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पत्नी मकान तक, रिश्तेदार श्मशान तक व अच्छे कर्म परलोक तक देते हैं साथ : मुनि मोक्षानंद

श्री आत्म धर्म कमल हाल दरेसी में जैनाचार्य नित्यानंद सूरी म. के सानिध्य में चल रही चातुर्मास सभा में श्रावक जीवन रूपी उपवन को महकाने के लिए दूसरे गुण सुमन रूपवान पर चर्चा करते हुए मुनि मोक्षानंद ने कहा कि मनुष्य शरीर की प्राप्ति भाग्य की बात है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 22 Sep 2018 07:25 PM (IST)Updated: Sat, 22 Sep 2018 07:25 PM (IST)
पत्नी मकान तक, रिश्तेदार श्मशान तक व अच्छे कर्म परलोक तक देते हैं साथ : मुनि मोक्षानंद
पत्नी मकान तक, रिश्तेदार श्मशान तक व अच्छे कर्म परलोक तक देते हैं साथ : मुनि मोक्षानंद

संस, लुधियाना : श्री आत्म धर्म कमल हाल दरेसी में जैनाचार्य नित्यानंद सूरी म. के सानिध्य में चल रही चातुर्मास सभा में श्रावक जीवन रूपी उपवन को महकाने के लिए दूसरे गुण सुमन रूपवान पर चर्चा करते हुए मुनि मोक्षानंद ने कहा कि मनुष्य शरीर की प्राप्ति भाग्य की बात है। शरीर के सभी अंग प्रत्यंगों की स्वस्थता पूर्ण प्राप्ति सौभाग्य की बात है, लेकिन इस शरीर से सत्कर्म करना परम सौभाग्य की बात है।

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व्यक्ति जितनी चिंता शरीर की करता है, उतनी शरीर के प्राण तत्व यानि आत्मा की नहीं करता। मरने के बाद पत्नी मकान तक, परिवार रिश्तेदार श्मशान तक और पुत्र अग्नि दान तक साथ देता है, परंतु अच्छे कर्म तथा जीवन में किया धर्म परलोक तक साथ देते हैं। शरीर उस नित्या मित्र जैसा है, जो जन्म से मृत्यु तक प्रतिपल साथ तो रहता है, परंतु रोग कष्ट आने पर साथ नहीं देता। परिवार तथा रिश्तेदार उस जुहार मित्र के समान है, जो शरीर में से आत्मा के निकल जाने पर श्मशान तक साथ निभा देते हैं, किंतु धर्म उस पर्व मित्र के जैसा है, जिसे भले कोई कभी कभार ही करे, किंतु धर्म हमेशा हर परिस्थिति में पूरा -पूरा साथ निभाता है।

लोगों की रुचि शरीर को सजने, संवारने तथा संभालने में ज्यादा रहती है, जबकि शरीर केवल मिट्टी की ढेरी है। व्यक्ति अपने शरीर की सुंदरता से नहीं, बल्कि अपने उच्च पवित्र व्यक्तित्व की सुंदरता से महान बनता है। शरीर की सुंदरता तो नाशवान है, जबकि गुणों की सुंदरता स्थाई होती है। अष्टावक्र ऋषि के पास शरीर की सुंदरता नहीं थी, किंतु उनके पास आत्म ज्ञान था। तभी वह राजा जनक के दरबार में सम्मान ग्रहण कर पाए। देश के राष्ट्रपति तथा प्रधानमंत्री जैसे पदों पर व्यक्ति को सुंदरता के आधार पर नहीं, बल्कि उसके गुणों के आधार पर प्रतिष्ठित किया जाता है। श्रावक को शरीर की चिंता छोड़कर आत्म गुणों की विकसित करके रूपवान बनने का पुरुषार्थ करना चाहिए। इस दौरान अंबाला से पधारी श्राविका संघ की सदस्याओं ने गच्छाधिपति ने संवत्सरी क्षमापणा की तथा माला जैन ने भजनों की प्रस्तुति दी।


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