गॉल ब्लैडर सर्जरी में क्रिटिकल व्यू ऑफ सेफ्टी तकनीक अपनाएं
गॉल ब्लैडर सर्जरी करने वाले लैप्रोस्कोपिक सर्जन यदि क्रिटिकल व्यू ऑफ सेफ्टी तकनीक अपनाएं तो इससे मरीज को जानलेवा इंजरी कम हो सकती है।
जागरण संवाददाता, लुधियाना : गॉल ब्लैडर सर्जरी करने वाले लैप्रोस्कोपिक सर्जन यदि क्रिटिकल व्यू ऑफ सेफ्टी तकनीक अपनाएं तो इससे मरीज को जानलेवा इंजरी कम हो सकती है। यह तकनीक थोड़ी मुश्किल जरूर है, लेकिन मरीज के लिए बहुत फायदेमंद है। यह कहना रहा एसपीएस अस्पताल के कंसल्टेंट लैप्रोस्कोपिक सर्जन रणबीर सिंह का।
वे पारस अस्पताल गुड़गांव में प्रीवेंट कोम्पलीकेशन इन गाल ब्लैडर सर्जरी विषय पर आयोजित सीएमई में एक्सपर्ट के तौर पर लेक्चर दे रहे थे। उनके अलावा इस सीएमई में बीएलके अस्पताल दिल्ली के डॉ. दीप गोयल, सर गंगा राम अस्पताल दिल्ली के डॉ. सुवीराज जॉन भी एक्सपर्ट पैनल में थे। डॉ. रणबीर सिंह ने कहा कि अमेरिका में आमतौर पर एक साल में करीब सात लाख पचास हजार गाल ब्लैडर सर्जरी होती है। इनमें 1600 से 3600 के बीच में केसों में इंजरी होती है। हर तीन सौ में एक मरीज को हल्की व अधिक इंजरी होती है। जबकि भारत में इंजरी रेट इससे कहीं ज्यादा हो सकती है। लेकिन दुर्भाग्यूपर्ण है कि हमारे देश में इसका डाटा तैयार नहीं होता है। डॉ. रणबीर सिंह ने कहा कि सर्जरी के दौरान होने वाली इन जानलेवा इंजरी को टाला जा सकता है। बशर्ते, लैप्रोस्कोपिक सर्जन क्रिटिकल व्यू ऑफ सेफ्टी तकनीक अपनाएं। जो लोग इस तकनीक को फोलो करते हैं, उनके यहां इंजरी नहीं होती है।
उन्होंने अपना उदाहरण देते हुए कहा कि उन्होंने दो साल पहले लुधियाना लैप्रोस्कोपिक सर्जिकल अस्पताल में पंजाब के प्रसिद्ध लैप्रोस्कोपिक सर्जन डॉ. कुलदीप सिंह के साथ मिलकर क्रिटिकल व्यू ऑफ सेफ्टी तकनीक से सात सौ चालीस के करीब गाल ब्लैडर सर्जरी की। इनमें से एक भी मरीज को इंजरी नहीं हुई, जिसके डाक्यूमेंट्स और वीडियो प्रूफ भी है। डॉ. रणबीर सिंह ने कहा कि यह तकनीक पेशेंट सेफ्टी में अहम रोल अदा करती है। इसलिए, हर लैप्रोस्कोपिक सर्जन को यही सलाह है कि इस तकनीक को जरूर अपनाएं। क्योंकि सर्जरी के दौरान गाल ब्लैडर में यदि एक बार इंजरी हो जाती है तो उसे सारी उम्र उसकी तकलीफ से जूझना पड़ता है। कइयों के लिए तो यह इंजरी जानलेवा साबित हो जाती है।