मांसाहार मानव का प्राकृतिक भोजन नहीं : मुनि पीयूष
सिविल लाइंस जैन स्थानक में चल रहे पर्यूषण पर्व के चौथे दिन उप-प्रवर्तक श्री पीयूष मुनि म. ने कहा कि द्वारिका जैसी अलका पुरी का विनाश यदुवंशियों के मांसाहार के व्यसन का शिकार होने के कारण हुआ।
संस, लुधियाना : सिविल लाइंस जैन स्थानक में चल रहे पर्यूषण पर्व के चौथे दिन उप-प्रवर्तक श्री पीयूष मुनि म. ने कहा कि द्वारिका जैसी अलका पुरी का विनाश यदुवंशियों के मांसाहार के व्यसन का शिकार होने के कारण हुआ। बुरी आदतें व्यक्ति की जातीयता तथा कुलीनता का विनाश करती हैं और चरित्र का दीवाला निकालती है।
उन्होंने कहा कि मांसहार मानव का प्राकृतिक भोजन नहीं है और तमोगुण प्रधान है। जैसा खाए अन्न, वैसा होवे मन की उक्ति के अनुसार मांसाहार से चित्रवृत्तियां दूषित होती है। मांसाहार से इन्द्रियां अनियंत्रित होती हैं। पशुओं की बीमारियां उनका मांस खाने वालों को भी लग जाती हैं। मांस की परिभाषा ही यही है कि जो यहां किसी को मारकर खाता है, वह परलोक में उसे मारकर हिसाब बराबर करता है। शाकाहारी मांसाहारियों से मानसिक, बौद्धिक, शारीरिक अपेक्षा से कमजोर नहीं होते। शरीर के लिए आवश्यक सभी पौष्टिक तत्व शाकाहारी भोजन में मिल जाते हैं। जब दो रोटियां खाने से भूख मिट जाती है तो फिर किसी निर्दोष का मांस खाने की क्या जरूरत है? जो आहार शरीर, मन, वृद्धि तथा आत्मा को शुद्ध नहीं रख सकता वह पौष्टिक तथा गरिष्ट होने पर भी मानव का स्वाभाविक भोजन नहीं है।
आहार की शुद्धि से अन्त: करण की शुद्धि होती है और स्मृति स्थायी होती है। मनुष्य की शरीर संरचना बताती है कि वह प्रकृति से शाकाहारी है। मनुष्य विश्व का सर्वश्रेष्ठ प्राणी है। वह इस कारण नहीं कि वह दूसरे प्राणियों को सताएं, मारे पीटे, अपने स्वाद के लिए उन्हें मारकर खा जाए। उसकी श्रेष्ठता इसमें है कि वह दूसरें जीवों के प्रति दया, करुणा, स्नेह, सह्मदयता रुपी सदभावना रखे, उन्हें सुख शांति के साथ जीने दे और उनके प्रति मैद्धी तथा आत्मीयता की भावना रखें। पशु पक्षी भी इंसान के छोटे भाइयों के समान है, जिनमें उसके समान आत्म तत्व समाया हुआ है। मांसाहार काम तथा क्रोध की उत्तेजना से मानवीय मर्यादा लांघ देता है तथा पशुओं की जड़ता एवं सुबुद्धि उसमें बनी रहती है।