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पेट्रो उत्पादों की 'आग' में झुलस रहा प्लास्टिक उद्योग

एक माह के दौरान प्लास्टिक का कच्चा माल दस रुपये प्रति किलो की उछाल मार चुका है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 22 May 2018 07:25 PM (IST)Updated: Wed, 23 May 2018 12:19 PM (IST)
पेट्रो उत्पादों की 'आग' में झुलस रहा प्लास्टिक उद्योग
पेट्रो उत्पादों की 'आग' में झुलस रहा प्लास्टिक उद्योग

राजीव शर्मा, लुधियाना।

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पेट्रो उत्पादों की महंगाई से जहां आम जनता में त्राहिमाम मचा है, वहीं इसकी तपिश प्लास्टिक उद्योग भी झेल रहा है। पिछले एक माह के दौरान प्लास्टिक का कच्चा माल दस रुपये प्रति किलो की उछाल मार चुका है।

उधर बाजार में मांग कम होने के चलते उद्यमी स्थितियों को संभाल नहीं पा रहे हैं। प्लास्टिक उद्यमियों ने सरकार से मांग की है कि उन्हें राहत देने के लिए अतिरिक्त इंसेंटिव दिए जाएं।

काबिलेजिक्र है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत अस्सी डालर प्रति बैरल के पार पहुंच गई है। माहिरों का तर्क है कि शीघ्र ही कच्चा तेल नब्बे डालर का आंकड़ा छू सकता है। इसका सीधा असर प्लास्टिक के कच्चे माल पर भी साफ देखा जा रहा है।

उद्यमियों के अनुसार लिमियन लो डैंसिटी पोलिथीन (एलएलडीपी) के दाम पिछले एक माह में आठ से दस रुपये तक उछल गए हैं और अब बाजार में इसकी कीमत 92 रुपये प्रति किलो हो गई है।

इसी तरह पीपीवी प्लास्टिक के दाम 86 रुपये से बढ़कर 96 रुपये पर पहुंच गए हैं। इसके अलावा तमाम तरह का पेट्रोलियम बेस्ड कच्चा माल क्रूड ऑयल की चाल के साथ ही महंगा हो रहा है। उद्यमियों का कहना है कि इनपुट लागत में हो रहे इजाफे के अनुसार बाजार में तैयार माल के रेट नहीं बढ़ पा रहे हैं। ऐसे में उद्योग चलाना मुश्किल हो रहा है।

एक अनुमान के अनुसार पंजाब में प्रति माह लगभग 30 हजार टन प्लास्टिक के कच्चे माल की खपत है।

पंजाब प्लास्टिक मेन्युफैक्चरर्स एंड ट्रेडर्स एसोसिएशन के प्रधान गुरदीप सिंह बतरा का कहना है कि इंडस्ट्री मुश्किल दौर से गुजर रही है। कच्चे माल की महंगाई को संभालना कठिन हो रहा है। उनका कहना है कि बाजार में मांग कमजोर हो गई है। पहले जो पार्टी 150 किलो माल ले रही थी, अब इसका आधा भी नहीं ले रही है।

इसके चलते इंडस्ट्री 24 घंटे की बजाए केवल पांच से छह घंटे ही चल पा रही है। नतीजतन खर्च तक निकालना मुश्किल हो रहा है। प्लास्टिक की ज्यादातर इंडस्ट्री माइक्रो एवं स्मॉल सेक्टर में है, इस क्षेत्र को बिजली भी काफी महंगी पड़ रही है। उनका तर्क है कि सरकार छोटे उद्योगों को किसी भी तरह की राहत नहीं दे रही है। यदि यही स्थिति रही तो आगे इकाईयां चलाना कठिन हो जाएगा।

मौजूदा हालात में इंडस्ट्री का आधुनिकीकरण भी रूक गया है। नया निवेश नहीं हो रहा है। हालत यह है कि पुरानी सब्सिडी पाने के लिए भी उद्यमी विभागों के चक्कर लगा रहे हैं। फिलहाल मौजूदा परिस्थितियों के आंकलन कर ही आगे कदम बढ़ाए जाएंगे।

बतरा ने कहा कि उद्योग में जान फूंकने के लिए सरकार को नए इंसेंटिव देने होंगे। इसमें छोटी इकाईयों को सस्ती कीमत पर कच्चा माल उपलब्ध कराने के इंतजाम करने होंगे। सस्ते ब्याज पर ऋण मुहैया कराना होगा। मौजूदा इकाईयों में नए निवेश पर सब्सिडी देना होगी।


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