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अनेक दुखों और कष्टों को गले लगाता है लोभी : मुनि पीयूष

सिविल लाइंस जैन स्थानक की संक्रांति उत्सव की सभा में उप-प्रवर्तक श्री पीयूष मुनि ने कहा कि सांसारिक धन सुपारी के समान है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 17 Sep 2018 08:23 PM (IST)Updated: Mon, 17 Sep 2018 08:23 PM (IST)
अनेक दुखों और कष्टों को गले लगाता है लोभी : मुनि पीयूष
अनेक दुखों और कष्टों को गले लगाता है लोभी : मुनि पीयूष

संस, लुधियाना : सिविल लाइंस जैन स्थानक की संक्रांति उत्सव की सभा में उप-प्रवर्तक श्री पीयूष मुनि ने कहा कि सांसारिक धन सुपारी के समान है। जिसको तोड़ने में न मालूम कितनों के कपडे़ कांटों में उलझकर फट जाते हैं, कितने दांत टूट जाते हैं, परंतु इसे खाने से आज तक भी किसी का पेट नहीं भरा। लोभ के कारण व्यक्ति नाना प्रकार के दुखों तथा कष्टों को गले लगाता है।

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धन के मोह को परिग्रह बताया गया है, जो सभी पापों का मूल है। परिग्रह के कारण व्यक्ति दूसरों की हिंसा करता है, झूठ बोलता है, चोरी करता है, बुरी आदतों का शिकार हो जाता है तथा दुराचार करता है। राजा अरबूट धन होने पर भी दूसरों के धन वैभव को ललचाई नजरों से देखते थे। इस कारण सैकड़ों भीषण रक्तपात हो चुके थे। वे नहीं जानते कि चक्रवर्ती सम्राट धरती से अतृप्त ही चले गए। एक कानी कौड़ी भी उनके साथ नहीं जा सकी। लोभ व्यक्ति को कंजूस बनाता है। कंजूस के समान दानी न तो हुआ है और न ही भविष्य में होगा।

मुनि श्री ने कहा कि दीन-दुखियों, जरूरतमंदों की सेवा करने का पुण्य लाभ लोभी प्राप्त नहीं कर सकता। धन का संचय करने से लोभ बढ़ता जाता है। यहां तक कि उसमें दवा तथा करुणा के भाव नहीं रहते। अपनी आंखों के समाने दुख से तड़पते हुए लोगों को देखकर उसमें अनुकम्पा पैदा नहीं होती। मानो उसका दिल बंजर भूमि बन जाता है। गरीबों से ब्याज वसूलने में भी उन्हें संकोच नहीं होता। दुखियों को देखकर उनका दुख दूर करने के लिए वे धन का सदुपयोग नहीं करते। यदि व्यक्ति दुखों से छूटना चाहता है तो उसे लोभ का त्याग करना चाहिए।


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