भूमि अधिग्रहण को लेकर किसान व वन विभाग आमने-सामने, जबरन लगाए जा रहे पापुलर के पेड़
सतलुज नदी से सटी करीब 75 एकड़ जमीन पर दशकों से खेती कर रहे दर्जनों किसान और वन विभाग भूमि अधिग्रहण को लेकर आमने-सामने हैं।
By Edited By: Published: Mon, 27 May 2019 07:19 AM (IST)Updated: Mon, 27 May 2019 09:41 AM (IST)
जासं, लुधियाना। सतलुज नदी से सटी करीब 75 एकड़ जमीन पर दशकों से खेती कर रहे दर्जनों किसान और वन विभाग भूमि अधिग्रहण को लेकर आमने-सामने हैं। किसानों का आरोप है कि उक्त जमीन केंद्र सरकार की है, जिस पर उन्हें हाईकोर्ट से स्टे मिला हुआ है। विभाग के अधिकारी उसे मानने के लिए तैयार नहीं हैं। उस जमीन पर जबरन पापुलर के पेड़ लगाए जा रहे हैं।
मत्तेवाड़ा के गांव बोड़े निवासी पंचायत मेंबर राम निरंजन ने बताया कि वो किसानों की मदद कर रहे हैं। सतलुज दरिया से सटी वो जमीन पहले केंद्र सरकार के अधीन गऊ सदन की थी। कई दशक पहले 20 परिवारों ने उस बंजर जमीन पर मेहनत करके उसे उपजाऊ बना लिया, जिसमें उन्हें कई साल लगे। उनमें गांव बोड़े निवासी सतनाम सिंह, रुपिंदर सिंह, नरिंदर सिंह, रमनप्रीत सिंह, रविंदर सिंह के पास 4-4 एकड़, गांव नत्थू भैणी निवासी नारंग सिंह के पास 5, हरजीत सिंह के पास 5, बलवीर सिंह के पास 5, गुरमीत सिंह के पास 2, गांव हैदा नगर निवासी गुरदीप सिंह के पास 3, दर्शन सिंह के पास 3, रुपिंदर सिंह के पास 6, अंग्रेज सिंह के पास 5, शिंदा के पास 2, जागीर सिंह के पास 1, करनैल सिंह के पास 4, गांव हवास निवासी दिलीप सिंह के पास 3, जरनैल सिंह के पास 2, गुरमीत सिंह के पास 1 तथा बच्चितर सिंह के पास 1 एकड़ जमीन है।
विगत 22 मई को वन विभाग के अधिकारी दल-बल के साथ वहां आए। उन्होंने आते ही उनकी जमीनों पर ट्रैक्टर चला दिए। पूछने पर पता चला कि विभाग उस जमीन का अधिग्रहण करके वहां पापुलर की खेती करने वाला है। मामले में शनिवार को ही दो लोग अदालत की शरण में चले गए हैं। सोमवार तीन लोग और जाने वाले हैं। वो जमीन 1971 से वन विभाग के पास है। यह लोग अवैध रूप से वहां खेती कर रहे थे। किसी के पास भी उस जमीन संबंधी कोई दस्तावेज नहीं हैं। अगर किसी के पास कोई लीगल दस्तावेज है, तो वो यहां आकर दिखा सकता है। उनके पास जो स्टे हैं, उसमें भी अदालत ने स्पष्ट किया है कि केस के दौरान भी विभाग जमीन छुड़वा सकता है।
सारी प्रक्रिया कानून के अनुसार की गई है। उस इलाके की 75 एकड़ जमीन छुड़ाई गई है। वहां एक एकड़ में 400 पेड़ लगाए जाएंगे। कुल जमीन पर 30 हजार पेड़ लगेंगे। इससे पहले भी वन विभाग की ओर से 500 एकड़ जमीन छुड़ाई गई है, जिस पर लोगों ने अवैध रूप से कब्जा कर रखा था। विरोध करने वाले लोगों को अब इस बात का डर है कि सरकारी जमीन पर सालों बिजाई करने के बदले उन्हें सरकारी फीस जमा करानी पड़ेगी। उनसे फीस की वसूली के लिए सरकारी मंजूरी के बाद अदालत में याचिका दायर की जाएगी।
चरणजीत सिंह, डीएफओ।
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मत्तेवाड़ा के गांव बोड़े निवासी पंचायत मेंबर राम निरंजन ने बताया कि वो किसानों की मदद कर रहे हैं। सतलुज दरिया से सटी वो जमीन पहले केंद्र सरकार के अधीन गऊ सदन की थी। कई दशक पहले 20 परिवारों ने उस बंजर जमीन पर मेहनत करके उसे उपजाऊ बना लिया, जिसमें उन्हें कई साल लगे। उनमें गांव बोड़े निवासी सतनाम सिंह, रुपिंदर सिंह, नरिंदर सिंह, रमनप्रीत सिंह, रविंदर सिंह के पास 4-4 एकड़, गांव नत्थू भैणी निवासी नारंग सिंह के पास 5, हरजीत सिंह के पास 5, बलवीर सिंह के पास 5, गुरमीत सिंह के पास 2, गांव हैदा नगर निवासी गुरदीप सिंह के पास 3, दर्शन सिंह के पास 3, रुपिंदर सिंह के पास 6, अंग्रेज सिंह के पास 5, शिंदा के पास 2, जागीर सिंह के पास 1, करनैल सिंह के पास 4, गांव हवास निवासी दिलीप सिंह के पास 3, जरनैल सिंह के पास 2, गुरमीत सिंह के पास 1 तथा बच्चितर सिंह के पास 1 एकड़ जमीन है।
विगत 22 मई को वन विभाग के अधिकारी दल-बल के साथ वहां आए। उन्होंने आते ही उनकी जमीनों पर ट्रैक्टर चला दिए। पूछने पर पता चला कि विभाग उस जमीन का अधिग्रहण करके वहां पापुलर की खेती करने वाला है। मामले में शनिवार को ही दो लोग अदालत की शरण में चले गए हैं। सोमवार तीन लोग और जाने वाले हैं। वो जमीन 1971 से वन विभाग के पास है। यह लोग अवैध रूप से वहां खेती कर रहे थे। किसी के पास भी उस जमीन संबंधी कोई दस्तावेज नहीं हैं। अगर किसी के पास कोई लीगल दस्तावेज है, तो वो यहां आकर दिखा सकता है। उनके पास जो स्टे हैं, उसमें भी अदालत ने स्पष्ट किया है कि केस के दौरान भी विभाग जमीन छुड़वा सकता है।
सारी प्रक्रिया कानून के अनुसार की गई है। उस इलाके की 75 एकड़ जमीन छुड़ाई गई है। वहां एक एकड़ में 400 पेड़ लगाए जाएंगे। कुल जमीन पर 30 हजार पेड़ लगेंगे। इससे पहले भी वन विभाग की ओर से 500 एकड़ जमीन छुड़ाई गई है, जिस पर लोगों ने अवैध रूप से कब्जा कर रखा था। विरोध करने वाले लोगों को अब इस बात का डर है कि सरकारी जमीन पर सालों बिजाई करने के बदले उन्हें सरकारी फीस जमा करानी पड़ेगी। उनसे फीस की वसूली के लिए सरकारी मंजूरी के बाद अदालत में याचिका दायर की जाएगी।
चरणजीत सिंह, डीएफओ।
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