरद्वारा को सुपुर्द कर दिया गया। उन्होंने बताया कि उनके दादा मंहत मथुरा दास पिता मंहत नंद किशोर की अध्यक्षता में ये डोला निकलता था। मंहत कृष्ण दास बावा ने बताया कि अब उनका बेटा मंहत गौरव बावा अपने बुजुर्गों के नक्शेकदम पर चलकर डोले की सेवा कर पंरपरा को आगे बढ़ा रहा है।

नौ साल पहले बदला गया डोला

कहार परमिन्द्र सिंह व जगरुप सिंह ने बताया कि लगभग 9 साल पहले पुराने डोले को बदलकर नया डोला बनाया गया। डोला बनाने के लिए छत वही इस्तेमाल की गई।


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