Sanskarshala: आत्म पब्लिक स्कूल लुधियाना की प्रिंसिपल बोलीं- इंटरनेट पर बहस के दौरान ठोस मुद्दों को ही दें तवज्जो
क्या सार्वजनिक मंच पर सार्थक बहस के कोई नियम बनाए गए हैं? अगर हां! तो क्या नियमों व अनुशासन पद्धति का पालन किया जा रहा है? जिस प्रकार यदि शतरंज में काला घोड़ा ढ़ाई पर चलने के बजाय सीधा चल पड़े तो खेल का परिणाम ही कुछ और ही होगा।
जागरण संवाददाता, लुधियाना। मैं प्रवक्ता बना हूं आज, बस मेरी सुनो आवाज, मैं गुप्त न रखूं राज, बस मेरी सुनो आवाज। मेरी तीखी प्रखर आवाज है तुम्हारी क्या बिसात तुम हो गलत और केवल मैं ही सही, बस मैं ही सही हूं, मेरी ही सुनो आवाज। वर्तमान युग में सूचना को संचित और संप्रेषित करना बेहद आसान हो चुका है। यहां तक कि स्वयं स्वार्थ सिद्धि के चलते सूचनाओं को अपने मन मुताबिक तोड़ मरोड़कर प्रस्तुत या फिर जनसाधारण तक भी प्रसारित करना आज सामान्य चलन हो चुका है।
बिना किसी मुद्दे की वास्तविकता तक पहुंचे नेटवर्कों के नेटवर्क यानी कि इंटरनेट पर उसे वाद विवाद का विषय बना दिया जाता है। अनगिनत टीवी चैनलों, रेडियो या फिर इंटरनेट मीडिया पर ज्वलंत मुद्दे पर पक्ष- विपक्ष के मध्य तीखे तर्क और वितर्क में उलझे प्रवक्ता कई बार संवेदनहीनता की सभी सीमाएं तक लांघ जाते हैं। तकनीकी प्रगति ने वाद-विवाद को बंद कमरों से निकालकर लोगों के प्रत्यक्ष सीधे प्रसारण के रूप में प्रस्तुत कर दिया है। त्रासदी तो यह है कि लाइव इंटरनेट मीडिया पर भारी संख्या में आनलाइन जुड़े लोग भी इस निराधार वाद विवाद में शामिल होते हैं। अब प्रश्न यह उठता है कि क्या यह तर्क, वितर्क अथवा व्यापक बहस सार्थक हो सकती है?
क्या सार्वजनिक मंच पर सार्थक बहस के कोई नियम- कायदे बनाए गए हैं? अगर हां! तो क्या नियमों व अनुशासन पद्धति का पालन किया जा रहा है? जिस प्रकार यदि शतरंज में काला घोड़ा ढ़ाई पर चलने के बजाय सीधा चल पड़े, तो खेल का परिणाम ही कुछ और ही होगा। उसी प्रकार किसी भी बहस को तब तक सफल नहीं माना जा सकता, जब तक यह सही मुद्दों पर आधारित, पूर्व निर्धारित मानकों के अनुरूप और सांस्कारिक न हो। वाद विवाद के समय व्यक्ति विशेष को अपने तर्क को स्पष्टतापूर्ण कहना चाहिए, ताकि सुनने वाले उसके सही अर्थ तक पहुंच पाए और स्वनुसार उसका अनुचित अर्थ न निकालें। आज इंटरनेट युग में पलक झपकते ही हर छोटी बड़ी घटना को बिना परखे जनमानस में वायरल कर दिया जाता है।
कभी-कभी तो वाद विवाद में किसी दिग्गज व सम्माननीय व्यक्ति विशेष को निमंत्रित कर उनके साथ भी अपमानजनक व्यवहार किया जाता है। उनके द्वारा दिए गए सुझावों को नजरअंदाज कर दिया जाता है। ऐसा भी देखा गया है कि एक हास्य कलाकार, अभिनेता व नेता भी हास्य और व्यंग्य के साथ कुछ ऐसे अवांछित मुद्दों को हवा दे देते हैं, जिन से साधारण लोग भड़क जाते हैं और नतीजा - उपद्रव।
वाद- विवाद में प्रतिद्वंद्वी एक-दूसरे पर जुबानी तीर चलाएं यह अनपेक्षित नहीं है, लेकिन यह अपेक्षा जरूर रहती है कि ऐसा किसी विशेष विचारधारा, ठोस मुद्दों और कार्यक्रमों को लेकर ही हो। केवल समस्या पर ही चर्चा की जाए वर्ना उसके समाधानों पर विचार विमर्श हो। अंत में यही निष्कर्ष उभर कर सामने आ रहा है कि सत्य पर आधारित तथ्य, कुशल प्रवक्ता और जागरूक श्रोता का पारस्परिक एवं सांस्कारिक समन्वय ही इंटरनेट पर सफल और सार्थक बहस की कुंजी है। -बंदना सेठी, प्रिंसिपल आत्म पब्लिक सीनियर सेकेंडरी स्कूल।
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